भोपाल। एक नवंबर 1956 को जन्मा प्रदेश, सतपुड़ा विंध्याचल की भोर से...नर्मदा के छोर से....से खड़ा और बढ़ा मध्यप्रदेश. क्या हुआ था उस रात...जब मध्यप्रदेश के गठन का एलान हुआ. अमावस की रात थी वो...दियों की रोशनी से जगमग थे शहर...गांव..हम चलते हैं उस दौर में जब गांव के झरोखे से शहर नहीं दिखते थे... मध्य प्रदेश की राजधानी तय नहीं थी.
कैसे बना बाबूओं का शहर: कभी इंदौर में राज..तो कभी भोपाल के ठाठा....फिर तय हुआ कि राजधानी भोपाल ही रहेगी और जैसे लोगों के बगैर चार दीवारी घर नहीं, मकान नहीं होती है...राजधानी में भी लोग बसाने जरुरी थे...ग्वालियर-चंबल, मालवा निमाड़, बघेलखंड और बुदेंलखंड हर इलाके से अपने गांव घर छोड़कर आए लोग मुझे बसाने....एमपी को हिंदुस्तान के दिल बनाने....यूं भोपाल बाबूओं का शहर बन गया.
एमपी ने देखे अच्छे-बुरे दोनों पड़ाव: मध्यप्रदेश की सियासत हमेशा दो हिस्सों में रही इस पार या उस पार. दो दलों का दांव हमेशा रहा. यहां कभी किसी तीसरे के लिए गुंजाइश नहीं बन पाई. 2000 का वो बरस याद है ना आपको, जब मध्य प्रदेश का हिस्सा अलग हुआ. 44 बरस बाद छत्तीसगढ़ गढ़िया महान के साथ छत्तीसगढ़ अपनी नई पहचान लिए अलग हो गया. ये बरस 68 बरस मध्यप्रदेश की कामयाबी के भी थे. मध्य प्रदेश ने सारे उतार चढ़ाव देखे, लेकिन कुछ घाव ऐसे जो भुलाए नहीं जा सकते.
सबसे भारी होता है मासूम लाशों का बोझ. गैस त्रासदी के साथ ये हमेशा रिसने वाला ज़ख्म भी मध्यप्रदेश के हिस्से में आया. बाद में मुआवजे का मरहम लगाया जाता रहा, लेकिन ज़ख्म फिर भी हरे रहे.
एमपी ने देश को दी कई हस्तियां: यही नारा यही संदेश हरा भरा हो मध्यप्रदेश. कृषि प्रधान राज्य जो खेत खलिहानों में खिलखिलाया. कुमार गंधर्व से लेकर उस्ताद अमजद अली खां तक. मकबूल फिदा हुसैन से लेकर सैयद हैदर रजा और हबीब तनवीर से लेकर असगरी बाई, माखनलाल चतुर्वेदी से लेकर शरद जोशी, दुष्यंत कुमार तक, संगीत और साहित्य के इन शख्सियतों ने मध्यप्रदेश के आंचल मे चांद सितारें टांके और ये सूबा नई पहचान के साथ दुनिया के नक्शे पर जगमगाया.