भोपाल। माता- पिता के लड़ाई झगड़ों का सबसे बुरा असर बच्चों पर पड़ता है. यह सब अब सामान्य हो गया है. बावजूद इसके पति- पत्नी अपने ईगो के चलते अपने लड़ाई झगड़ों में बच्चों को घसीटते हैं और इसका बेहद बुरा प्रभाव बच्चों पर पड़ता है. ये छोटी-छोटी बातें परिवार के लिए खतरनाक साबित होती हैं. इसी तरह के मामले इन दिनों फैमिली कोर्ट में सामने आ रहे हैं. फैमिली कोर्ट में चल रहे ऐसे ही 7 से 8 मामलों पर सुनवाई हुई है.
मासूम बच्चों पर पड़ता है नकारात्मक असर
फैमिली कोर्ट की काउंसलर सरिता राजानि ने बताया कि, माता-पिता अपने झगड़ों के बीच ये भूल जाते हैं कि, उनके लड़ाई झगड़ों का छोटे मासूम बच्चों पर क्या असर पड़ेगा. अपने ईगो के चलते वो बच्चों को भी अपने लड़ाई झगड़ों में घसीटने लगते हैं और इसका दुष्प्रभाव बच्चों पर पड़ता है. उन्होंने बताया, इसी तरह के मामलों की काउंसलिंग कोर्ट में चल रही है. जहां बच्चों की कस्टडी को लेकर माता-पिता लड़ाई झगड़े कर रहे हैं. इस बीच कोर्ट में छोटे-छोटे बच्चे माता पिता के साथ चक्कर लगा रहे हैं. 2 साल के मासूम बच्चे जब घण्टों कोर्ट में बैठे रहते हैं, तो उनके मानसिक विकास पर बुरा असर पड़ता है. बच्चों के दिमाग में माता- पिता की लड़ाई झगड़े घर कर जाते हैं.
हाई प्रोफाइल है सभी मामले
काउंसलर सरिता राजानि ने बताया कि, इस तरह के कई मामले कोर्ट में पेंडिंग है. चौंकाने वाली बात यह है कि, इन सभी मामलों में माता-पिता बेहद अच्छे पदों पर पदस्थ हैं. बावजूद इसके वे बच्चों की कस्टडी के लिए इस तरह से लड़ाई लड़ रहे हैं. जैसे उन्हें बच्चे से नहीं बल्कि अपने ईगो से ज्यादा प्यार है. हाल ही में एक 2 साल की बच्ची का मामला फैमिली कोर्ट में चल रहा है. जहां माता-पिता दोनों सरकारी विभाग में बड़े अधिकारी हैं. बच्चे का पिता मनोचिकित्सक है, बावजूद इसके बच्चे की कस्टडी के लिए पिछले 2 हफ्तों से वो कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं और बच्ची भी लगातार कोर्ट के चक्कर काट रही है.
इस तरह की स्थिति में माता-पिता के साथ नहीं रहना चाहते बच्चे
काउंसलर सरिता राजानि ने बताया कि, इन मामलों में ज्यादातर बच्चे ना माता के साथ रहना चाहते हैं और ना पिता के, बल्कि वो अपने दादा-दादी और नाना-नानी के साथ ज्यादा कंफर्टेबल हैं. ऐसे में बच्चों की कस्टडी किसे दी जाए, इसका निर्णय लेना कोर्ट के लिए भी मुश्किल हो जाता है. हालांकि परामर्श में ये कोशिश की जाती है कि, बच्चे की कस्टडी उसे ही दी जाए, जो बच्चे का ठीक तरह से ख्याल रख सके. ज्यादातर मामलों में कोशिश यही होती है कि, माता-पिता एक हो जाएं, जब तक बच्चा बड़ा ना हो. लेकिन आज के जमाने में जब लोगों की सोच इतनी ज्यादा मॉडर्न हो गई है, तो ऐसे में परामर्श कर समझाइश दे पाना बेहद कठिन हो गया है और इसका दुष्प्रभाव सीधा छोटे-छोटे मासूम बच्चों पर पड़ रहा है.
बच्चे हो रहे डिप्रेशन का शिकार
माता- पिता के लड़ाई झगड़ों के चलते बच्चे डिप्रेशन में आ रहे हैं. जो बच्चे शुरू से झगड़ालू पेरेंट्स के बीच पल बढ़ रहे हैं, उनके साथ ज्यादातर यह स्थिति बनती जा रही है. लड़ाई झगड़े की वजह से उन्हें खुशनुमा माहौल नहीं मिल पाता और उनकी खुशियां पूरी तरह से छिन जाती हैं. बच्चों को प्यार की जरूरत होती है, लेकिन जब उन्हें माता-पिता से हमेशा लड़ाई झगड़े ही मिलते हैं. तो कुछ समय बाद वो अवसाद का शिकार हो जाते हैं और यह बच्चों के लिए खतरनाक साबित होता है. ऐसे कुछ बच्चों की काउंसलिंग भी फैमिली कोर्ट में चल रही है, जो माता पिता के झगड़ों के चलते डिप्रेशन का शिकार हुए हैं.
डर में जी रहे बच्चे
काउंसलर सरिता राजानि का कहना है कि, बच्चों के सामने लड़ते हुए और अपशब्द इस्तमाल करते हुए माता-पिता ये भूल जाते हैं कि, इन सबका असर उनके बच्चे पर पड़ रहा है. यह सच है कि, जो पेरेंट्स बच्चों के सामने चिल्ला- चिल्ला कर बात करते हैं. एक दूसरे के लिए अपशब्द कहते हैं. ऐसे में बच्चा डर में जीने लग जाता है. जरूरत है कि, माता-पिता अपने ईगो को छोड़कर बच्चे पर ध्यान दें और उनके सामने लड़ाई झगड़े ना करें.