भोपाल। क्या शिवराज का तिलिस्म बरकरार है. सत्ता की हैट्रिक बनाने के साथ प्रो इंनमकबेंसी वाले शिवराज के भाषणों का जज्बाती होना कौन सा नया दांव है शिवराज का...अब तक शिवराज भरोसे रहा एमपी का हर चुनाव. क्या यही वजह है कि कभी कप्तानी करने वाले शिवराज मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी की टीम 11 का हिस्सा बनें खड़े हैं. अब तक बीजेपी शिवराज को दांव पर लगाती रही है. एमपी में जीत की गारंटी बनकर उभरे शिवराज ने 2018 की हार के बाद 22 सीटों के उपचुनाव में खुद को साबित भी किया, लेकिन 2023 का विधानसभा चुनाव शिवराज के राजनीतिक जीवन का टर्निंग पाइंट कहा जा रहा है. जीत हार कांग्रेस और बीजेपी के बीच होती रहे बेशक....लेकिन सियासी सवाल एक ही है मामा जाएंगे.....या फिर सरकार बनाएंगे...
क्या आसान है शिवराज का तिलिस्म टूट पाना: सीएम शिवराज एमपी नहीं देश के उन नेताओं में से रहे हैं, जो बेहद आसानी से जनता से कनेक्शन बना लेते हैं. कांग्रेसी भी दबी जुबान स्वीकार करती है कि उनके भाषण-भाषण नहीं जनता से सहज सरल संवाद होते हैं. लेकिन क्या अब शिवराज का गंवई अंदाज उनकी भाषण शैली सब कुछ शिवराज दोहरा रहे है. अब भी बाकी नेताओं के मुकाबले शिवराज की जनसभाओं में भी भीड़ उमड़ती है और रोड शो मे भी. फिर क्या वजह है कि बीजेपी को अपने सबसे लोकप्रिय नेता को कतार में रखना पड़ा.
क्या वजह रही कि इस बार शिवराज के एमपी के मन में मोदी का प्रचार करना पड़ा. क्या बीजेपी भी ये मान रही है कि शिवराज में अब वो जादू नहीं रहा. वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश भटनागर कहते हैं "शिवराज का तिलिस्म टूटना इतना आसान नहीं है. वे वाकई जननायक हैं. अब भी देखिए कि उनकी सभाओ में भीड़ किस तरह से उमड़ती है. ऊब जैसे जुमले शहरों में हैं गांव में तो अब भी शिवराज जब गंवई अंदाज में बोलते हैं, तो उनका जनता से कनेक्शन और गहरा हो जाता है.'
2023 में शिवराज का मंत्र...सरकार नहीं परिवार चलाता हूं: 2005 का उपचुनाव छोड़ दें तो 2008 से शिवराज ने हर चुनाव में एक छवि के साथ खुद को पेश किया है. 2008 के विधानसभा चुनाव में ब्याज जीरो शिवराज हीरो के साथ उन्होंने किसान जो सबसे बड़ा वोटर है. उसके बीच अपनी छवि चमकाई थी. वहां भी कनेक्शन दिया कि वे किसान पुत्र हैं. खेती किसानी की तकलीफें जानते हैं. फिर 2013 के चुनाव तक वे लाड़ली भाजियों के मामा बन चुके थे.
ये सिलसिला 2018 के विधानसभा चुनाव में भी रहा. अब तक लाड़ली तक सीमित उनकी फिक्र संबल योजना के साथ परिवार तक पहुंच चुकी थी. 2023 के विधानसभा चुनाव में तो शिवराज ने ये नारा ही दे दिया सरकार नहीं परिवार चलाते हैं. पूरी ब्रांडिग परिवार के इर्द गिर्द ये बताते हुए कि परिवार के हर सदस्य खास तौर पर महिला सदसयों का शिवराज ने किस तरह से ध्यान रखा है.
शिवराज का इमोशनल कनेक्ट बताओ मुख्यमंत्री लगता हूं कि भैय्या: शिवराज जानते हैं कि असर कहां और कैसे होगा. शिवराज की सबसे बड़ी यूएसपी है उनका इमोशनल कनेक्शन और शिवराज उसका इस चुनावों में बखूबी इस्तेमाल भी कर रहे हैं. वो जज्बाती सवाल करते हैं और भावुक हुई बहनों से उसी अंदाज में मिलते हैं. एक दिन में दस से बारह सभाएं और रोड शो कर रहे शिवराज के किसी भी सभा को सुनिए वो एक सीएम की नहीं परिवार के सदस्य की सभा सुनाई देती है. वो जनता से कहते हैं, मैं सरकार नहीं चलाता परिवार चलाता हूं. फिर पूछते हैं बताओ मैं मुख्यमंत्री लगता हूं कि भैय्या. मै तो भैय्या हूं तुम्हारा. फिर पूछते हैं बताओ बहनों धनतेरस पर तुम्हारे खाते में पैसा आ गया ना. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश भटनागर कहते हैं...शिवराज सिंह चौहान की पैठ परिवार की धूरी के साथ पूरे परिवार पर है. ये विश्वास बना पाना किसी भी राजनेता के लिए आसान नहीं है. चुनावी जीत हार से परे देखिए तो एक भारतीय राजनीति में अकेले ऐसे राजनेता हैं शिवराज जिन्होने बेटियों को लेकर योजना बनाई और समाज के हिस्से की फिक्र सरकार में की. इससे तो इंकार नहीं किया जा सकता.