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हिमाचल: बेसिन नदी पर लगातार बढ़ रही झीलों की संख्या

हिमाचल के क्षेत्रफल का 4.44 फीसदी हिस्सा ग्लेशियर से ढका है. इस रीजन में कम से कम 20 ग्लेशियर खतरे का कारण बन सकते हैं. तिब्बत में वर्ष 2005 में पारछू झील से भूस्खलन हो गया था, जिसने भारी तबाही मचाई. शिमला का सेंटर हैदराबाद के विशेषज्ञों के सहयोग से सैटेलाइट तस्वीरें लेता है. इन तस्वीरों का गहन विश्लेषण किया जाता है. वर्ष 2016 की रिपोर्ट बताती है कि ग्लेशियर पिघल रहे हैं और ये खतरनाक हो सकता है.

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Published : May 26, 2021, 10:48 AM IST

शिमला/भोपाल। हिमाचल प्रदेश साल 2005 में पारछू झील के फटने से आई बाढ़ की त्रासदी को भूला नहीं है. उस समय प्रदेश को कुल 1400 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था. सतलुज नदी में भारी बाढ़ आने के कारण भारी तबाही हुई थी. पारछू की तबाही से चिंतित देश और हिमाचल प्रदेश ने बाद में सैटेलाइट के जरिए तिब्बत में बनने वाली कृत्रिम झीलों पर नजर रखने का काम शुरू किया.

इस बार हालांकि तिब्बत में बन रही झीलों में से किसी के फटने के आसार नहीं हैं, लेकिन हिमाचल सतर्क नजर रखे हुए है. सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज हिमाचल प्रदेश हैदराबाद के विशेषज्ञों की सहायता से सैटेलाइट तस्वीरों को खींच कर उसका एनालिसिस करता है. इसमें झीलों के आकार पर नजर रखी जाती है. हाल ही में उत्तराखंड में बाढ़ आई थी. हिमाचल भी लगातार नदियों के बेसिन पर बनने वाली झीलों से चिंता में रहता है.

Science टीचर खुद के खर्चे से दे रहे कोविड संक्रमण से बचने का संदेश

लगातार बढ़ रही नदियों के बेसिन पर झीलें

हिमाचल की नदियों के बेसिन पर झीलों की संख्या पिछले कुछ समय से लगातार बढ़ रही है. सतलुज, रावी और चिनाब इन तीनों प्रमुख नदियों के बेसिन पर ग्लेशियरों के पिघलने से झीलों की संख्या भी बढ़ रही है और उनका आकार भी. पूर्व में जब विज्ञान, पर्यावरण एवं प्रौद्योगिकी परिषद के क्लाइमेंट चेंज सेंटर शिमला ने झीलों व उनके आकार का विस्तार से अध्ययन किया था, तब ये खतरे सामने आए तत्कालीन अध्ययन से पता चला था कि सतलुज बेसिन पर झीलों की संख्या में 16 प्रतिशत, चिनाब बेसिन पर 15 प्रतिशत व रावी बेसिन पर झीलों की संख्या में 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.

जुलाई से सितंबर महीने में सतर्कता बरतना जरूरी

प्रदेश में जुलाई से सितंबर महीने में सतर्कता बरतना जरूरी है. कारण ये है कि हिमाचल ऐसे दुख के पहाड़ को जून 2005 में झेल चुका है. तब तिब्बत के साथ बनी पारछू झील ने तबाही मचाई थी, जिसमें सैकड़ों करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था. शिमला, मंडी, बिलासपुर व कांगड़ा जिला में बाढ़ ने नुकसान किया था.

हिमाचल में नदियों के बेसिन पर बनी झीलों की संख्या

पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में सतलुज नदी के बेसिन में 2017 में 642 झीलें थीं, जो 2018 में बढ़कर 769 हो गई थीं. इसी तरह चिनाब में 2017 में 220 और 2018 में 254 झीलें बनीं. रावी नदी के बेसिन पर ये आंकड़ा क्रमश: 54 व 66 झीलों का रहा है. इसी तरह ब्यास नदी पर 2017 में 49 व 2018 में 65 झीलें बन गईं. सतलुज बेसिन पर 769 में से 49 झीलों का आकार 10 हैक्टेयर से अधिक हो गया है. कुछ झीलों का क्षेत्रफल तो लगभग 100 हैक्टेयर भी आंका गया. इसी तरह अध्ययन से पता चला कि यहां 57 झीलें 5 से 10 हैक्टेयर तथा 663 झीलें 5 हैक्टेयर से कम क्षेत्र में हैं. हिमालयी रीजन में चिनाब बेसिन पर भी 254 में से चार झीलों का आकार 10 हैक्टेयर से ज्यादा है. इसके अलावा रावी नदी के बेसिन पर 66 झीलों में से 3 का आकार 10 हैक्टेयर से अधिक है.

स्थिति का आंकलन कर रही सरकार

हिमाचल सरकार के मुख्य सचिव अनिल खाची के अनुसार राज्य सरकार ग्लेशियरों से जुड़े अध्ययनों को गंभीरता से ले रही हैं. साथ ही नदियों के बेसिन पर झीलों के आकार को लेकर भी स्थिति का आंकलन किया जा रहा है. यहां बता दें कि पारछू झील का निर्माण भी कृत्रिम रूप से हुआ था. हिमाचल के क्षेत्रफल का 4.44 फीसदी हिस्सा ग्लेशियर से ढका है. इस रीजन में कम से कम 20 गलेशियर खतरे का कारण बन सकते हैं.

सतलुज पर नए सिरे से रखी जा रही नजर

हिमाचल में स्थित केंद्रीय जल आयोग के अधिकारी भी तिब्बत से निकलने वाली पारछू नदी पर नजर रखते हैं. आयोग सतलुज बेसिन में पांच निगरानी केंद्रों में जलस्तर को मापता है. यह एक्शन हर साल जून से अक्टूबर तक होता है, लेकिन उत्तराखंड के जोशीमठ के नजदीक ग्लेशियर टूटने से आई आपदा के बाद से सतलुज पर अब नए सिरे से नजर रखी जा रही है. विशेष रूप से शलखर साइट पर स्पीति और पारछू के जलस्तर की निगरानी का कार्य हो रहा है. अब समदो को भी नया सेंटर बनाया गया है. समदो से करीब 15 किलोमीटर दूरी पर चीन के तिब्बत की सीमाएं आरंभ हो जाती हैं.

विशेषज्ञों की टीम सैटेलाइट से ले रही तस्वीर

सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज शिमला के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. एसएस रंधावा के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग का असर पूरी हिमालयन रेंज में नजर आता है. इसी कारण तिब्बत में वर्ष 2005 में पारछू झील से भूस्खलन हो गया था, जिसने भारी तबाही मचाई. शिमला का सेंटर हैदराबाद के विशेषज्ञों के सहयोग से सैटेलाइट तस्वीरें लेता है. इन तस्वीरों का गहन विश्लेषण किया जाता है. वर्ष 2016 की रिपोर्ट बताती है कि ग्लेशियर पिघल रहे हैं और ये खतरनाक हो सकता है.

राज्य और केंद्र सरकार से सांझा की जाती हैं झीलों के आकार की रिपोर्ट

वहीं, केंद्रीय जल आयोग के अधिशाषी अभियंता पीयूष रंजन का कहना है कि तिब्बत के इलाके में झीलें बनती रहती हैं. इसका असर सतलुज नदी पर आता है. हर साल सतलुज बेसिन और तिब्बत में बनी झीलों के आकार की रिपोर्ट केंद्र व राज्य सरकार के साथ सांझा की जाती है. इसमें नदीं के जलस्तर व पानी की स्पीड को देखा जाता है. इसके अलावा तिब्बत के साथ ही चीन की सरकार भी हिमाचल व भारत सरकार के साथ झीलों के पानी का डाटा सांझा करती है.

ये भी पढ़ें: वन संपदा का धनी है हिमाचल, देवभूमि में फल-फूल रही 3600 दुर्लभ पुष्पीय प्रजातियां

शिमला/भोपाल। हिमाचल प्रदेश साल 2005 में पारछू झील के फटने से आई बाढ़ की त्रासदी को भूला नहीं है. उस समय प्रदेश को कुल 1400 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था. सतलुज नदी में भारी बाढ़ आने के कारण भारी तबाही हुई थी. पारछू की तबाही से चिंतित देश और हिमाचल प्रदेश ने बाद में सैटेलाइट के जरिए तिब्बत में बनने वाली कृत्रिम झीलों पर नजर रखने का काम शुरू किया.

इस बार हालांकि तिब्बत में बन रही झीलों में से किसी के फटने के आसार नहीं हैं, लेकिन हिमाचल सतर्क नजर रखे हुए है. सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज हिमाचल प्रदेश हैदराबाद के विशेषज्ञों की सहायता से सैटेलाइट तस्वीरों को खींच कर उसका एनालिसिस करता है. इसमें झीलों के आकार पर नजर रखी जाती है. हाल ही में उत्तराखंड में बाढ़ आई थी. हिमाचल भी लगातार नदियों के बेसिन पर बनने वाली झीलों से चिंता में रहता है.

Science टीचर खुद के खर्चे से दे रहे कोविड संक्रमण से बचने का संदेश

लगातार बढ़ रही नदियों के बेसिन पर झीलें

हिमाचल की नदियों के बेसिन पर झीलों की संख्या पिछले कुछ समय से लगातार बढ़ रही है. सतलुज, रावी और चिनाब इन तीनों प्रमुख नदियों के बेसिन पर ग्लेशियरों के पिघलने से झीलों की संख्या भी बढ़ रही है और उनका आकार भी. पूर्व में जब विज्ञान, पर्यावरण एवं प्रौद्योगिकी परिषद के क्लाइमेंट चेंज सेंटर शिमला ने झीलों व उनके आकार का विस्तार से अध्ययन किया था, तब ये खतरे सामने आए तत्कालीन अध्ययन से पता चला था कि सतलुज बेसिन पर झीलों की संख्या में 16 प्रतिशत, चिनाब बेसिन पर 15 प्रतिशत व रावी बेसिन पर झीलों की संख्या में 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.

जुलाई से सितंबर महीने में सतर्कता बरतना जरूरी

प्रदेश में जुलाई से सितंबर महीने में सतर्कता बरतना जरूरी है. कारण ये है कि हिमाचल ऐसे दुख के पहाड़ को जून 2005 में झेल चुका है. तब तिब्बत के साथ बनी पारछू झील ने तबाही मचाई थी, जिसमें सैकड़ों करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था. शिमला, मंडी, बिलासपुर व कांगड़ा जिला में बाढ़ ने नुकसान किया था.

हिमाचल में नदियों के बेसिन पर बनी झीलों की संख्या

पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में सतलुज नदी के बेसिन में 2017 में 642 झीलें थीं, जो 2018 में बढ़कर 769 हो गई थीं. इसी तरह चिनाब में 2017 में 220 और 2018 में 254 झीलें बनीं. रावी नदी के बेसिन पर ये आंकड़ा क्रमश: 54 व 66 झीलों का रहा है. इसी तरह ब्यास नदी पर 2017 में 49 व 2018 में 65 झीलें बन गईं. सतलुज बेसिन पर 769 में से 49 झीलों का आकार 10 हैक्टेयर से अधिक हो गया है. कुछ झीलों का क्षेत्रफल तो लगभग 100 हैक्टेयर भी आंका गया. इसी तरह अध्ययन से पता चला कि यहां 57 झीलें 5 से 10 हैक्टेयर तथा 663 झीलें 5 हैक्टेयर से कम क्षेत्र में हैं. हिमालयी रीजन में चिनाब बेसिन पर भी 254 में से चार झीलों का आकार 10 हैक्टेयर से ज्यादा है. इसके अलावा रावी नदी के बेसिन पर 66 झीलों में से 3 का आकार 10 हैक्टेयर से अधिक है.

स्थिति का आंकलन कर रही सरकार

हिमाचल सरकार के मुख्य सचिव अनिल खाची के अनुसार राज्य सरकार ग्लेशियरों से जुड़े अध्ययनों को गंभीरता से ले रही हैं. साथ ही नदियों के बेसिन पर झीलों के आकार को लेकर भी स्थिति का आंकलन किया जा रहा है. यहां बता दें कि पारछू झील का निर्माण भी कृत्रिम रूप से हुआ था. हिमाचल के क्षेत्रफल का 4.44 फीसदी हिस्सा ग्लेशियर से ढका है. इस रीजन में कम से कम 20 गलेशियर खतरे का कारण बन सकते हैं.

सतलुज पर नए सिरे से रखी जा रही नजर

हिमाचल में स्थित केंद्रीय जल आयोग के अधिकारी भी तिब्बत से निकलने वाली पारछू नदी पर नजर रखते हैं. आयोग सतलुज बेसिन में पांच निगरानी केंद्रों में जलस्तर को मापता है. यह एक्शन हर साल जून से अक्टूबर तक होता है, लेकिन उत्तराखंड के जोशीमठ के नजदीक ग्लेशियर टूटने से आई आपदा के बाद से सतलुज पर अब नए सिरे से नजर रखी जा रही है. विशेष रूप से शलखर साइट पर स्पीति और पारछू के जलस्तर की निगरानी का कार्य हो रहा है. अब समदो को भी नया सेंटर बनाया गया है. समदो से करीब 15 किलोमीटर दूरी पर चीन के तिब्बत की सीमाएं आरंभ हो जाती हैं.

विशेषज्ञों की टीम सैटेलाइट से ले रही तस्वीर

सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज शिमला के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. एसएस रंधावा के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग का असर पूरी हिमालयन रेंज में नजर आता है. इसी कारण तिब्बत में वर्ष 2005 में पारछू झील से भूस्खलन हो गया था, जिसने भारी तबाही मचाई. शिमला का सेंटर हैदराबाद के विशेषज्ञों के सहयोग से सैटेलाइट तस्वीरें लेता है. इन तस्वीरों का गहन विश्लेषण किया जाता है. वर्ष 2016 की रिपोर्ट बताती है कि ग्लेशियर पिघल रहे हैं और ये खतरनाक हो सकता है.

राज्य और केंद्र सरकार से सांझा की जाती हैं झीलों के आकार की रिपोर्ट

वहीं, केंद्रीय जल आयोग के अधिशाषी अभियंता पीयूष रंजन का कहना है कि तिब्बत के इलाके में झीलें बनती रहती हैं. इसका असर सतलुज नदी पर आता है. हर साल सतलुज बेसिन और तिब्बत में बनी झीलों के आकार की रिपोर्ट केंद्र व राज्य सरकार के साथ सांझा की जाती है. इसमें नदीं के जलस्तर व पानी की स्पीड को देखा जाता है. इसके अलावा तिब्बत के साथ ही चीन की सरकार भी हिमाचल व भारत सरकार के साथ झीलों के पानी का डाटा सांझा करती है.

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