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कोरोना के बाद फंगल इंफेक्शन का खतरा, करीब 50 मरीजों में इसकी पुष्टि - Hamidaya Hospital Bhopal

काेराेना के इलाज में स्टेराॅइड और एंटीबायोटिक दवाओं का हाई डाेज देना पड़ रहा है. ऐसे में कमजाेर राेग प्रतिराेधक क्षमता वाले मरीजाें काे ब्लैक फंगस यानी (म्यूकर मायकाेसिस) इंफेक्शन का खतरा बढ़ने लगा है.

Risk of fungal infection after corona
कोरोना के बाद फंगल इंफेक्शन का खतरा
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Published : May 10, 2021, 2:35 PM IST

भोपाल। गुजरात के बाद मध्यप्रदेश में भी कोरोना के बाद फंगल इंफेक्शन के मरीज मिलने लगे गए है. करीब 10 दिन में अलग-अलग हॉस्पिटल में 50 मरीज मिले हैं. जिनमें ये इंफेक्शन मिला है. काेराेना के इलाज में स्टेराॅइड और एंटीबायोटिक दवाओं का हाई डाेज देना पड़ रहा है. ऐसे में कमजाेर राेग प्रतिराेधक क्षमता वाले मरीजाें काे ब्लैक फंगस यानी (म्यूकर मायकाेसिस) इंफेक्शन का खतरा बढ़ने लगा है.

ब्लैक फंगस इंफेक्शन और म्यूकर नाम की फंगस के शरीर में पहुंचने से उत्पन्न होता है. यह नाक और मुंह के रास्ते छाेटे-छाेटे कणों (स्पाेर) के रूप में शरीर में प्रवेश करता है. संक्रमण की शुरुआत सायनस से हाेती है, जाे समय रहते इलाज नहीं मिलने पर दिमाग को भी प्रभावित कर लेता है. हमीदिया अस्तपाल मे डॉ. आईडी चोरसिया के अनुसार, पिछले कुछ दिनों के भीतर ही काेविड पाॅजिटिव और काेविड से रिकवर हो चुके करीब तीन दर्जन मरीजाें में ब्लैक फंगस इंफेक्शन की पुष्टि हो चुकी है. इनमें से भोपाल में एक मरीज के जबड़े की सर्जरी कर उसे अलग करना पड़ा.

डॉ. आईडी चोरसिया

हालांकि हमीदया अस्पताल में भी कोविड के बाद ऐसे कई मरीजों का ऑपेशन किया जा रहा है. इसमें संक्रमित पार्ट्स को शरीर से अलग करना ही पड़ रहा है. यही एक उपाय है ब्लैक फंगल से संक्रमित हिस्से काे नहीं निकालने पर वह रक्तवाहिकाओं का ब्लड नहीं पहुंचने देता, संक्रमण बढ़ता रहता है.

शुगर के मरीज को स्ट्रोइट के चलते हो रहा इंफेक्शन

कोरोना के प्रोटोकॉल मे दवा के दौर पर स्ट्रोइट देना होता है. ऐसे में बढ़े शुगर के साथ काेविड मरीजाें काे डाॅक्टर्स, स्टेराॅइड और एंटीबायाेटिक दवाओं के हाईडाेज दे रहे हैं. डायबिटिक मरीजों को ज्यादा परेशानी हो रही है. स्टेराॅइड से राेग प्रतिराेधक क्षमता तेजी से घट जाती है, जिससे ब्लैक फंगल को कमजोर शरीर पर अटैक करना का आसान मौका मिल रहा है. हमीदिया हॉस्पिटल मे रोजाना ऐसे मरीजों का इलाज किया जा रहा है.

ब्लैक फंगल इंफेक्शन की पहचान इन लक्षणों से होती है

चेहरे के एक हिस्से में सूजन और आंखाें का बंद हाेना

नाक बंद हाेने लगती है, मानों साइसन की समस्या हो

नाक के नजदीक सूजन आ जाती है.

मसूड़ाें में सूजन आ जाती है, यहां तक की उनमें पस तक पड़ने लगता है.

मसूड़ों पर इसके प्रभाव से दांद भी ढीले हाे जाते हैं.

तालू की हड्डी काली पड़ने लगती है.

आंखें लाल हाेने लगती है.

उनकी राेशनी भी कम हाेने लगती है.

प्रभाव अधिक होने पर आंखों की मूवमेंट तक रुक जाती है.

ये उपाय के डॉक्टर दे रहे सुरक्षा

डॉक्टरों ने कोरोना के दौरान ऐसे मरीज जो पॉजिटिव है. उन्हें लगातार अपना शुगर लेवल की जांच करने के साथ शुगर लेवल बढ़ने पर स्ट्रोइट की मात्रा को कम करने सहित सामान्य मरीजों को साफ मॉस्क पहनने की सलाह भी दी गई है, जो कई दिनों तक ही मास्क का उपयोग करतें है.

भोपाल। गुजरात के बाद मध्यप्रदेश में भी कोरोना के बाद फंगल इंफेक्शन के मरीज मिलने लगे गए है. करीब 10 दिन में अलग-अलग हॉस्पिटल में 50 मरीज मिले हैं. जिनमें ये इंफेक्शन मिला है. काेराेना के इलाज में स्टेराॅइड और एंटीबायोटिक दवाओं का हाई डाेज देना पड़ रहा है. ऐसे में कमजाेर राेग प्रतिराेधक क्षमता वाले मरीजाें काे ब्लैक फंगस यानी (म्यूकर मायकाेसिस) इंफेक्शन का खतरा बढ़ने लगा है.

ब्लैक फंगस इंफेक्शन और म्यूकर नाम की फंगस के शरीर में पहुंचने से उत्पन्न होता है. यह नाक और मुंह के रास्ते छाेटे-छाेटे कणों (स्पाेर) के रूप में शरीर में प्रवेश करता है. संक्रमण की शुरुआत सायनस से हाेती है, जाे समय रहते इलाज नहीं मिलने पर दिमाग को भी प्रभावित कर लेता है. हमीदिया अस्तपाल मे डॉ. आईडी चोरसिया के अनुसार, पिछले कुछ दिनों के भीतर ही काेविड पाॅजिटिव और काेविड से रिकवर हो चुके करीब तीन दर्जन मरीजाें में ब्लैक फंगस इंफेक्शन की पुष्टि हो चुकी है. इनमें से भोपाल में एक मरीज के जबड़े की सर्जरी कर उसे अलग करना पड़ा.

डॉ. आईडी चोरसिया

हालांकि हमीदया अस्पताल में भी कोविड के बाद ऐसे कई मरीजों का ऑपेशन किया जा रहा है. इसमें संक्रमित पार्ट्स को शरीर से अलग करना ही पड़ रहा है. यही एक उपाय है ब्लैक फंगल से संक्रमित हिस्से काे नहीं निकालने पर वह रक्तवाहिकाओं का ब्लड नहीं पहुंचने देता, संक्रमण बढ़ता रहता है.

शुगर के मरीज को स्ट्रोइट के चलते हो रहा इंफेक्शन

कोरोना के प्रोटोकॉल मे दवा के दौर पर स्ट्रोइट देना होता है. ऐसे में बढ़े शुगर के साथ काेविड मरीजाें काे डाॅक्टर्स, स्टेराॅइड और एंटीबायाेटिक दवाओं के हाईडाेज दे रहे हैं. डायबिटिक मरीजों को ज्यादा परेशानी हो रही है. स्टेराॅइड से राेग प्रतिराेधक क्षमता तेजी से घट जाती है, जिससे ब्लैक फंगल को कमजोर शरीर पर अटैक करना का आसान मौका मिल रहा है. हमीदिया हॉस्पिटल मे रोजाना ऐसे मरीजों का इलाज किया जा रहा है.

ब्लैक फंगल इंफेक्शन की पहचान इन लक्षणों से होती है

चेहरे के एक हिस्से में सूजन और आंखाें का बंद हाेना

नाक बंद हाेने लगती है, मानों साइसन की समस्या हो

नाक के नजदीक सूजन आ जाती है.

मसूड़ाें में सूजन आ जाती है, यहां तक की उनमें पस तक पड़ने लगता है.

मसूड़ों पर इसके प्रभाव से दांद भी ढीले हाे जाते हैं.

तालू की हड्डी काली पड़ने लगती है.

आंखें लाल हाेने लगती है.

उनकी राेशनी भी कम हाेने लगती है.

प्रभाव अधिक होने पर आंखों की मूवमेंट तक रुक जाती है.

ये उपाय के डॉक्टर दे रहे सुरक्षा

डॉक्टरों ने कोरोना के दौरान ऐसे मरीज जो पॉजिटिव है. उन्हें लगातार अपना शुगर लेवल की जांच करने के साथ शुगर लेवल बढ़ने पर स्ट्रोइट की मात्रा को कम करने सहित सामान्य मरीजों को साफ मॉस्क पहनने की सलाह भी दी गई है, जो कई दिनों तक ही मास्क का उपयोग करतें है.

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