हैदराबाद। पृथ्वी के चारों ओर वायुमंडल में एक परत होती है, जो हमें सूर्य की अल्ट्रा वायलेट किरणों से बचाव करती है. इसी परत को ओजोन परत (Ozone Layer) कहा जाता है. हर साल 16 सितंबर को पूरी दुनिया में विश्व ओजोन दिवस (World Ozone Day) मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य लोगों को जागरूक करना है. जिस तरह युद्ध में ढाल और कवच जीवन की रक्षा करता है, उसी तरह ओजोन की परत भी वायुमंडल की हानिकारक गैसों और शरीर को नुकसान देने वाली किरणों से बचाता है.
क्या है ओजोन गैस (What is ozone gas)
ओजोन एक वायुमण्डलीय गैस है या ऑक्सीजन (Oxygen) का एक प्रकार है. ओजोन ऑक्सीजन के तीन अणुओं (O3) से मिलकर बनती है. इसका रंग हल्का नीला होता है और इससे तीव्र गंध आती है. वर्ष 1957 में, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर गॉर्डन डोब्सन ने ओजोन परत की खोज की थी. ओजोन की परत धरती से 10 किलोमीटर की ऊंचाई से शुरू हो जाती है और 50 किलोमीटर तक मौजूद रहती है. यह सूर्य की घातक किरणों से धरती की रक्षा करती है. इंसानों में कैंसर पैदा करने वाली सूरज की पराबैंगनी किरणों (Ultra Violate Rays) को ओजोन की परत रोक सकती है. ऐसा कहा जा सकता है कि इस परत के बिना पृथ्वी पर जीवन मुमकिन नहीं होता.
कौन सी गैस ओजोन की परत को पहुंचाती हैं नुकसान (Harmful gases for ozone layer)
वातावरण में नाइट्रोजन ऑक्साइड (Nitrogen Oxide) और हाइड्रोकार्बन जब सूर्य की किरणों के साथ प्रतिक्रिया करते हैं, तो ओजोन प्रदूषक कणों का निर्माण होता है. वाहनों और फैक्ट्रियों से निकलने वाली कार्बन-मोनो-ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड व दूसरी गैसों की रासायनिक क्रिया भी ओजोन प्रदूषक कणों की मात्रा को बढ़ाती हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक, आठ घंटे के औसत में ओजोन प्रदूषक की मात्रा 100 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए. इसके अलावा एसी और फ्रीज (Freeze or Ac effect on ozone layer) के इस्तेमाल के दौरान निकलने वाली गैस ओजोन परत को नुकसान पहुंचाती है। हालांकि पिछले काफी समय से अब उस गैस का इस्तेमाल कम किया जाने लगा है, जिससे ओजोन परत को नुकसान पहुंचता है।
ओजोन डे मनाने की शुरुआत कैसे हुई? (World ozone day celebration)
साल 1970 के अंत में वैज्ञानिकों ने ओजोन परत में छेद होने का दावा किया था. इसके बाद 80 के दशक में दुनियाभर की कई सरकारों ने इस समस्या को लेकर चिंतन करना शुरू कर दिया. 1985 में ओजोन लेयर की रक्षा के लिए वियाना कन्वेंशन को अपनाया गया. इसके बाद 16 सितंबर, 1987 को संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में ओजोन छिद्र से उत्पन्न चिंता के निवारण के लिए कनाडा के मांट्रियल शहर (Montreal city) में दुनिया के 33 देशों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इसे 'मांट्रियल प्रोटोकॉल' कहा जाता है. इसकी शुरुआत एक जनवरी, 1989 को हुई. इस प्रोटोकॉल का लक्ष्य वर्ष 2050 तक ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले रसायनों पर नियंत्रण करना था. इसके बाद 19 दिसंबर, 1994 को संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने 16 सितंबर को ओजोन परत के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित किया. 16 सितंबर 1995 को पहली बार विश्व ओजोन दिवस मनाया गया.
वर्ल्ड ओजोन डे थीम 2021 (World Ozone Day Theme 2021)
इस साल की थीम है, "मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल - हमें, हमारे भोजन और टीकों को ठंडा रखना" है. इस वर्ष के विश्व ओजोन दिवस पर प्रकाश डाला गया है. मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल बहुत कुछ करता है - जैसे कि जलवायु परिवर्तन को धीमा करना और ठंडे क्षेत्र में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने में मदद करना, जो खाद्य सुरक्षा में योगदान देता है. इस साल की तीम को 197 देशों के द्वारा मंजूरी दी गई है.
ओजोन संरक्षण के लिए यह करने से बचें (How to save ozone layer)
- ऐसे सौंदर्य प्रसाधन और एयरोसोल और प्लास्टिक के कंटेनर, स्प्रे, जिसमें क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन (सीएफसी) विद्यमान हैं, उन उत्पादों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए.
- वृक्ष रोपण और घर के पिछवाड़े में उद्यान के रूप में गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.
- पर्यावरण के अनुकूल उर्वरक का प्रयोग किया जाना चाहिए.
- अपने वाहन से अत्यधिक धुआं उत्सर्जन को रोकने के लिय वाहनों का नियमित रख-रखाव कराना चाहिए. इस तरह से हम अपने वाहनों के पेट्रोल और कच्चे तेल का बचत कर सकते हैं.
- प्लास्टिक और रबर से बने टायर को जलाने से बचना चाहिए.
National Doctor's Day 2021: कैसे हुई इसकी शुरूआत, कौन हैं डॉक्टर बिधान चंद्र राय ?
कोरोना के कारण 2020 और 2021 में लगे लॉकडाउन (Lockdown effect on ozone layer) से ओजोन परत को काफी फायदा पहुंचा है. वैज्ञानिकों की रिसर्च कहती है, दुनिया के देशों में लॉकडाउन लगने के बाद प्रदूषण में 35 फीसदी की कमी और नाइट्रोजन ऑक्साइड में 60 फीसदी की गिरावट आई. इसी दौरान ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचाने वाले कार्बन का उत्सर्जन भी 1.5 से 2 फीसदी तक घटा और कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर भी कम हुआ. वैज्ञानिकों का कहना है कि लॉकडाउन के कारण आर्कटिक के ऊपर बना दस लाख वर्ग किलोमीटर की परिधि वाला छेद बंद हो गया है.