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World Refugee Day 2021: क्यों घर छोड़ने को मजबूर होते हैं शरणार्थी, जानें

हर साल 20 जून को ‘विश्व शरणार्थी दिवस’ (World Refugee Day) मनाया जाता है. इसी दिन दुनिया भर में शरणार्थियों की मदद की जाती है. इसके साथ ही उनकी स्थिति के प्रति जागरूकता फैलाई जाती है. हर साल रिफ्यूजी-डे के लिए एक थीम तय की जाती है.

World Refugee Day 2021
विश्व शरणार्थी दिवस 2021
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Published : Jun 20, 2021, 6:01 AM IST

भोपाल। हर साल 20 जून को ‘विश्व शरणार्थी दिवस’ (World Refugee Day) मनाया जाता है. आज का दिन दुनिया भर में शरणार्थियों की मदद की जाती है. इसके साथ ही उनकी स्थिति के प्रति जागरूकता फैलाई जाती है. हर साल रिफ्यूजी-डे के लिए एक थीम तय की जाती है. थीम के आधार पर ही शरणार्थी दिवस मनाया जाता है. इस वर्ष का थीम 'हम साथ उभरेंगे, सीखेंगे और चमकेंगे' (Together we heal, learn and shine) है.

क्यों मनाया जाता है विश्व शरणार्थी दिवस
शरणार्थियों की दुनिया भर एक बड़ी संख्या है. निरंतर प्रताड़ना, संघर्ष और हिंसा की चुनौतियों के कारण अपना देश छोड़कर उन्हें बाहर भागने को मजबूर होना पड़ता है. कईं देशों में उन्हें पनाह मिल जाती है. वहीं, कई देशों से निकाल भी दिया जाता है. बेशक, इन्हें पनाह मिल जाए, लेकिन उन्हें वह सम्मान और अधिकार नहीं मिल पाता. हर साल रिफ्यूजी-डे मनाने का मुख्य उद्देश्य शरणार्थी के साहस, शक्ति और संकल्प के प्रति सम्मान व्यक्त करना है.

इस दिन से वर्ल्ड रिफ्यूजी-डे की शुरुआत
दुनिया भर में 20 जून को वर्ल्ड रिफ्यूजी-डे के तौर पर मनाया जाता है. 4 जून 2000 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे मनाने की घोषणा की थी. तब शरणार्थी दिवस मनाने के लिए 17 जून की तारीख तय की गई थी. इसके बाद साल 2001 में संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को बदलकर 20 जून कर दिया. तब से यह 20 जून को ही मनाया जाता है.

भारत में हैं इन स्थानों के शरणार्थी
भारत में सीमावर्ती इलाकों से आकर शरणार्थी रह रहे हैं. जिन्हें लेकर अक्सर विवाद होते रहे हैं. यूएनएचसीआर (United Nations High Commissioner for Refugees) के मुताबिक भारत में तिब्बती, श्रीलंकाई, रोहिंग्या, अफगानी, सोमाली और अन्य शरणार्थी हैं. ये वो हैं जो भारत में एजेंसी के साथ पंजीकृत हैं. इनके अलावा ऐसे भी लाखों शरणार्थी हैं, जिनकी कोई पहचान नहीं है. इन्हीं शरणार्थियों का देश में बसेरा संकट का विषय माना जा रहा है.

क्यों होता है ज्यादा शरणार्थियों का विरोध
जिस देश में शरणार्थी शरण लेते हैं. वहां की आर्थिक स्थिति की अपनी मजबूरियां होती हैं. एक निश्चित आबादी का भरण-पोषण करते हुए अगर किसी देश पर अचानक ही लाखों की संख्या में आए शरणार्थियों की जिम्मेदारी आ जाए तो वहां की अर्थव्यवस्था चरमराने लगती है. यह भी देखा गया है कि बहुत जगहों पर बड़ी संख्या में आए शरणार्थियों की वजह से जुर्म में भी इजाफा हुआ है, क्योंकि पहचान पर ट्रैक रखना मुश्किल हो जाता है.

रोहिंग्या शरणार्थी
रोहिंग्या रिफ्यूजियों का जिक्र अचानक राष्ट्रीय चर्चा का विषय तब बना, जब 40,000 रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार से भागकर भारत में शरण लेने आ गए. इनमें से 16,500 रोहिंग्या मुसलामानों को संयुक्त राष्ट्र ने आईडी कार्ड दिए हैं, जिससे उन्हें हिंसा, अरेस्ट और गैरकानूनी रूप से पकड़ने से बचाया जा सके. भारत सरकार इसके साथ ही म्यांमार सरकार से भी बातचीत कर रही है कि वो रोहिंग्या लोगों को वापस अपने देश में शामिल करे.

MP में 2014 से पहले रह रहे 25000 से ज्यादा शरणार्थियों को मिलेगी भारत की नागरिकता

मध्यप्रदेश में करीब 25000 से ज्यादा ऐसे शरणार्थी हैं, जो 31 दिसंबर 2014 के पहले से लॉन्ग टर्म वीजा पर रह रहे थे. यह ऐसे शरणार्थी हैं, जो रजिस्टर्ड हैं. इसके अलावा और भी शरणार्थी हैं, मध्य प्रदेश में चोरी-छिपे रह रहे हैं.

भोपाल। हर साल 20 जून को ‘विश्व शरणार्थी दिवस’ (World Refugee Day) मनाया जाता है. आज का दिन दुनिया भर में शरणार्थियों की मदद की जाती है. इसके साथ ही उनकी स्थिति के प्रति जागरूकता फैलाई जाती है. हर साल रिफ्यूजी-डे के लिए एक थीम तय की जाती है. थीम के आधार पर ही शरणार्थी दिवस मनाया जाता है. इस वर्ष का थीम 'हम साथ उभरेंगे, सीखेंगे और चमकेंगे' (Together we heal, learn and shine) है.

क्यों मनाया जाता है विश्व शरणार्थी दिवस
शरणार्थियों की दुनिया भर एक बड़ी संख्या है. निरंतर प्रताड़ना, संघर्ष और हिंसा की चुनौतियों के कारण अपना देश छोड़कर उन्हें बाहर भागने को मजबूर होना पड़ता है. कईं देशों में उन्हें पनाह मिल जाती है. वहीं, कई देशों से निकाल भी दिया जाता है. बेशक, इन्हें पनाह मिल जाए, लेकिन उन्हें वह सम्मान और अधिकार नहीं मिल पाता. हर साल रिफ्यूजी-डे मनाने का मुख्य उद्देश्य शरणार्थी के साहस, शक्ति और संकल्प के प्रति सम्मान व्यक्त करना है.

इस दिन से वर्ल्ड रिफ्यूजी-डे की शुरुआत
दुनिया भर में 20 जून को वर्ल्ड रिफ्यूजी-डे के तौर पर मनाया जाता है. 4 जून 2000 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे मनाने की घोषणा की थी. तब शरणार्थी दिवस मनाने के लिए 17 जून की तारीख तय की गई थी. इसके बाद साल 2001 में संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को बदलकर 20 जून कर दिया. तब से यह 20 जून को ही मनाया जाता है.

भारत में हैं इन स्थानों के शरणार्थी
भारत में सीमावर्ती इलाकों से आकर शरणार्थी रह रहे हैं. जिन्हें लेकर अक्सर विवाद होते रहे हैं. यूएनएचसीआर (United Nations High Commissioner for Refugees) के मुताबिक भारत में तिब्बती, श्रीलंकाई, रोहिंग्या, अफगानी, सोमाली और अन्य शरणार्थी हैं. ये वो हैं जो भारत में एजेंसी के साथ पंजीकृत हैं. इनके अलावा ऐसे भी लाखों शरणार्थी हैं, जिनकी कोई पहचान नहीं है. इन्हीं शरणार्थियों का देश में बसेरा संकट का विषय माना जा रहा है.

क्यों होता है ज्यादा शरणार्थियों का विरोध
जिस देश में शरणार्थी शरण लेते हैं. वहां की आर्थिक स्थिति की अपनी मजबूरियां होती हैं. एक निश्चित आबादी का भरण-पोषण करते हुए अगर किसी देश पर अचानक ही लाखों की संख्या में आए शरणार्थियों की जिम्मेदारी आ जाए तो वहां की अर्थव्यवस्था चरमराने लगती है. यह भी देखा गया है कि बहुत जगहों पर बड़ी संख्या में आए शरणार्थियों की वजह से जुर्म में भी इजाफा हुआ है, क्योंकि पहचान पर ट्रैक रखना मुश्किल हो जाता है.

रोहिंग्या शरणार्थी
रोहिंग्या रिफ्यूजियों का जिक्र अचानक राष्ट्रीय चर्चा का विषय तब बना, जब 40,000 रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार से भागकर भारत में शरण लेने आ गए. इनमें से 16,500 रोहिंग्या मुसलामानों को संयुक्त राष्ट्र ने आईडी कार्ड दिए हैं, जिससे उन्हें हिंसा, अरेस्ट और गैरकानूनी रूप से पकड़ने से बचाया जा सके. भारत सरकार इसके साथ ही म्यांमार सरकार से भी बातचीत कर रही है कि वो रोहिंग्या लोगों को वापस अपने देश में शामिल करे.

MP में 2014 से पहले रह रहे 25000 से ज्यादा शरणार्थियों को मिलेगी भारत की नागरिकता

मध्यप्रदेश में करीब 25000 से ज्यादा ऐसे शरणार्थी हैं, जो 31 दिसंबर 2014 के पहले से लॉन्ग टर्म वीजा पर रह रहे थे. यह ऐसे शरणार्थी हैं, जो रजिस्टर्ड हैं. इसके अलावा और भी शरणार्थी हैं, मध्य प्रदेश में चोरी-छिपे रह रहे हैं.

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