भोपाल। राज्यों के बीच बासमती चावल के जीआई टैग को लेकर जारी संघर्ष अब सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा है, जहां शिवराज सरकार ने दावा किया है कि प्रदेश में ऐसे कई स्थान मौजूद हैं, जहां परंपरागत रूप से बासमती चावल की खेती की जाती है. हालांकि पूर्व में प्रदेश के पक्ष में फैसला लिया गया था, लेकिन बाद में मद्रास उच्च न्यायालय ने पक्ष को खारिज कर दिया था.
मद्रास हाईकोर्ट ने 27 फरवरी 2020 को बासमती चावल की जीआई टैग सूची से मध्य प्रदेश को बाहर कर दिए जाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया था, जिसके बाद फैसले को चुनौती देने के लिए प्रदेश के कृषि एवं कल्याण मंत्री कमल पटेल ने इस मामले में तेजी से निर्णय लेकर कानूनी संरक्षण की पहल की है.
कृषि मंत्री कमल पटेल ने बासमती चावल को राज्य के खाते में लाने के लिए प्रभावी पहल की है. कृषि विभाग ने 27 मई को अधिवक्ता जे.सांई कौशल को सुप्रीम कोर्ट में जाने के लिए नियुक्त किया है. एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है. दूसरे ही दिन जे.सांई कौशल ने पूरे प्रकरण की संक्षेपिका तैयार कर सरकार के अवलोकनार्थ प्रस्तुत कर दी है.
जीआई टैग क्या है?
कॉपीराइट, पेटेंट या फिर ट्रेडमार्क की तरह जीआई एक बौद्धिक संपदा अधिकार है, जो किसी उत्पाद को एक खास टैग प्रदान करता है. दरअसल जीआई टैग यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी खास उत्पाद किसी खास क्षेत्र में पाई जाती है. इसके साथ ही यह टैग उन उत्पादों के किसी दूसरे जगह पर गैर कानूनी उपयोग को रोकता है. जीआई टैग को जियोग्राफिकल इंडेक्स टैग कहते हैं.
जीआई टैग से वंचित मध्य प्रदेश
सन् 1999 में पारित हुए रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत 'जियोग्राफिकल इंडेक्स ऑफ गुड्स' की व्यवस्था लागू की गई थी, जिसके तहत देश के किसी भी राज्य में पाए जाने वाली किसी भी वस्तु का कानूनी हक उस राज्य को दिया जाता है. मध्य प्रदेश में भी बासमती चावल का उत्पादन बड़ी मात्रा में होता है, लेकिन प्रदेश अभी तक जीआई टैग पाने से वंचित है.
प्रकरण की गंभीरता और समय को देखते हुए शासन स्तर पर तत्परता से विचार किया गया है. संक्षेपिका को अप्रूव कर दिया गया है. बासमती चावल पर प्रदेश के दावों का मामला अब सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में लाया गया है. जल्द ही मामले को लेकर सुनवाई शुरू की जाएगी.
ज्योलॉजीकल इंडीकेशन इन इंडिया (जीआई-रजिस्ट्रार) ने 15 मार्च को फैसला दिया गया था कि बासमती का जीआई-टैग मध्य प्रदेश को नहीं दिया जा सकता, क्योंकि इसके उत्पादन के प्राचीन रिकॉर्ड कमजोर हैं.
इस फैसले को प्रदेश सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जहां से 23 अप्रैल को स्टे मिल गया था. ज्योलॉजीकल इंडीकेशन इन इंडिया ने पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों में बासमती की किस्म माना था. मध्य प्रदेश में बड़े पैमाने पर वर्ष 1906 से बासमती होता है, लेकिन उसे नकार दिया गया था.
सरकार ने सन् 1908 से अब तक बासमती की खेती प्रदेश के 13 जिलों में होने के दस्तावेज पेश किए थे, जिसमें मुरैना, भिंड, ग्वालियर, श्योपुर, दतिया, शिवपुरी, गुना, विदिशा, रायसेन, सीहोर, होशंगाबाद, जबलपुर और नरसिंहपुर में बासमती का उत्पादन होता है.
मध्य प्रदेश में बासमती चावल के लिए जीआई टैग पाने की लड़ाई लंबे अरसे से चली आ रही है. 2010 में कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादन निर्यात विकास प्राधिकरण (एपिडा) ने बासमती चावल के लिए जीआई टैग मांगा था, जिसमें प्रदेश को अनदेखा कर दिया गया था. इसके बाद से ही प्रदेश की जीआई टैग पाने की लड़ाई जारी है. उत्पादों की गुणवत्ता, विभिन्न मानकों पर खरा उतारने, उत्पादों की पैकिजिंग में सुधार लाने सहित कई अन्य जिम्मेदारियां एपिडा के ही कंधों पर होती हैं.