भोपाल। अमेरिका में रहने वाले श्याम पारीख की जिंदगी में इम्तेहान 13 साल की उम्र से शुरु हो गए थे. जब उन्हें पोलियो हुआ. 70 साल की उम्र तक काम किया. फिर सोचा कि अब रिटायरमेंट की उम्र में अपने सपने को जीएंगे. ध्रुपद सीखने की शुरुआत की. इस दौरान फिर जिंदगी के सिलेबस का सबसे मुश्किल सवाल उनके सामने आ गया. हाथ क्यों कांपने लगे हैं. इस बात की गहराई में गए तो मालूम चला कि पार्किसंस उन्हें अपनी गिरफ्त में ले चुका है.
आवाज में डर की पहचान: पद्मश्री गुंदेचा बंधुओं से श्याम पारीख ने ध्रुपद सीखना शुरु ही किया था. वे कहते हैं मैं इतना डिप्रेशन में था और डरा हुआ कि मैने काफी दिन तक तो रमाकांत जी उमाकांत जी जो मेरे गुरु हैं. उन्हें बताया भी नहीं कि मुझे पार्किसंस हो गया है. पर उन्होंने मेरी आवाज में मेरे डर को पकड़ लिया. पूछा क्या बात है. मैने बताया पार्किन्सन से लड़ रहा हूं. कैलिफोर्निया में चीफ टेक्नॉलॉजी ऑफिसर रहे श्याम पारीख ने 72 साल तक कंसलटेंट बतौर काम किया. कहते हैं, पार्किसंस जब हुआ तो लगा अब जब जिंदगी को जीने का वक्त आया तब बीमारी ने घेर लिया. मैं चल भी नहीं पाता था. दो कदम चलने पर गिर जाता था. हड्डियां बेहद कमजोर. आवाज़ तक कांपती थी.
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ध्रुपद से सुर ही नहीं सांसे भी साध लीं: श्याम पारिख की जिंदगी में ध्रुपद नियामत की तरह आया. वे कहते हैं दवाईयां चल रही हैं अब भी. दो दर्जन दवाईयां खाता हूं हर दिन. चलने में अब भी तकलीफ है. लेकिन वॉकर से अमरीका से भोपाल तक आ गया ये चमत्कार नहीं है क्या. फिर आगे जोड़ते हैं, मिरेकल और ध्रुपद की बदौलत हुआ है. मैने जो ध्रुपद गायन का अभ्यास जारी रखा उसकी बदौलत पार्किंसस मेरे शरीर के निचले हिस्से से आगे नहीं बढ़ पाया. वे बताते हैं कि, डॉक्टर्स का कहना है कि ध्रुपद की वजह से मेरे पेट के हिस्से से सिर तक का हिस्सा महफूज है. ध्रुपद गायकी से चेहरा गला सिर सब बच गए हैं. थैरेपी की तरह काम किया है ध्रुपद ने. ध्रुपद ने मुझे अवसाद से बाहर निकाला और पार्किसंस से लड़ने की हिम्मत दी.