नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि अगर कोई प्रदर्शन करना चाहता है तो सीआरपीसी की धारा 144 के तहत आदेश जारी करने की क्या जरूरत है. साथ ही शीर्ष अदालत ने 2023 में रांची में हुए विरोध प्रदर्शनों को लेकर भाजपा नेताओं और सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ आपराधिक मामलों को रद्द करने के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ झारखंड सरकार की याचिका खारिज कर दी.
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुयान की पीठ के समक्ष यह मामला आया. पीठ ने कहा, "अगर कोई प्रदर्शन करना चाहता है तो सीआरपीसी की धारा 144 के तहत आदेश जारी करने की क्या जरूरत है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सीआरपीसी की धारा 144 का दुरुपयोग किया जा रहा है."
झारखंड सरकार के वकील ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू थी, इसके बावजूद आरोपियों ने विरोध प्रदर्शन किया जो हिंसक हो गया. जिसमें प्रशासनिक अधिकारियों सहित कई लोग घायल हुए. वकील ने तर्क दिया कि झारखंड हाईकोर्ट ने अपने निष्कर्ष में गलती की, क्योंकि हाईकोर्ट ने कहा कि उन्हें विरोध करने का अधिकार है.
पीठ ने राज्य सरकार के तर्क से असहमति जताई और टिप्पणी की कि आजकल जब भी विरोध प्रदर्शन होता है, तो ये आदेश लागू करने की प्रवृत्ति है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर वह इस मामले में हस्तक्षेप करेगा, तो इससे गलत संदेश जाएगा. वकील ने पीठ के समक्ष जोर देकर कहा कि विरोध प्रदर्शन के दौरान पत्थर फेंके गए.
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने कहा कि वह झारखंड हाईकोर्ट के 14 अगस्त, 2024 के आदेश में हस्तक्षेप करने को इच्छुक नहीं है और राज्य सरकार द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया.
11 अप्रैल 2023 को रांची में हुआ था विरोध प्रदर्शन
11 अप्रैल 2023 को रांची में भाजपा नेताओं की ओर से विरोध प्रदर्शन किया गया था. सीआरपीसी की धारा 144 लागू होने के बावजूद प्रदर्शन में 5,000 से अधिक लोग शामिल हुए थे, जिसमें भाजपा के केंद्रीय नेता भी थे.
झारखंड हाईकोर्ट ने पिछले साल अगस्त में भाजपा नेताओं के खिलाफ दर्ज मामलों को रद्द कर दिया था. हाईकोर्ट ने कहा था कि शांतिपूर्ण विरोध और प्रदर्शन करने का नागरिकों का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और 19(1)(बी) के तहत प्रदत्त एक मौलिक अधिकार है.
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