भोपाल| कोरोना वायरस की वजह से इस बार ना तो कहीं बारात देखने को मिली और ना ही ढोल धमाकों के साथ बारातियों का स्वागत देखने को मिला है. लेकिन इस विषम परिस्थितियों के बीच भी बुजुर्गों के द्वारा वर्षों से चली आ रही अपनी परंपराओं का निर्वहन जरूर किया गया है. हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन गुड्डा-गुड्डी की शादी करने का रिवाज हजारों वर्षों से चला आ रहा है. ऐसी ही शादी राजधानी के कोलार स्थित अपना घर वृद्ध आश्रम में देखने को मिली है.
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अपना घर वृद्धा आश्रम में रह रहे बुजुर्गो के द्वारा अक्षय तृतीया पर होने वाली गुड्डा-गुड्डी की शादी की तैयारियां पिछले 5 दिनों से लगातार की जा रही थी, हालांकि कोरोना वायरस के संकट को देखते हुए किसी भी व्यक्ति को आने का निमंत्रण नहीं दिया गया था. केवल वृद्ध आश्रम में रहने वाले बुजुर्ग ही इसमें शामिल हो रहे थे . बुजुर्गों के द्वारा गुड्डा-गुड्डी की शादी के लिए विशेष तैयारियां की गई थी.
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रात के समय यहां पर एक कमरे से दूसरे कमरे में बारात का आगमन हुआ और फिर पूरे विधि विधान के साथ गुड्डा-गुड्डी की शादी को संपन्न कराया गया हालांकि इस दौरान बुजुर्गों ने भी सोशल डिस्टेंसिंग का विशेष ध्यान रखा. अपना घर वृद्ध आश्रम की संचालिका माधुरी मिश्रा ने जानकारी देते हुए बताया कि हर वर्ष वृद्ध आश्रम में गुड्डा गुड्डी की शादी आयोजित की जाती है.
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ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी जीवित है परंपरा
गांव में ऐसी परंपरा है कि जिसके बेटा नहीं है, वह गुड्डा की बारात लेकर उस व्यक्ति के घर जाता है, जिसके कन्या नहीं होती . कन्याहीन माता-पिता बारात का स्वागत करके उसके गुड्डे के साथ अपनी गुड़िया का ब्याह रचाते हैं . इसमें रिश्तेदार, गांव वाले जोशो खरोस से शामिल होते हैं. आज भी कई गांवों में यह परंपरा जीवित है. शहरी क्षेत्रों में तो यह परंपरा ना के बराबर ही दिखाई देती है.
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बता दें कि अक्षय तृतीया के दिन भगवान नारायण और लक्ष्मी के विवाह का दिन माना जाता है इसलिए जितने भी मांगलिक कार्य इस दिन किए जाते हैं वह अत्यंत शुभ माने जाते हैं. भगवान नारायण लक्ष्मी की याद में गुड्डे गुड़ियों की शादी धूमधाम से मनाने का रिवाज है .