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एमपी की सभी लोकसभा सीटें जीतने में छिंदवाड़ा बड़ा रोड़ा, क्या शिवराज लड़ेंगे यहां से चुनाव

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद सीएम शिवराज हारी सीटों पर विशेषकर छिंदवाड़ा जिले में सक्रिय हैं. उनका संकल्प है कि लोकसभा चुनाव में 29 की 29 सीटें इस बार पीएम मोदी को गिफ्ट करना है. इस संकल्प में छिंदवाड़ा सीट बड़ा रोड़ा है. ऐसे में ये सियासी चर्चा जोर पकड़ रही है कि शिवराज सिंह चौहान लोकसभा चुनाव में उतरकर छिंदवाड़ा में कमलनाथ को सीधी चुनौती देंगे. इसी का विश्लेषण करती है ये रिपोर्ट...

Shivraj contest loksabha elections from chhindwara
छिंदवाड़ा बड़ा रोड़ा, क्या शिवराज लड़ेंगे यहां से चुनाव
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Dec 11, 2023, 2:36 PM IST

छिंदवाड़ा बड़ा रोड़ा, क्या शिवराज लड़ेंगे यहां से चुनाव

भोपाल। विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बंपर जीत मिली है. प्रदेश के 19 जिलों में कांग्रेस का सफाया हो गया. इसके बाद भी छिंदवाड़ा में हार की कसक बीजेपी और खासतौर से शिवराज सिंह चौहान के मन में है. छिंदवाड़ा जिले की 7 में से एक भी सीट पर बीजेपी जीत दर्ज नहीं कर सकी. इसलिए चुनाव परिणाम आने के बाद शिवराज सिंह चौहान सबसे पहले छिंदवाड़ा पहुंचे और वहां बयान दिया कि इस बार लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के गले में 29 कमल के फूलों (29 लोकसभा सीट) की माला डालना है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या शिवराज सिंह चौहान इस बार छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर कमलनाथ को पटखनी देने चुनाव मैदान में उतरने जा रहे हैं.

छिंदवाड़ा बीजेपी की राह में रोड़ा : बता दें कि 29 कमल की माला पूरी करने में छिंदवाड़ा ही सबसे बड़ा रोड़ा है. राजनीतिक विशेषज्ञ भी मानते हैं कि कमलनाथ को सबसे बड़ी चुनौती उनके गढ़ में कोई दे सकता है तो वह शिवराज सिंह चौहान ही हैं. बता दें कि विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने अलग-अलग क्षेत्रों का दौरा किया है. इसकी शुरूआत उन्होंने छिंदवाड़ा से की. जीत के लिए लाडली बहनों का आभार जताने उन्होंने महिलाओं के पैर धोए, कार्यकर्ता के घर खाना खाया और बयान दिया कि यह उनके मिशन 29 की शुरूआत है. शिवराज सिंह ने कहा कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 29 की 29 सीटें जीतकर नरेन्द्र मोदी के गले में 29 कमल के फूलों की माला डालना है.

केवल पटवा ही जीत सके : पिछले चुनाव में बीजेपी प्रदेश की 29 में से 28 सीटें जीत चुकी है, लेकिन इसके बाद भी 29 कमल की माला में छिंदवाड़ा का कमल खिलने से रह गया था. बीजेपी इस सीट को जीतने के लिए प्रहलाद पटेल तक को आजमा चुकी है. बीजेपी में इस सीट को जीतने का करिश्मा सिर्फ शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक गुरु सुंदरलाल पटवा ही कर सके हैं. विधानसभा चुनाव के बाद शिवराज जिस तरह सबसे पहले छिंदवाड़ा पहुंचे. तो क्या यह संदेश है कि शिवराज छिंदवाड़ा से लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं.

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक : इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अजय बोकिल कहते हैं कि छिंदवाड़ा लोकसभा सीट जीतना बीजेपी के लिए हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है. लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग मुद्दों पर लड़े जाते हैं लेकिन यह नहीं कहा जा सकता सकता कि छिंदवाड़ा लोकसभा सीट जीतना मुश्किल है. यदि भाजपा एक मजबूत चेहरे को इस सीट से चुनाव मैदान में उतरती है तो इस सीट को जीता जा सकता है. 2019 के लोकसभा चुनाव में नकुलनाथ छिंदवाड़ा सीट से सिर्फ 37000 वोटों से ही जीत सके थे. ऐसे में यदि पार्टी शिवराज सिंह को छिंदवाड़ा से चुनाव मैदान में उतारती है तो चुनाव बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाएगा हो सकता है. कमलनाथ को अपनी सीट बचाना मुश्किल हो जाएगा.

छिंदवाड़ा की सभी सीटों पर कांग्रेस जीती : बता दें कि छिंदवाड़ा लोकसभा सीट में 7 विधानसभा सीटें जुन्नारदेव, अमरवाड़ा, चौरई, सौंसर, छिंदवाड़ा, परासिया, पांढुर्णा आती हैं. सभी सातों विधानसभा सीटें बीजेपी की पूरी कोशिश के बाद भी कांग्रेस के ही खाते में गई हैं. छिंदवाडा लोकसभा की बात करें तो बीजेपी सिर्फ एक बार ही यहां अपना खाता खोल पाई. पिछले करीबन 70 सालों में इस लोकसभा सीट पर 18 चुनाव हुए, जिसमें से 17 बार कांग्रेस ने ही इस सीट पर अपना कब्जा जमाया है. हालांकि 1997 के उपचुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक गुरु और वरिष्ठ बीजेपी नेता सुंदरलाल पटवा ही कमलनाथ को पटखनी देने में सफल हो सके हैं. यह अलग बात है कि इसके एक साल बाद हुए आम चुनाव में सुंदरलाल पटवा कमलनाथ से चुनाव हार गए थे.

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मोदी लहर में भी नहीं खिला कमल : छिंदवाड़ा सीट कमलनाथ का मजबूत गढ़ है. कमलनाथ 1980 से इस सीट पर 9 बार चुनाव जीत चुके हैं, जबकि एक बार उनकी पत्नी अलका नाथ इस सीट से चुनी जा चुकी हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ इस सीट से चुनाव जीते थे. यहां मोदी लहर में भी कमल नहीं खिला. 1997 का उपचुनाव छोड़ दें तो 1980 से लेकर 2019 तक बीजेपी अपने तमाम दिग्गज इस सीट से चुनाव मैदान में उतार चुकी है. लेकिन सभी को हार का ही मुंह देखना पड़ा, इसमें प्रहलाद सिंह पटेल भी शामिल हैं. 1991, 1996 में चौधरी चंद्रभान, 1998 में सुंदरलाल पटवा, 1999 में संतोश जैन, 2004 में प्रहलाद सिंह पटेल, 2009 में मारोत राव खवासे, 2014 में चंद्रभान कुबेर सिंह चुनाव हार चुके हैं.

छिंदवाड़ा बड़ा रोड़ा, क्या शिवराज लड़ेंगे यहां से चुनाव

भोपाल। विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बंपर जीत मिली है. प्रदेश के 19 जिलों में कांग्रेस का सफाया हो गया. इसके बाद भी छिंदवाड़ा में हार की कसक बीजेपी और खासतौर से शिवराज सिंह चौहान के मन में है. छिंदवाड़ा जिले की 7 में से एक भी सीट पर बीजेपी जीत दर्ज नहीं कर सकी. इसलिए चुनाव परिणाम आने के बाद शिवराज सिंह चौहान सबसे पहले छिंदवाड़ा पहुंचे और वहां बयान दिया कि इस बार लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के गले में 29 कमल के फूलों (29 लोकसभा सीट) की माला डालना है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या शिवराज सिंह चौहान इस बार छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर कमलनाथ को पटखनी देने चुनाव मैदान में उतरने जा रहे हैं.

छिंदवाड़ा बीजेपी की राह में रोड़ा : बता दें कि 29 कमल की माला पूरी करने में छिंदवाड़ा ही सबसे बड़ा रोड़ा है. राजनीतिक विशेषज्ञ भी मानते हैं कि कमलनाथ को सबसे बड़ी चुनौती उनके गढ़ में कोई दे सकता है तो वह शिवराज सिंह चौहान ही हैं. बता दें कि विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने अलग-अलग क्षेत्रों का दौरा किया है. इसकी शुरूआत उन्होंने छिंदवाड़ा से की. जीत के लिए लाडली बहनों का आभार जताने उन्होंने महिलाओं के पैर धोए, कार्यकर्ता के घर खाना खाया और बयान दिया कि यह उनके मिशन 29 की शुरूआत है. शिवराज सिंह ने कहा कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 29 की 29 सीटें जीतकर नरेन्द्र मोदी के गले में 29 कमल के फूलों की माला डालना है.

केवल पटवा ही जीत सके : पिछले चुनाव में बीजेपी प्रदेश की 29 में से 28 सीटें जीत चुकी है, लेकिन इसके बाद भी 29 कमल की माला में छिंदवाड़ा का कमल खिलने से रह गया था. बीजेपी इस सीट को जीतने के लिए प्रहलाद पटेल तक को आजमा चुकी है. बीजेपी में इस सीट को जीतने का करिश्मा सिर्फ शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक गुरु सुंदरलाल पटवा ही कर सके हैं. विधानसभा चुनाव के बाद शिवराज जिस तरह सबसे पहले छिंदवाड़ा पहुंचे. तो क्या यह संदेश है कि शिवराज छिंदवाड़ा से लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं.

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक : इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अजय बोकिल कहते हैं कि छिंदवाड़ा लोकसभा सीट जीतना बीजेपी के लिए हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है. लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग मुद्दों पर लड़े जाते हैं लेकिन यह नहीं कहा जा सकता सकता कि छिंदवाड़ा लोकसभा सीट जीतना मुश्किल है. यदि भाजपा एक मजबूत चेहरे को इस सीट से चुनाव मैदान में उतरती है तो इस सीट को जीता जा सकता है. 2019 के लोकसभा चुनाव में नकुलनाथ छिंदवाड़ा सीट से सिर्फ 37000 वोटों से ही जीत सके थे. ऐसे में यदि पार्टी शिवराज सिंह को छिंदवाड़ा से चुनाव मैदान में उतारती है तो चुनाव बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाएगा हो सकता है. कमलनाथ को अपनी सीट बचाना मुश्किल हो जाएगा.

छिंदवाड़ा की सभी सीटों पर कांग्रेस जीती : बता दें कि छिंदवाड़ा लोकसभा सीट में 7 विधानसभा सीटें जुन्नारदेव, अमरवाड़ा, चौरई, सौंसर, छिंदवाड़ा, परासिया, पांढुर्णा आती हैं. सभी सातों विधानसभा सीटें बीजेपी की पूरी कोशिश के बाद भी कांग्रेस के ही खाते में गई हैं. छिंदवाडा लोकसभा की बात करें तो बीजेपी सिर्फ एक बार ही यहां अपना खाता खोल पाई. पिछले करीबन 70 सालों में इस लोकसभा सीट पर 18 चुनाव हुए, जिसमें से 17 बार कांग्रेस ने ही इस सीट पर अपना कब्जा जमाया है. हालांकि 1997 के उपचुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक गुरु और वरिष्ठ बीजेपी नेता सुंदरलाल पटवा ही कमलनाथ को पटखनी देने में सफल हो सके हैं. यह अलग बात है कि इसके एक साल बाद हुए आम चुनाव में सुंदरलाल पटवा कमलनाथ से चुनाव हार गए थे.

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मोदी लहर में भी नहीं खिला कमल : छिंदवाड़ा सीट कमलनाथ का मजबूत गढ़ है. कमलनाथ 1980 से इस सीट पर 9 बार चुनाव जीत चुके हैं, जबकि एक बार उनकी पत्नी अलका नाथ इस सीट से चुनी जा चुकी हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ इस सीट से चुनाव जीते थे. यहां मोदी लहर में भी कमल नहीं खिला. 1997 का उपचुनाव छोड़ दें तो 1980 से लेकर 2019 तक बीजेपी अपने तमाम दिग्गज इस सीट से चुनाव मैदान में उतार चुकी है. लेकिन सभी को हार का ही मुंह देखना पड़ा, इसमें प्रहलाद सिंह पटेल भी शामिल हैं. 1991, 1996 में चौधरी चंद्रभान, 1998 में सुंदरलाल पटवा, 1999 में संतोश जैन, 2004 में प्रहलाद सिंह पटेल, 2009 में मारोत राव खवासे, 2014 में चंद्रभान कुबेर सिंह चुनाव हार चुके हैं.

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