भोपाल : टाइगर लवर्स के लिए बड़ी खुशखबरी है क्योंकि अब टाइगर सफारी के लिए भोपाल के लोगों को दूर नहीं जाना होगा. दरअसल, राजधानी भोपाल से सटा रातापानी का जंगल अब मध्यप्रदेश का आठवां और देश का 57 वां टाइगर रिजर्व होगा. राज्य सरकार ने इसे लेकर अधिसूचना जारी कर दी है. रातापानी टाइगर रिजर्व की सीमा भोपाल से महज 15 किलोमीटर की दूर से ही शुरू हो जाएगी. इस टाइगर रिजर्व का कुल क्षेत्रफल 1271.456 वर्ग किलोमीटर होगा. इसमें 3 जिले भोपाल, रायसेन और सीहोर का क्षेत्र शामिल है.
माधव नहीं रातापानी होगा प्रदेश का 8वां टाइगर रिजर्व
यूं तो केन्द्र सरकार ने यहां के टाइगर्स को देखते हुए 17 साल पहले ही इसे टाइगर रिजर्व बनाने की मंजूरी दे दी थी, लेकिन राज्य सरकार ने इसे अब टाइगर रिजर्व बनाने के लिए अधिसूचना जारी की है. इसके पहले वन विभाग ने माधव नेशनल पार्क को आठवां टाइगर रिजर्व बताते हुए इसे एनटीसीए की तकनीकी स्वीकृति मिलने के संबंध में प्रेसनोट जारी किया था, लेकिन इसके पहले रातापानी को टाइगर रिजर्व को अधिसूचित कर दिया गया है.
रातापानी के जंगलों में इतने टाइगर
2022 के टाइगर सेंसस के मुताबिक रातापानी में 56 बाघ थे, जबकि पगमार्क और अन्य चिन्हों के आधार पर रातापानी के जंगल में 70 से ज्यादा बाघों का अनुमान है. रातापानी अपने आप में अनोखा टाइगर रिजर्व होगा. यह पहला टाइगर रिजर्व होगा, जो किसी राज्य की राजधानी से बेहद सटा हुआ है. यह टाइगर रिजर्व इंटरनेशनल एयरपोर्ट के भी सबसे पास है. एयरपोर्ट से एक घंटे की ड्राइविंग कर यहां पहुंचा जा सकता है. यह देश का पहला टाइगर रिजर्व होगा, जिसके अंदर एक वर्ल्ड हेरिटेज साइट भीम बेटका भी मौजूद है. इसके वन परिक्षेत्र में नर्मदा नदी का आंवला घाट और सलकनपुर मंदिर भी आता है.
सुरक्षा के लिए बनेगी 10 फीट ऊंची फेसिंग
राजधानी भोपाल से रातापानी की सीमा करीबन 100 किलोमीटर लंबी है. रातापानी से भोपाल के कलियासोत, नीलबढ़ इलाकों में बाघों का काफी भी मूवमेंट रहा है. ऐसे में राजधानी भोपाल को सुरक्षित बनाने के लिए रातापानी की सीमा पर 10 फीट ऊंची फेंसिंग लगाई जाएगी. कई हिस्सों में इसे पहले लगाया जा चुका है. इसके साथ ही टाइगर्स की पेट्रोलिंग के लिए 10 फीट चौड़ा मार्ग भी बनाया जाएगा.
रातापानी टाइगर रिजर्व से भोपाल को फायदा
रातापानी को नेशनल टाइगर रिजर्व बनाए जाने से भोपाल को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलेगी. इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा. इसके साथ ही बाघों की सुरक्षा के लिए एनटीसीए से बजट मिलेगा और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे. आरटीआई एक्टविस्ट अजय दुबे कहते हैं, '' हमारी एक दशक पुरानी मांग पूरी हुई है. 2014 से हम इसके लिए हाईकोर्ट गए थे. इससे अब बाघों की सुरक्षा संरक्षण और बेहतर प्रबंधन हो सकेगा.''