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Burhanpur News: पिता की अंतिम यात्रा में बड़ी बेटी ने दिया अर्थी को कंधा, छोटी बेटी ने मुखाग्नि देकर किया अंतिम संस्कार

हिंदुओं की परंपरा के अनुसार बेटा ही पिता की चिता को मुखाग्नि देता है, लेकिन यह रूढ़िवादी प्रथा अब गुजरे जमाने की हो चुकी है. बुरहानपुर में यह प्रथा तब टूटी, जब एक बेटी ने शव यात्रा में पिता की अर्थी को कंधा दिया और दूसरी बेटी ने हिंदू रीति-रिवाज के मुताबिक पिता को मुखाग्नि दी. इसके बाद बेटी ने कहा कि ये समाज के लिए संदेश है कि बेटी किसी भी मामले में बेटे से कमतर नहीं है. Daughter performed last rites

daughter performed last rites
पिता की अंतिम यात्रा में बड़ी बेटी ने दिया अर्थी को कंधा
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 20, 2023, 1:41 PM IST

छोटी बेटी ने मुखाग्नि देकर किया अंतिम संस्कार

बुरहानपुर। आधुनिक युग में बेटियां किसी मामले में बेटों से कमतर नहीं हैं. जो काम बेटा कर सकता है, वही काम बेटी भी बखूबी कर सकती है. काम चाहे घर की चारदीवारी के भीतर का हो या घर से बाहर का. बेटियां उसे बड़े शिद्दत से निभा रही हैं. बेटी द्वारा पिता का अंतिम संस्कार करने का सीन जिसने भी देखा, उनकी आंखें नम हो गईं. शव यात्रा में शामिल लोगों ने बेटियों के प्रति श्रृद्धा से सिर झुकाया. दरअसल, शिकारपुरा निवासी 73 वर्षीय बुजुर्ग किरण पूनमचंद देवकर का बुधवार को ब्रेन हैमरेज से निधन हो गया. उनके परिवार में मुखाग्नि देने के लिए कोई बेटा नहीं था. बुजुर्ग किरण पूनमचंद देवकर की अंतिम इच्छा थी कि उनकी मृत्यु के बाद अर्थी को कंधा और चिता को मुखाग्नि देने की रस्म बेटियां ही निभाएं. Daughter performed last rites

पिता की अंतिम इच्छा को पूरा किया : दोनों बेटियों ने पिता की अंतिम इच्छा को पूरा किया. बड़ी बेटी ममता ने अंतिम यात्रा में पिता की अर्थी को कंधा दिया. वहीं छोटी बेटी वैशाली ने बेटे का फर्ज निभाने के लिए हिंदू रीति रिवाज के साथ मुखाग्नि देकर मिसाल पेश की. मोहल्ले के लोग बताते हैं कि गरीब परिस्थिति होने के बाद भी किरण ने अपनी दोनों बेटियों को बड़े लाड़ प्यार से पाला पोसा. उन्होंने बेटियों को बेटों से कम नहीं समझा. उन्हें कभी भी गरीबी का एहसास नहीं होने दिया. ममता और वैशाली को खूब पढ़ाया लिखाया और दोनों का ब्याह भी गुजराती रीति-रिवाज से कराया.

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दोनों बेटियों की हिम्मत को दाद : 73 वर्ष की उम्र में किरण देवकर अपना अंतिम समय बिता रहे थे. इस बीच अचानक ब्रेन हैमरेज से उनकी मौत हो गई. मौत के बाद बेटी ममता और वैशाली ने अपनी मां को संभाला और समाज को बेटों की कमी महसूस नहीं होने दी. छोटी बेटी वैशाली ने मोर्चा संभालकर श्मशान में अपने पिता को मुखाग्नि देकर अंतिम संस्कार किया. बदलते युग में बेटी ममता और वैशाली ने समाज को एक प्रेरणादायक संदेश दिया है. मृतक की पुत्री वैशाली का कहना है कि ये समाज के लिए एक संदेश है कि बेटी किसी भी मामले में बेटे से कम नहीं होती. Daughter performed last rites

छोटी बेटी ने मुखाग्नि देकर किया अंतिम संस्कार

बुरहानपुर। आधुनिक युग में बेटियां किसी मामले में बेटों से कमतर नहीं हैं. जो काम बेटा कर सकता है, वही काम बेटी भी बखूबी कर सकती है. काम चाहे घर की चारदीवारी के भीतर का हो या घर से बाहर का. बेटियां उसे बड़े शिद्दत से निभा रही हैं. बेटी द्वारा पिता का अंतिम संस्कार करने का सीन जिसने भी देखा, उनकी आंखें नम हो गईं. शव यात्रा में शामिल लोगों ने बेटियों के प्रति श्रृद्धा से सिर झुकाया. दरअसल, शिकारपुरा निवासी 73 वर्षीय बुजुर्ग किरण पूनमचंद देवकर का बुधवार को ब्रेन हैमरेज से निधन हो गया. उनके परिवार में मुखाग्नि देने के लिए कोई बेटा नहीं था. बुजुर्ग किरण पूनमचंद देवकर की अंतिम इच्छा थी कि उनकी मृत्यु के बाद अर्थी को कंधा और चिता को मुखाग्नि देने की रस्म बेटियां ही निभाएं. Daughter performed last rites

पिता की अंतिम इच्छा को पूरा किया : दोनों बेटियों ने पिता की अंतिम इच्छा को पूरा किया. बड़ी बेटी ममता ने अंतिम यात्रा में पिता की अर्थी को कंधा दिया. वहीं छोटी बेटी वैशाली ने बेटे का फर्ज निभाने के लिए हिंदू रीति रिवाज के साथ मुखाग्नि देकर मिसाल पेश की. मोहल्ले के लोग बताते हैं कि गरीब परिस्थिति होने के बाद भी किरण ने अपनी दोनों बेटियों को बड़े लाड़ प्यार से पाला पोसा. उन्होंने बेटियों को बेटों से कम नहीं समझा. उन्हें कभी भी गरीबी का एहसास नहीं होने दिया. ममता और वैशाली को खूब पढ़ाया लिखाया और दोनों का ब्याह भी गुजराती रीति-रिवाज से कराया.

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