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बुद्ध की कहानियों का राजधानी में हुआ मंचन, लोगों ने की सराहना

भगवान बुद्ध से जुड़ी कहानियों का राजधानी भोपाल में मंचन किया गया. ये आयोजन 3 दिन के लिए था, जिसके आखिरी दिन ब्रह्मदत्त और चुलननिदय बंदर की कहानी को दर्शकों के सामने पेश किया गया.

राजधानी के मंच पर हुआ बुद्ध की कहानियों का मंचन
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Published : May 21, 2019, 12:55 PM IST

भोपाल| 3 दिवसीय यशोधरा समारोह का समापन बुद्ध की जातक कथाओं पर आधारित नृत्य नाटक "वृत्ति नाशक" के साथ हुआ, जिसे देखने के लिए बड़ी तादाद में दर्शक पहुंचे. इस समारोह में 3 दिनों तक भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़ी कई कहानियों का मंचन किया गया.

राजधानी के मंच पर हुआ बुद्ध की कहानियों का मंचन

आखिरी दिन वाराणसी के ब्रह्मदत्त और चुलननिदय बंदर की कहानी का मंचन किया गया. ये आयोजन मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित किया गया था. इस नाटक के जरिए लोगों को ये संदेश दिया गया कि केवल अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए किसी दूसरे का नुकसान नहीं करना चाहिए. जीवन सबका है, आत्मा सबकी है, इसलिए इस दुनिया में सभी को जीने का हक देना चाहिए.

भोपाल| 3 दिवसीय यशोधरा समारोह का समापन बुद्ध की जातक कथाओं पर आधारित नृत्य नाटक "वृत्ति नाशक" के साथ हुआ, जिसे देखने के लिए बड़ी तादाद में दर्शक पहुंचे. इस समारोह में 3 दिनों तक भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़ी कई कहानियों का मंचन किया गया.

राजधानी के मंच पर हुआ बुद्ध की कहानियों का मंचन

आखिरी दिन वाराणसी के ब्रह्मदत्त और चुलननिदय बंदर की कहानी का मंचन किया गया. ये आयोजन मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित किया गया था. इस नाटक के जरिए लोगों को ये संदेश दिया गया कि केवल अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए किसी दूसरे का नुकसान नहीं करना चाहिए. जीवन सबका है, आत्मा सबकी है, इसलिए इस दुनिया में सभी को जीने का हक देना चाहिए.

Intro:बौद्ध की जातक कथा" वृत्ति नाशक "के साथ हुआ यशोधरा महोत्सव का समापन



भोपाल | मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित यशोधरा समारोह की समापन संध्या में बौद्ध की जातक कथाओं पर आधारित नृत्य नाटिका "वृत्ति नाशक " की प्रस्तुति के साथ इस समारोह का समापन हुआ इस नाटक का निर्देशन वैशाली गुप्ता के द्वारा किया गया इस नाटक का नाट्य रूपांतरण सुनील मिश्रा के द्वारा किया गया 3 दिनों से चले आ रहे यशोधरा महोत्सव में 3 दिनों तक कलाकारों के द्वारा अलग-अलग नाट्य प्रस्तुति प्रस्तुत की गई इन तीनों ही दिनों में भगवान गौतम बुद्ध से परिचय कराती हुई इन नाट्य प्रस्तुति को देखने के लिए भारी संख्या में दर्शक भी पहुंचे और उन्होंने कलाकारों के द्वारा प्रस्तुत की गई इन नाट्य प्रस्तुति की प्रशंसा की .



Body:समापन अवसर पर आयोजित नाट्य प्रस्तुति वृत्ति नाशक नाटक में बताया गया कि वाराणसी में ब्रह्मदत्त के राज्य के समय हिमालय में एक ननिदय नामक बंदर था उसका छोटा भाई चुलननिदय था वे दोनों 80 हजार बंदरों के स्थल पर अपनी अंधी माता की सेवा करते थे मां को झाड़ी में सुला कर दे जंगल में मीठे फल लेने जाया करते थे जंगल से मीठे मीठे फल लाकर भी अपनी मां को दिया करते थे लेकिन इसके बावजूद भी वह भूख के कारण दुबली होती चली जा रही थी तब उनके पुत्र ने उनसे पूछा कि हम तुम्हें रोज फल भेजते हैं फिर भी तुम क्यों बीमार दिखाई दे रही हो तब मां ने कहा कि मुझे फल कभी मिलते ही नहीं है पुत्र ने सोचा यदि ऐसा ही चलता रहा तो मां जिंदा नहीं रह पाएगी उन्होंने अपने छोटे भाई को कहा कि तुम नायक बन जाओ मैं मां की सेवा करूंगा उसने कहा मैं नहीं बन सकता मैं भी मां की सेवा करूंगा दोनों ही अपने दल को छोड़कर माता की सेवा में जुट जाते हैं वे अपनी माता को लेकर हिमालय छोड़कर एक बड़ के पेड़ के नीचे रह कर सेवा करने लगते हैं .





Conclusion:वाराणसी का छात्र तक्षशिला से विद्या पाकर वापस आता है वह अपना घर बस आता है और फिर विचार करता है कि किसी दूसरे काम से जीवन नहीं चलेगा यदि जीवन चलाना है तो धनुष से ही जीवन चल सकता है वह गांव की सीमा में रहते हुए धनुष तरकस बांधकर जंगल में जाकर पशुओं को मारकर उनके मां से जीवन यापन करता है एक दिन खाली हाथ लौट रहा होता है तभी वह वटवृक्ष के पास आ जाता है उस समय दोनों बंदर और उसकी मां वहीं पर मौजूद थे बंदर मां के पीछे डालियों में छिपे हुए थे मां तो काफी बड़ी हो चुकी थी उसे कोई क्या मारेगा यह सोचकर शिकारी ने सोचा खाली हाथ जाने की बजाय इस बंदरिया को ही मार कर ले जाता हूं उसने धनुष था ना तो बड़े बंदर ने छोटे से कहा कि मां के लिए मैं मर जाता हूं तो मां की देखरेख करना मां को बचाने के लिए शिकारी से वह कहता है कि अरे मेरी मां को मत मारो वह बुढ़ापे में पहले से ही दुबली हो गई है इसकी जगह मुझे मार लो और व्हाय उछलकर शिकारी के बाण के निशाने पर बैठ जाता है शिकारी ने उसे मार कर फिर बंदरिया पर निशाना साधा तो उसे बचाने छोटा बंदर सामने आ गया और अपनी मां के सामने जाकर बैठ गया लेकिन शिकारी लालच में आकर तीनों को मार कर घर ले जाता है उस पापी के घर पर बिजली गिर पड़ती है घर के साथ उसकी औरत और दो लड़के जल जाते हैं जैसे ही वह अपने गांव पहुंचता है उसे एक व्यक्ति समाचार देता है कि उसका घर पूरी तरह से जल चुका है उसके घर पर बिजली गिरी है उसके घर पर बड़ा सा गड्ढा हो गया है और वहां आग निकल रही है तभी उसे अपने आचार्य का उपदेश याद आता है तब उन्होंने कहा था कि कठोर और अति साहसी लोगों का समय बदलता रहता है वह दुखी होकर नष्ट हो जाते हैं पछताने जैसा काम कभी मत करना .


तथागत बौद्ध के अनन्य जन्मों के साथ जुड़ी जातक कथाओं का संसार बहुत बड़ा है वे इन के माध्यम से आदि काल से मनुष्य के लिए कोई ना कोई सिख कोई ना कोई प्रेरणा देते रहे हैं मनुष्य जीवन की आज सफलता के पीछे कितने कारण कैसी भी स्थितियां कैसा स्वभाव उत्तरदाई है इसका नैतिक बौद्ध मनुष्य को कभी नहीं हो पाता है यदि होता तो अपना जीवन संवारने के लिए महापुरुषों का जीवन उनकी वाणी उनके आचरण को कभी नजरअंदाज ना किया जाता तथागत बौद्ध ने सृष्टि में विचरण करने वाले अनेक हिंसक जीवो की योनि मैं भी जन्म लिया लेकिन वह प्राणी जीवन जीते हुए कई लोगों को सीख देता रहा उन्होंने वृद्धि प्रगति के विपरीत संत और ऋषि मुनियों सा आचरण प्रस्तुत किया जो आज भी प्रेरणादाई है .

इस नाटक के माध्यम से भी यही प्रस्तुत करने की कोशिश की गई कि केवल अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए किसी दूसरे का नुकसान नहीं करना चाहिए जीवन सब का है आत्मा सब की है इसलिए इस दुनिया में सभी को जीने का हक़ देना चाहिए .
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