भोपाल। मध्यप्रदेश के 2018 के विधानसभा चुनाव में दो मुस्लिम चेहरे जीतकर सदन में पहुंचे थे और दोनों ही भोपाल से चुने गए थे. एक थे भोपाल की उत्तर विधानसभा सीट से आरिफ अकील और दूसरे भोपाल मध्य सीट से आरिफ मसूद... इस बार फिर कांग्रेस ने भोपाल मध्य सीट से आरिफ मसूद पर दांव लगाया है. हालांकि इस बार उन्हें चुनौती देने के लिए बीजेपी ने पूर्व विधायक ध्रुव नारायण सिंह को मैदान में उतारा है. 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई इस सीट पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक माने जाते हैं.
तीन बार चुनाव, दो बार जीती बीजेपी: भोपाल की मध्य विधानसभा सीट 2008 में अस्तित्व में आई थी. इसके बाद से इस सीट पर तीन विधानसभा 2008, 2013 और 2018 में चुनाव हो चुके हैं. इन तीन चुनावों में से 2008 और 2013 में यहां बीजेपी ने जीत दर्ज की थी, लेकिन 2018 के चुनाव में कांग्रेस यहां बीजेपी को पटखनी देने में सफल रही. 2008 के चुनाव में बीजेपी के ध्रुवनारायण सिंह ने 2254 वोटों के मामूली अंतर से जीत दर्ज की थी.
ध्रुवनारायण सिंह प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री गोंविद नारायण सिंह के बेटे हैं. उनके दादा विंध्य प्रदेश के पहले प्रधानमंत्री अवधेश प्रताप सिंह थे. 2013 में बीजेपी ने यहां से सुरेन्द्र नाथ सिंह को मैदान में उतारा और उन्होंने कांग्रेस के आरिफ मसूद को हराया, लेकिन पिछले 2018 के चुनाव में कांग्रेस के आरिफ मसूद ने यह सीट अपने नाम कर ली. इस बार कांग्रेस के आरिफ मसूद और बीजेपी के ध्रुवनारायण सिंह के बीच मुकाबला है.
सीट का सियासी समीकरण: भोपाल मध्य विधानसभा सीट पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक माने जाते हैं. इस सीट पर करीबन 40 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. जबकि 25 फीसदी अनुसूचित जाति वर्ग के मतदाता भी हैं. इस सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 2 लाख 47 हजार 997 हैं. इसमें महिला मतदाताओं की संख्या 1 लाख 20 हजार 855, जबकि पुरूष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 27 हजार 31 है. थर्ड जेंडर मतदाता 111 हैं.
दोनों प्रत्याशियों का रहा विवाद से नाता: बीजेपी और कांग्रेस के दोनों प्रत्याशियों का विवाद से नाता रहा है. बीजेपी प्रत्याशी ध्रुवनारायण सिंह प्रदेश के चर्चित शेहला मसूद हत्याकांड में उलझे. वे सीबीआई जांच के लपेटे में भी आए, हालांकि बाद में हत्याकांड की जांच से राहत मिल गई थी. इसी तरह आरिफ मसूद 2001 में गदर फिल्म कांड से चर्चा में आए थे. उन्हें एक पुलिसकर्मी मोतीलाल पर तलवार से हमला करने के मामले में आरोपी बनाया गया था, हालांकि बाद में हाईकोर्ट ने उन्हें मामले से बरी कर दिया था. आरिफ मसूद 2003 में समाजवादी पार्टी से भी चुनावी किस्मत आजमा चुके हैं.