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आगरा नहीं बुरहानपुर को बनना था शाहजहां-मुमताज की कहानी का मुकाम, वक्त ने कर दिया ताप्ती से दूर

क्या आप जानते हैं कि मल्लिका-ए-हिंदुस्तान मुमताज महल ने अपने मकबरे के लिए जो जगह पसंद की थी, वो आगरा नहीं बल्कि आगरा से कोसों दूर मध्यप्रदेश में थी. ये जगह थी उत्तर भारत का वो छोर जो दक्कन यानी दक्षिण का दरवाजा खोलता था. ये जगह थी गेट-वे-ऑफ साउथ बुरहानपुर, जिसे उस वक्त बाब-ए-दक्कन यानी दक्षिण का दरवाजा कहा जाता था.

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Published : Mar 21, 2019, 7:52 AM IST

Updated : Oct 19, 2021, 12:44 PM IST

शाहजहां-मुमताज

बुरहानपुर। फ़िज़ाओं पर इश्क का हुआ ऐसा असर, जिंदा हुए पत्थर चमक उठा ताज उस जमीं पर छाया है अंधेरा मगर, पहली मर्तबा जहां दफ़्न हुई थी मुमताज. जब-जब प्यार और मोहब्बत की बात होती है, तब-तब शाहजहां-मुमताज की दास्तान-ए-इश्क जिंदा हो उठती है. जिंदा हो उठती है, जमीन पर इंसान के लाजवाब शाहकार की कहानी, ताजमहल की कहानी. वो कहानी, जो निशानी है ऐसी मोहब्बत की, जो ताजमहल की शक्ल में दस्तावेज बनकर तारीख़ पर दर्ज हो गई.

लेकिन, क्या आप जानते हैं कि मल्लिका-ए-हिंदुस्तान मुमताज महल ने अपने मकबरे के लिए जो जगह पसंद की थी, वो आगरा नहीं बल्कि आगरा से कोसों दूर मध्यप्रदेश में थी. ये जगह थी उत्तर भारत का वो छोर जो दक्कन यानी दक्षिण का दरवाजा खोलता था. ये जगह थी गेट-वे-ऑफ साउथ बुरहानपुर, जिसे उस वक्त बाब-ए-दक्कन यानी दक्षिण का दरवाजा कहा जाता था.

वीडियो

इसी बुरहानपुर के किले में मुमताज महल ने अंतिम सांसें ली थीं. अपने शौहर शाहजहां से बेइंतेहां मोहब्बत करने वाली मुमताज की चाहत थी कि इसी शहर में उसका मक़बरा बने, जो उसके और शाहजहां के इश्क की दास्तान को कयामत तक बयां करे. मुमताज की इस चाहत को पूरा करने के लिए शहंशाह शाहजहां ने बुरहानपुर के किले के पास आहुखाने के पाइंन बाग में उसकी लाश को दफ्न करा दिया था, लेकिन कुछ तकनीकी वजहों से वैसा मकबरा बुरहानपुर में नहीं बन सकता था, जिसकी ख़्वाहिश मुमताज ने की थी.

बुरहानपुर की मिट्टी में दीमक थी, जो ताज की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती थी. उस वक्त में राजस्थान से बुरहानपुर तक संगमरमर लाना मुश्किल और खर्चीला काम था. इसके अलावा ताप्ती का जलस्तर जमीन से इतना नीचा था कि शाहजहां उसके पानी में ताज के अक्स का दीदार नहीं कर सकता था. इन्हीं सब वजहों ने आहूखाने के आसपास की जगह को ताजमहल में तब्दील नहीं होने दिया. लेकिन, यहां के बाशिंदे मानते हैं कि बुरहानपुर से मुमताज का केवल शरीर गया है, उसकी रूह आज भी यहीं है. कुछ लोग तो ये तक कहते हैं कि उन्होंने मुमताज की रूह को यहां भटकते देखा है.

बुरहानपुर में ताजमहल भले ही न बन सका हो, मगर यहां का ऐतिहासिक किला और आहूखाना भी शाहजहां-मुमताज की मोहब्बत की निशानी है. इसके बावजूद अफसरशाही के चलते न तो इन इमारतों को वो इज्जत मिल पा रही है और न ही वो हिफ़ाज़त जिसकी ये हकदार हैं. इन इमारतों के पीछे छिपी हिंदुस्तान के शहंशाह की प्रेमकहानी को तो लोगों ने बिसरा दिया है, लेकिन प्रशासनिक अनदेखी के चलते सड़कछाप रोमियो जरूर यहां की दीवारों पर अपने प्यार की निशानी उकेर जाते हैं. कहीं जगदीश तो कहीं शबाना, कहीं गुलशन, न जाने किस-किस की निशानियां इन दीवारों पर दर्ज हैं. यहां की यादों से गायब हुई हैं तो बस वो कहानियां जिनका इन दीवारों से सचमुच ताल्लुक था. शाहजहां-मुमताज की कहानियां. हिंदुस्तान के इतिहास की सबसे खास प्रेम कहानियां.

बुरहानपुर। फ़िज़ाओं पर इश्क का हुआ ऐसा असर, जिंदा हुए पत्थर चमक उठा ताज उस जमीं पर छाया है अंधेरा मगर, पहली मर्तबा जहां दफ़्न हुई थी मुमताज. जब-जब प्यार और मोहब्बत की बात होती है, तब-तब शाहजहां-मुमताज की दास्तान-ए-इश्क जिंदा हो उठती है. जिंदा हो उठती है, जमीन पर इंसान के लाजवाब शाहकार की कहानी, ताजमहल की कहानी. वो कहानी, जो निशानी है ऐसी मोहब्बत की, जो ताजमहल की शक्ल में दस्तावेज बनकर तारीख़ पर दर्ज हो गई.

लेकिन, क्या आप जानते हैं कि मल्लिका-ए-हिंदुस्तान मुमताज महल ने अपने मकबरे के लिए जो जगह पसंद की थी, वो आगरा नहीं बल्कि आगरा से कोसों दूर मध्यप्रदेश में थी. ये जगह थी उत्तर भारत का वो छोर जो दक्कन यानी दक्षिण का दरवाजा खोलता था. ये जगह थी गेट-वे-ऑफ साउथ बुरहानपुर, जिसे उस वक्त बाब-ए-दक्कन यानी दक्षिण का दरवाजा कहा जाता था.

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इसी बुरहानपुर के किले में मुमताज महल ने अंतिम सांसें ली थीं. अपने शौहर शाहजहां से बेइंतेहां मोहब्बत करने वाली मुमताज की चाहत थी कि इसी शहर में उसका मक़बरा बने, जो उसके और शाहजहां के इश्क की दास्तान को कयामत तक बयां करे. मुमताज की इस चाहत को पूरा करने के लिए शहंशाह शाहजहां ने बुरहानपुर के किले के पास आहुखाने के पाइंन बाग में उसकी लाश को दफ्न करा दिया था, लेकिन कुछ तकनीकी वजहों से वैसा मकबरा बुरहानपुर में नहीं बन सकता था, जिसकी ख़्वाहिश मुमताज ने की थी.

बुरहानपुर की मिट्टी में दीमक थी, जो ताज की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती थी. उस वक्त में राजस्थान से बुरहानपुर तक संगमरमर लाना मुश्किल और खर्चीला काम था. इसके अलावा ताप्ती का जलस्तर जमीन से इतना नीचा था कि शाहजहां उसके पानी में ताज के अक्स का दीदार नहीं कर सकता था. इन्हीं सब वजहों ने आहूखाने के आसपास की जगह को ताजमहल में तब्दील नहीं होने दिया. लेकिन, यहां के बाशिंदे मानते हैं कि बुरहानपुर से मुमताज का केवल शरीर गया है, उसकी रूह आज भी यहीं है. कुछ लोग तो ये तक कहते हैं कि उन्होंने मुमताज की रूह को यहां भटकते देखा है.

बुरहानपुर में ताजमहल भले ही न बन सका हो, मगर यहां का ऐतिहासिक किला और आहूखाना भी शाहजहां-मुमताज की मोहब्बत की निशानी है. इसके बावजूद अफसरशाही के चलते न तो इन इमारतों को वो इज्जत मिल पा रही है और न ही वो हिफ़ाज़त जिसकी ये हकदार हैं. इन इमारतों के पीछे छिपी हिंदुस्तान के शहंशाह की प्रेमकहानी को तो लोगों ने बिसरा दिया है, लेकिन प्रशासनिक अनदेखी के चलते सड़कछाप रोमियो जरूर यहां की दीवारों पर अपने प्यार की निशानी उकेर जाते हैं. कहीं जगदीश तो कहीं शबाना, कहीं गुलशन, न जाने किस-किस की निशानियां इन दीवारों पर दर्ज हैं. यहां की यादों से गायब हुई हैं तो बस वो कहानियां जिनका इन दीवारों से सचमुच ताल्लुक था. शाहजहां-मुमताज की कहानियां. हिंदुस्तान के इतिहास की सबसे खास प्रेम कहानियां.

Last Updated : Oct 19, 2021, 12:44 PM IST
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