भोपाल। वैसे ब्याह और बारात के समय फूफाओं के रूठने का चलन है, लेकिन बीजेपी में इन दिनों दीदी और ताई रुठ रही हैं. अपनी निजी पीड़ा में भी ये नेता बीजेपी के कई कार्यकर्ताओं के दर्द की बयानी कर गई हैं. उन कार्यकर्ताओं की 2020 के बाद बड़ी तादात में जो कार्यकर्ता हाशिए पर चला गया. जन आशीर्वाद यात्रा में अनदेखी को लेकर पहले उमा भारती ने बीजेपी की याददाश्त दुरुस्त करने के अंदाज में कहा था कि "2003 में एमपी में बीजेपी की सत्ता उन्हीं की बदौलत आई थी." उमा भारती अभी अपने बयानों का सार समझा ही रही थीं कि ताई सुमित्रा महाजन का सवाल आ गया. सवाल ये कि जिन लोगों ने कभी पार्टी नहीं बदली उन्हें कभी कोई महत्व क्यों नहीं मिलता. "महाजन ने कहा कि पार्टी में ऐसे हजारों लोग हैं, उनमें से एक मैं भी हूं."
चुनाव के बीच पहले दीदी फिर ताई क्यों रूठी: बीजेपी में हाशिए पर गईं दो महिला नेत्रियों की नाराजगी को आप निजी असंतोष के दायरे में ले भी लाएं, लेकिन इस बात से इंकार नहीं कर सकते, कि मध्यप्रदेश के दो अलग-अलग हिस्सों का नेतृत्व करने वाली ये नेत्रियों का एक समय मजबूत कार्यकर्ता नेटवर्क और जनता के बीच प्रभाव रहा है. उमा भारती लोधी वोट बैंक के साथ अगर बुंदेलखंड की राजनीति को प्रभावित करती रही हैं. तो वही प्रभाव सुमित्रा महाजन का मालवा क्षेत्र में रहा. लगातार आठ बार सांसद रही सुमित्रा महाजन लोकसभा अध्यक्ष के पद तक पहुंची है. अटल-आडवाणी के दौर की बीजेपी में सुषमा स्वराज सुमित्रा महाजन के साथ उमा भारती ये वो नेत्रियां कही जाती हैं, जिन्होंने पार्टी को अपनी मेहनत से सींचा है. खुद उमा भारती की बदौलत एमपी में दस साल की दिग्विजय सिंह सरकार के बाद सत्ता पलट हुआ था. जिसके बाद लगातार बीजेपी एमपी में सत्ता के रिकार्ड बनाती रही.
क्या उपेक्षित कार्यकर्ता को आवाज़ दे पाएंगी ये नेत्रियां: सवाल ये है कि जिस ढंग से उमा भारती ने जन आशीर्वाद यात्रा में अपनी गैर मौजूदगी को लेकर कहा था कि "अगर सिंधिया ने बीजेपी को सत्ता दिलाई है, तो मैंने भी पार्टी को सत्ता दिलाई है." उमा भारती जिस लोधी समाज से आती हैं, वो 90 से ज्यादा सीटों पर एमपी में सीधा असर रखता है, लेकिन सच्चाई ये भी है कि उमा भारती की ख्वाहिश पर ही एन चुनाव के पहले उनके भतीजे को मंत्रीमण्डल में शामिल किया गया. पार्टी ने सारे मापदंड किनारे कर ये फैसला लिया. सुमित्रा महाजन यानि ताई को लेकर बीजेपी के कार्यकर्ता में सम्मान के साथ संवेदना का भाव भी है. ताई ने जिस तरह से कहा कि "जो कहीं नहीं गया, पार्टी छोड़कर उसे कभी महत्व क्यों नहीं मिलता." इसका एक आशय ये भी है कि जो पार्टी छोड़कर गए और आए या जो पार्टी में आए, उन्हें बीजेपी सिर माथे बैठा रही है. समर्पित कार्यकर्ता किनारे है, लेकिन सवाल ये कि इसका असर कितना होगा. सुमित्रा महाजन भी बीजेपी के उन नेताओं में से हैं, जिन्हें पार्टी ने लोकसभा अध्यक्ष जैसे पद तक पहुंचाया है. तो पार्टी के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता नाम ना छापने की शर्त पर कहते हैं कि "उमा भारती और सुमित्रा महाजन जैसी नेता तीन दशक से ज्यादा सत्ता की सियासत में बीजेपी में रही हैं. एक मुख्यमंत्री से लेकर केन्द्रीय मंत्री दूसरी लोकसभा अध्यक्ष के पद तक पहुंची हैं. सवाल ये है कि बीजेपी में पीढ़ी परिवर्तन तो होगा ही ना. फिर इसे असंतोष की निगाह से क्यों देखा जाए."
सबकी इच्छा से पार्टी मे भूमिका तय होना संभव नहीं: पार्टी के वरिष्ठ नेता दीपक विजयवर्गीय कहते हैं "पार्टी सभी कार्यकर्ताओं की भूमिका तय करती है. उसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर प्रधानमंत्री से लेकर पोलिंग बूथ तक के कार्यकर्ता शामिल हैं. कब किस कार्यकर्ता को क्या जिम्मेदारी दी जाएगी. उस समय व्यवस्था में मौजूद टीम ये तय करती है, किसी वरिष्ठ नेता या कार्यकर्ता की किसी भूमिका के सबंध में कोई अपेक्षा हो सकती है, लेकिन इतने बड़े राजनीतिक दल में सभी की इच्छा के मुताबिक भूमिका तय कर पाना संभव नहीं है.
एमपी की दो नेत्रियां सियासत का सुनहरा काल: उमा भारती 1984 से चुनावी राजनीति में हैं और तब से अब तक सांसद मुख्यमंत्री केन्द्रीय मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रही हैं. 2019 तक केन्द्रीय मंत्री जैसे पद पर रहीं. इसी तरह से सुमित्रा महाजन भी 1983 से लेकर 2019 तक आठ बार लगातार सांसद रहने के बाद लोकसभा अध्यक्ष के पद तक पार्टी में पहुंची.