भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में रियासत कालीन एक ऐसी इमारत, जिससे भोपाल के लोगों को ना सिर्फ रोजगार मिला बल्कि उसके खजाने में भी इजाफा हुआ. भोपाल का पुतलीघर एक ऐसी इमारत है, जो रियासत का इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट की तरफ पहला कदम था. सन 1892 में यह पुतलीघर अपनी हाइट और बनावट के कारण बहुत ही प्रसिद्ध हुआ.
दरअसल पुतलीघर एक कॉटन मिल थी, जिसमें रुई की गिट्टी बनाई जाती थी. आम बोलचाल में रुई की गिट्टी को पुतली कहते थे और इन पुतलियों से धागा बनाया जाता था. इसको भोपाल रियासत की तीसरी महिला नवाब शाहजहां बेगम ने बनवाया था. इसके बनने से पहले भोपाल में कोई फैक्ट्री नहीं थी, उस समय भोपाल के बाशिंदे छोटे-मोटे काम धंधे और खेती किसानी करते थे. नौकरी के नाम पर जागीरदार और जमींदार लोगों के यहां मजदूरी की जाती थी.
पुतलीघर में मिला 200 लोगों को रोजगार
भोपाल रियासत की बढ़ती आबादी को देखते हुए रोजगार पैदा करने के लिए फैक्ट्री की जरूरत पड़ी. इसको देखते हुए महिला नवाब शाहजहां बेगम ने मुंबई के बड़े उद्योगपति सुल्तान बेग को इस फैक्ट्री को बनाने के लिए बुलवाया. फैक्टरी के लिए शाहजहांनाबाद के करीब एक मैदान जिसे पुरानी ईदगाह भी कहा जाता है को एलॉट की, इस जगह को अब सिंधी कॉलोनी कहा जाता है. इस पुतलीघर में उस समय 200 लोगों को रोजगार मिला था. भोपाल के आसपास कपास की खेती होती थी, उस खेती को भी बढ़ावा मिला. इस मिल में रुई लाई जाती थी, रुई से बनोले निकालकर रुई का गठ्ठे बड़े-बड़े शहरों में भेजे जाते थे.
गगनचुंबी इमारत को दूर-दूर से देखने आते थे लोग
पुतलीघर में कालीन, कपड़ा और अन्य वस्तुएं बनाई जाती थी, इस मिल में गेहूं की भी पिसाई होती थी. उस समय इस पुतलीघर की ऊंचाई बड़ी ही हैरान करने वाली थी, दूर-दूर तक इसके चर्चे थे और लोग इसे देखने आते थे. उस समय यह गगनचुंबी इमारत दो लाख रुपए की लागत से बनी थी. इसमें 40 हॉर्स पावर का इंजन लगा था. उस इंजन को पांच हजार रुपए में खरीदा गया था. इंजन को चलाने वाले एक्सपर्ट भी बाहर से बुलाए गए थे.