भोपाल। बीजेपी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया इन दिनों अपने समर्थकों को स्थापित कराने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं. सिंधिया की इन कोशिशों से लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी में अब सिंधिया का कद कम होने लगा है. क्योंकि जब सिंधिया कांग्रेस पार्टी छोड़ अपने 22 समर्थकों के साथ भारतीय जनता पार्टी में आए थे. उस दौरान पार्टी ने दोनों बाहें फैलाकर बड़े गर्मजोशी के साथ उनका स्वागत किया था. उनके मन मुताबिक उनके समर्थकों को मंत्री बनाया गया था. यही नहीं विभाग भी उनकी मनपसंद के दिए गए थे, लेकिन अब उपचुनाव के नतीजों के बाद सिंधिया को अपने ही लोगों को वापस मंत्रिमंडल में शामिल कराने और संगठन में स्थान दिलाने के लिए मेहनत करनी पड़ रही है. शुक्रवार को ज्योतिरादित्य सिंधिया उपचुनाव के बाद तीसरी बार भोपाल दौरे पर आ रहे है.
1 महीने में सिंधिया का तीसरा दौरा
आमतौर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया कम ही भोपाल आते हैं, लेकिन पिछले एक महीने में सिंधिया तीसरी बार भोपाल आ रहे हैं. इससे पहले सिंधिया इन दौरों के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलना के साथ ही संघ नेताओं से अपने समर्थकों को मिलवा रहे हैं. इसका सबसे बड़ा कारण है कि उपचुनाव के नतीजों के बाद जिस तरीके से मध्य प्रदेश की सियासत चल रही है. उससे यह साफ नजर आ रहा है कि सिंधिया अपने लोगों को सरकार और संगठन में वह स्थान नहीं दिला पा रहे जो वह चाहते हैं. उपचुनाव में सिंधिया समर्थक 7 नेताओं की हार हुई है, जिनमें तीन मंत्री भी थे और 2 विधायकों को संवैधानिक परिस्थितियों के चलते 18 अक्टूबर को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. ऐसे में सिंधिया के 5 समर्थक मंत्री पद से बाहर हैं.अब सिंधिया की दिल्ली से भोपाल संघ और संगठन के साथ मुख्यमंत्री से लगातार मुलाकातों से यह साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि कहीं ना कहीं सिंधिया की कोशिश कामयाब नहीं हो पा रही है.
तुलसीराम सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत को मंत्री बनाना चाहते है सिंधिया
दरअसल ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने खास समर्थक तुलसीराम सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत को मंत्री बनाना चाहते है. उपचुनाव में जीत के बाद भी अभी तक यह विधायक मंत्री नहीं बना पाए है, जबकि उपचुनाव के परिणाम आए 1 महीना बीत गया है. लेकिन यह दोनों नेता आज भी मंत्री की कुर्सी से दूर नजर आ रहे हैं. यही दोनों नेता सिंधिया के सबसे खास समर्थक माने जाते हैं और सत्ता परिवर्तन के दौरान भी यही दोनो सबसे आगे के पायदान पर थे. जिन्हें शिवराज सरकार में सबसे पहले पांच मंत्रियों में जगह मिली थी. इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सबसे पहले सिंधिया ने अपने 2 लोगों को मंत्री बनवाया था. ऐसे में वही दो विधायक पिछले 1 महीने से मंत्री की कुर्सी का इंतजार में टकटकी लगाए बैठे हैं. यही कारण है कि सिंधिया बार-बार भोपाल आकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और संघ नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं.
अब बीजेपी में अलग अलग टोलियां बन गई है: कांग्रेस
भारतीय जनता पार्टी में सिंधिया की वर्तमान स्थिति को लेकर कांग्रेस ने तंज कसते हुए कहा है कि सिंधिया की बीजेपी में अब कोई बखत नहीं रही. जब सिंधिया अपने समर्थकों के साथ बीजेपी में पहुंचे थे, तो बीजेपी ने स्वागत किया था. लेकिन अब सिंधिया के लोगों के हार जाने के बाद बीजेपी ने उन्हें हाशिए पर ला दिया है. पने लोगों को मंत्री और संगठन में स्थान दिलाने के लिए सिंधिया दिल्ली से भोपाल तक दौड़ लगा रहे हैं.
पार्टी में सामूहिक निर्णय होते है: बीजेपी
सिंधिया के दौरे और मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर पार्टी के प्रवक्ता हमेशा रखा हटाया जवाब देते नजर आते हैं कि पार्टी में सामूहिक निर्णय होते हैं. लेकिन कहीं ना कहीं वह भी इस बात को अच्छी तरीके से समझ रहे हैं कि आखिर सिंधिया दिल्ली से भोपाल का सफर किन कारणों से कर रहे हैं. वह अच्छी तरीके से जानते हैं कि सिंधिया अपने समर्थकों को सत्ता और संगठन में स्थान दिलाना चाहते हैं. ताकि उनका भी पार्टी में वजूद बना रहे.
राजनीतिक विशेषज्ञ की राय
मध्य प्रदेश की राजनीति में ज्योतिरादित्य सिंधिया एक चमकते चेहरे के रूप में जाने जाते हैं. पहले कांग्रेस में थे तब भी युवाओं के बीच उनका क्रेज रहा करता था. जब भारतीय जनता पार्टी में अपने 22 विधायकों के साथ शामिल हुए तब भी सिंधिया का भारतीय जनता पार्टी ने खुले मन से स्वागत किया था और यह स्वागत सिंधिया के समर्थकों का मंत्रिमंडल में वर्चस्व और उन्हें मिले विभागों से नापा जा रहा था. राजनीतिक विश्लेषक शिव अनुराग पटेरिया का कहना है की ज्योतिरादित्य सिंधिया जिस तरीके से बीजेपी में आए थे. उस समय जो स्वागत सत्कार भारतीय जनता पार्टी ने किया था. शायद समय के साथ वह जो कम होता नजर आ रहा है. उनका कहना है कि उपचुनाव में सिंधिया समर्थको के हारने के बाद सिंधिया कुछ कमजोर नजर आ रहे हैं.
सिंधिया अपने लोगों को भारतीय जनता पार्टी में और सरकार में जो स्थान दिलाने की कोशिश में लगे हैं उसमें उन्हें सफलता नहीं मिल रही है. क्योंकि इस सिंधिया जब भारतीय जनता पार्टी में आए थे, उस समय उनके समर्थकों को मंत्रिमंडल में अच्छे स्थान मिला था. जिनमें खासतौर से तुलसी सिलावट, गोविंद सिंह राजपूत, इमरती देवी और गिर्राज दंडोतिया, ऐदल सिंह कंसाना शामिल थे. लेकिन इमरती देवी, गिर्राज दंडोतिया और ऐदल सिंह कंसाना के हारने के बाद सिंधिया काफी कमजोर नजर आ रहे हैं. सिंधिया चाहते हैं कि अपने 2 विधायकों को मंत्री बनाए और इमरती देवी को भी निगम मंडल में शामिल कराया जाए. यही कारण है कि सिंधिया को शिवराज की दरकार है.