भोपाल। कोरोना की तीसरी लहर के खतरे के बीच मध्य प्रदेश में स्कूल खोल दिए गए हैं. ऐसे में सरकार ने जोश खरोश के साथ स्कूलों में बच्चों का प्रवेश शुरू करवा दिया और उसके लिए नियमावली SOP (Standard Operating Procedure) भी केंद्र से जारी हो गई. लेकिन इस गाइडलाइन का कितना पालन स्कूल कर पा रहे हैं, यह देखने वाली बात है. 11वीं और 12वीं में बच्चा थोड़ा सा मैच्योर हो जाता है, नियमों को समझ सकता है. लेकिन नौवीं कक्षा के बच्चे सिर्फ स्कूल अपने दोस्तों से मिलने के लिए ही आना चाहते हैं. ऐसे में ईटीवी भारत की टीम ने भी भोपाल के स्कूलों का जायजा लिया और देखा की स्कूलों में गाइडलाइन का कितना पालन कराया जा रहा है.
रियलिटी चेक नवीन स्कूल... |
ईटीवी भारत की टीम को स्कूलों की जो हकीकत दिखी वह भयावह है. राजधानी के सरकारी स्कूलों में ही नियमों का पालन नहीं होते दिखा. भोपाल की नवीन स्कूल में ईटीवी भारत की टीम जब पहुंची, तो कक्षाओं में बच्चे सोशल डिस्टेंसिंग से तो बैठे हुए थे और मास्क लगाए हुए थे, लेकिन यहां पर बच्चे अभिभावकों के अनुमति पत्र लिए बिना ही बैठा दिए गए. 40 में से 30 बच्चों के अनुमति पत्र यहां नहीं थे.
फोन पर मिली अभिभावकों की अनुमति
नवीन स्कूल की प्राचार्य पूनम अग्रवाल भी स्कूल में मौजूद थी और बच्चों को समझाइश दे रही थी. लेकिन जब उनसे भी पूछा गया तो उनका कहना था कि कई माता-पिता ने फोन पर सहमति दी है. इसलिए बच्चों को बैठाया गया है. वहीं स्कूल में एक टीचर कोरोना का सिर्फ एक टीका लगवाकर बच्चों को पढ़ा रही थी. जिसका कारण वह बताती हैं कि उनको कोरोना हो गया था जिस कारण उन्होंने अभी एक ही टीका लगाया है.
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रियलिटी चेक सरोजिनी नायडू स्कूल... |
इसके बाद हमारी टीम सरोजिनी नायडू गर्ल्स स्कूल पहुंची. इस स्कूल में भी गेट पर तो ऑटोमेटिक सैनिटाइजर की व्यवस्था हमें नजर आई. लेकिन कक्षाओं में सोशल डिस्टेंसिंग यहां नजर नहीं आई. बच्चों को बिना एक बेंच छोड़ पास-पास ही एक के पीछे एक बैठा दिया. गाइडलाइन के नियम के अनुसार स्कूलों में बच्चों को एक बेंच छोड़कर बैठाना जरूरी है.
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अगली बार बेहतर होगी व्यवस्था
यहां भी कई पेरेंट्स की अनुमति पत्र नहीं थे. स्कूल के कर्मचारी ही बिना मास्टर के वहां घूमते नजर आए. स्कूल के प्राचार्य सुरेश खांडेकर हमारे सवालों के जवाब दे तो रहे थे, लेकिन हकीकत कुछ और थी. सामने बच्चे बिना डिस्टेंसिंग के बैठे थे. जबकि प्राचार्य कहते रहे कि बच्चों को सोशल डिस्टेंसिंग कराई जा रही है. 50% बच्चों की संख्या एक कक्षा में होनी चाहिए, लेकिन यहां पूरी कक्षा भरी नजर आई. इस पर उनका कहना था कि पहला दिन है ऐसे में तमाम व्यवस्थाएं अगली बार से और बेहतर की जाएंगी.