भोपाल। क्या ये साल भी कोरा कोरा ही गुज़र जाएगा....क्या उनके हिस्से इस बार भी सत्ता का रंग नहीं आएगा....आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक.. कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक...देखिए तो जरा कि चुनाव सिर पर आ गए पर वो पैगाम नहीं आया जिसके इंतज़ार में 2020 में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद एमपी में बीजेपी के चुनिंदा तजुर्बेदार विधायकों ने रात-दिन सिर्फ इंतज़ार किया है. विंध्य महाकौशल के बीजेपी विधायकों के इंतजार की तो इंतिहा होने को आई लेकिन अब क्या चंद महीनों के दूल्हे ये बन पाएंगे. क्यों हर बार कैबिनेट विस्तार की अटकलें जितनी तेजी से जोर मारती हैं क्यों उतनी ही रफ्तार से पड़ जाती हैं ठंडी. अब एक बार फिर इन अटकलों ने जोर मारा है कि जल्दी हो सकता है कैबिनेट विस्तार. पर सवाल वही है कि ये फरमान तो दिल्ली से ही आएगा..अब कहा जा रहा है कि बजट सत्र के बाद कैबिनेट में विस्तार का योग बन रहा है और इसमें राहू की महादशा उन मंत्रियों पर है विकास यात्रा ने पहले ही झलक दे दी है कि जिनके सितारे गर्दिश में हैं, यानि जिन पर हार का संकट मंडरा रहा है उनकी कैबिनेट से छुट्टी पक्की हो जाना है. सुनने में तो ये भी आया है कि चुनाव के बाद होने वाले इस फेरबदल में सिंधिया समर्थकों के वजह से बिगड़े संतुलन को भी ठीक किया जाएगा.
रंग जमा दिया भिया ने: राजनीति में क्यों से बड़ा सवाल होता है कि अब इससे होगा क्या...चुनावी साल में तो ये और भी ज्यादा मायने रखता है. आप समझ रहे हैं ने यहां कांग्रेस के जीतू पटवारी एपीसोड के बारे में बात हो रही है, तो जीतू पटवारी का बजट सत्र से निलंबन उन्हें हीरो बना गया. विधानसभा मे जनाब जी भर के गरज भी लिए और भोपाल से इंदौर तक कांग्रेस में हाथ के हाथ ये सीन भी बनवा लिया कि जीतू पटवारी की आन में कांग्रेस मैदान में. जनता के साथ कांग्रेस कार्यकर्ताओ के बीच भी जीतू पटवारी को लेकर ये मैसेज चला गया कि पार्टी में इकलौते विधायक हैं पटवारी जो मूंह खोलते ही सरकार का संकट बढ़ा देते हैं. लेकिन अंदरखाने की खबर ये भी है कि कांग्रेस के भीतर ही कुछ विधायक पटवारी के निलंबन से खुश भी थे कि अब सदन में हमारा भी मौका आएगा.बाकी इसमें दो राय नहीं कि इदौर से भोपाल तक भिया ने रंग जमा दिया.
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होली बाद कहां उड़ेगा रंग: कुमार विश्वास की रामकथा खत्म हो गई... ऐसा आपको लग रहा है, जबकि कथा में क्लाईमैक्स आना तो बाकी है. अब वो एपीसोड दोहराने की जरुरत है क्या कि किस तरह से कुमार विश्वास ने राम कथा में आरएसएस का उपहास किया, फिर सफाई आई. लेकिन बात इतनी ही बन पाई की कुमार विश्वास किसी तरह से रामकथा करके लौट गए. अब कथा समाप्ति के बाद शुरु होती है असल कहानी.. वो ये है कि उज्जैन के जिस महाराजा विक्रमादित्य शोध संस्थान ने ये आयोजन किया था, उसके कर्ताधर्ता पर इसकी गाज गिर सकती है. शोध हो भी चुका है कि डॉ कुमार विश्वास को न्यौता किसने भेजा था, अब देखिए कि होली के बाद इस कथा के असर में किसका रंग उड़ता है.