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भोपाल: जड़ी-बूटी की परंपरा बचाने के लिए पांच दिवसीय कार्यशाला का आयोजन

भारत में आयुर्वेद से लेकर जड़ी-बूटियों की परंपरा बहुत पुरानी है. मॉडर्न साइंस से पहले इलाज के लिए जड़ी-बूटी ही एक मात्र सहारा था. समय के साथ जड़ी-बूटियों के इलाज की परंपरा धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है

जड़ी बूटी
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Published : Feb 21, 2019, 12:00 PM IST

भोपाल। भारत में आयुर्वेद से लेकर जड़ी-बूटियों की परंपरा बहुत पुरानी है. मॉडर्न साइंस से पहले इलाज के लिए जड़ी-बूटी ही एक मात्र सहारा था. समय के साथ जड़ी-बूटियों के इलाज की परंपरा धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है. इस धरोहर को बचाने के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में पांच दिवसीय जनजातीय उपचार कार्यशाला का आयोजन किया गया है.

इस आयोजन में देश भर से करीब 23 राज्यों के वैद्य शामिल हुए. उत्तराखंड, केरल, राजस्थान, मध्यप्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेशों के लोग आज भी जड़ी-बूटियों पर भरोसा करते हैं और इसे ही आगे बढ़ाना चाहते हैं. जोकि इस कार्यशाला में शामिल हुए हैं. राजधानी में आयोजित कार्यशाला का उद्देश्य यही है कि इन जड़ी-बूटियों और इनका व्यापार करने वाले लोगों को आगे बढ़ाया जाये.

मानव संग्रहालय के पीआरओ अशोक मिश्रा ने बताया कि इसे आयोजित करने का उद्देश्य यही है कि जो जड़ी-बूटियां हैं, उनकी जानकारी आम लोगों तक पहुंचे. गौरतलब है कि भारत के जंगलों में ऐसी कई बहुमूल्य और अनोखी जड़ी-बूटियां आज भी पाई जाती हैं. जिनसे बड़ी से बड़ी बीमारियों का इलाज संभव है. इनकी जानकारी ठीक तरीके से नहीं हो पाने के कारण ये अभी भी गांव की सीमा तक ही सिमटी हुई है.

भोपाल। भारत में आयुर्वेद से लेकर जड़ी-बूटियों की परंपरा बहुत पुरानी है. मॉडर्न साइंस से पहले इलाज के लिए जड़ी-बूटी ही एक मात्र सहारा था. समय के साथ जड़ी-बूटियों के इलाज की परंपरा धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है. इस धरोहर को बचाने के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में पांच दिवसीय जनजातीय उपचार कार्यशाला का आयोजन किया गया है.

इस आयोजन में देश भर से करीब 23 राज्यों के वैद्य शामिल हुए. उत्तराखंड, केरल, राजस्थान, मध्यप्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेशों के लोग आज भी जड़ी-बूटियों पर भरोसा करते हैं और इसे ही आगे बढ़ाना चाहते हैं. जोकि इस कार्यशाला में शामिल हुए हैं. राजधानी में आयोजित कार्यशाला का उद्देश्य यही है कि इन जड़ी-बूटियों और इनका व्यापार करने वाले लोगों को आगे बढ़ाया जाये.

मानव संग्रहालय के पीआरओ अशोक मिश्रा ने बताया कि इसे आयोजित करने का उद्देश्य यही है कि जो जड़ी-बूटियां हैं, उनकी जानकारी आम लोगों तक पहुंचे. गौरतलब है कि भारत के जंगलों में ऐसी कई बहुमूल्य और अनोखी जड़ी-बूटियां आज भी पाई जाती हैं. जिनसे बड़ी से बड़ी बीमारियों का इलाज संभव है. इनकी जानकारी ठीक तरीके से नहीं हो पाने के कारण ये अभी भी गांव की सीमा तक ही सिमटी हुई है.

Intro:भोपाल- भारत में आयुर्वेद से लेकर जड़ी बूटियों की परंपरा बहुत पुरानी है। मॉडर्न साइंस के आने के पहले से ही भारतीय अपने बीमारियों के इलाज के लिए जड़ी बूटियों पर निर्भर करते थे, पर समय के साथ साथ जड़ी बूटियों के इलाज किए परंपरा धीरे-धीरे खत्म होते जा रही है।
भारत की धरोहर को बचाने के लिए राजधानी के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में पांच दिवसीय जनजातीय उपचार को की कार्यशाला का आयोजन किया गया है जिसमें देशभर से करीब 23 राज्यों के वैद्य शामिल हुए हैं।


Body:उत्तराखंड,केरल,राजस्थान, मध्य प्रदेश,पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेशों के वह लोग आज भी जड़ी बूटियों के इलाज पर विश्वास करते हैं और इसे ही आगे बढ़ाना चाहते हैं इस कार्यशाला में शामिल हुए हैं।
मानव संग्रहालय के पी आर ओ अशोक मिश्रा ने इस कार्यक्रम के बारे में बताया कि इसे आयोजित करने का उद्देश्य यही है कि जो जड़ी बूटियां है उनकी जानकारी आम लोगों तक पहुंचे और इसके फायदे उनके काम आए।


Conclusion:गौरतलब है कि भारत के जंगलों में ऐसी कई बहुमूल्य और अनोखी जड़ी बूटियां आज भी पाई जाती है जिनसे बड़ी से बड़ी बीमारियों का इलाज भी संभव है पर इनकी जानकारी ठीक तरीके से ना हो पाने के कारण यह अभी भी गांव की सीमा तक ही सिमटी हुई है।
राजस्थानी में आयोजित कार्यशाला का उद्देश्य यहीं है कि इन जड़ी-बूटियों को और इनका व्यापार करने वाले लोगों को आगे बढ़ाया जाए और इनका लाभ आमजन तक पहुंचे।
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