भोपाल। पानी से मिट्टी को गूंथकर चाक पर चढ़ाता है कुम्हार, फिर उसे अपने हुनर से आकार देता है कुम्हार. तब जाकर मिट्टी को तपाकर सोना बनाता है कुम्हार. जी हां हम बात कर रहे हैं उसी कुम्हार की, जो चाक पर रखकर मिट्टी को नया आकार देता है. दीप, घड़ा, सुराही और न जाने कितने उत्पाद सीजन के हिसाब से तैयार करता है, लेकिन लॉकडाउन में सबकुछ जैसे लॉक हो गया है.
लॉकडाउन में मिट्टी से बने बर्तनों की बिक्री पर तो जैसे ग्रहण ही लग गया है क्योंकि इन बर्तनों की डिमांड गर्मी के दिनों में ही ज्यादा रहती है, जिसके लिए ये कुम्हार पहले से ही घड़े आदि बनाकर स्टॉक करते हैं, पर इस बार इनका रोजगार पूरी तरह से चौपट हो गया क्योंकि लॉकडाउन के चलते कुम्हारों के बर्तन बनाने वाले चाक के पहिए भी बिल्कुल रुक से गए हैं. भोपाल शहर के चौराहों और बाजारों में मिट्टी के बर्तन और अन्य सामान ढके हुए रखे हैं. कोई ग्राहक इन्हें खरीद ही नहीं है.
गर्मी का सीजन शुरू होते ही इनकी बिक्री में चार चांद लग जाते थे, लेकिन कोरोना वायरस ने सारा धंधा चौपट कर दिया है, कुम्हारों का कहना है कि पहले से ही मटके बनाए थे, जो गर्मियों में बहुत बिकते थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है, लोग घरों से नहीं निकल रहे हैं, जिसके चलते बिक्री ठप हो गई है.