भोपाल। मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग द्वारा जनजातीय संग्रहालय में 13 अक्टूबर से आयोजित बहुविधि कलानुशासनों की गतिविधियां एकाग्र ‘गमक’ श्रृंखला अंतर्गत पांच दिवसीय रामलीला का आयोजन किया गया. कार्यक्रम के चौथे दिन 23 अक्टूबर शुक्रवार को शबरी प्रसंग, बालि वध और लंका दहन प्रसंगों का मंचन किया गया. लीला मंचन में श्रीराम, माता सीता की खोज करते-करते शबरी के आश्रम पहुंचते हैं, जहां शबरी वर्षों से उनकी प्रतीक्षा कर रही होती है. रोज अपनी कुटिया सजाती है, राह में फूल बिछाती है और वन से मीठे-मीठे बेर लाती है. जैसे ही शबरी को पता चला की श्रीराम आएं हैं वह भाव विभोर हो जाती है, और अपनी सुध-बुध भूल जाती है. भक्ति-भाव से अपने अश्रुओं से श्रीराम के चरण धोती है, उन्हें चख-चख कर अपने जूठे बेर खिलाती हैं. शबरी श्रीराम को सुग्रीव का पता बताती हैं.
श्री राम माता शबरी को भक्ति, समपर्ण और विश्वास का आधार बताते हैं. इस तरह मातंगी ऋषि का आशीर्वाद फलित होता है और शबरी को मोक्ष प्राप्त होता है. श्रीराम की सुग्रीव से भेंट होती है, वह भाई बालि के अत्याचारों के बारे में बताते हैं और उसके भय से मुक्ति की विनती करते हैं. श्रीराम के कहने पर सुग्रीव बालि को युद्ध के लिए ललकारते हैं.
मध्यप्रदेश की इस पारंपरिक लीला मण्डली के साथ समकालीन नाट्य प्रयोगों को जोड़ते हुए संवाद, अभिनय, वेशभूषा, रंगभूषा, प्रकाश, मंचीय सज्जा आदि का कार्य परिष्कार की दृष्टि से किया जा रहा है. ख्यात रंगकर्मी, निर्देशक श्री जयंत देशमुख, मुंबई इन कलाकारों के साथ कथा मंचन के पूर्व अभ्यास और संवाद के माध्यम से परिष्कार का कार्य कर रहे हैं. जनजातीय संग्रहालय के मुक्ताकाश मंच पर नवाचार और नयनाभिराम दृष्य बिम्बों में प्रस्तुत हो रही इस रामलीला को दर्शकों द्वारा काफी सराहा जा रहा है. दर्शकों ने करतल ध्वनि से कई बार कलाकारों का उत्साह वर्धन किया.