भोपाल। एमपी में बीजेपी के विधायक संजय पाठक क्या अपनी ही पार्टी को लिए चुनौती बन रहे हैं? जी हां प्रदेश के इकलौते विधायक हैं संजय पाठक, जो पार्टी से टिकट फाईनल होने के बहुत पहले जनता के बीच खुद निजी सर्वे करवा रहे हैं कि उन्हें चुनाव लड़ना चाहिए या नहीं. जिस समय पार्टी पूरे प्रदेश में अपने विधायकों की मजबूती परखने उनकी जमीनी हकीकत जुटा रही है. ठीक उसी समय संजय पाठक ने दल की सारी दीवारें को दरकिनार करके निजी सर्वे के साथ विजयराघवगढ़ में उनकी अगली उम्मीदवारी को भी जनता पर छोड़ दिया है. एक लाईन का संदेश कि अगर पचास फीसदी से ज्यादा जनता संजय पाठक के चुनाव लड़ने पर हामी भरती है तो संजय पाठक चुनाव लड़ेंगे, वरना जनता के इंकार के साथ अपनी उम्मीदवारी भी छोड़ देंगे. कांग्रेस का आरोप है कि पार्टी में किनारे पड़े संजय पाठक का सियासी स्टंट बीजेपी संगठन को अपनी ताकत दिखाने के लिए है. जबकि बीजेपी के हिसाब से चुनाव में पारदर्शिता की जो पहल संजय पाठक ने की है उसे बीजेपी समेत बाकी दलों के विधायकों को भी अपनाना चाहिए.
चुनाव से पहले बीजेपी विधायक का निजी सर्वे: बीजेपी में चार बार सत्ता की कमान संभाले सीएम शिवराज सिंह चौहान भी कहते हैं कि वे पार्टी संगठन के यस मैन हैं. पार्टी के ऐसे कार्यकर्ता जिन्हें जो जवाबदारी दी जाएगी, वे इसे पूरी ईमानदारी से निभाएंगे. कहने का मतलब ये है कि बीजेपी कार्यकर्ता छोटा हो या बड़ा ये वो तय नहीं कर सकता कि पार्टी उसकी में उसकी भूमिका क्या होगी, किसी भी उम्मीदवार को चुनाव लड़ना है या नहीं इसका फैसला भी पार्टी ही करती है. टिकट किसे मिलेगा, किसका पत्ता कटेगा.. ये तय पार्टी को करना है, लेकिन कटनी की विजयराघवगढ़ सीट पर का हर फैसला संजय पाठक ही करेंगे. ये अघोषित तौर पर संदेश में वे संगठन तक पहुंचा दिया गया है. संजय पाठक ने कहा है कि अपने विधानसभा क्षेत्र में में वे एक जनमत सर्वे करवाएंगे, इस जनमत सर्व के बाद तय करेंगे कि वे चुनाव लड़ेंगे या नहीं.
जनता के बीच सर्वे..किसे संदेश दे रहे हैं विधायक जी: प्रदश के सबसे धनी विधायकों में गिने जाने वाले संजय पाठक की गिनती बीजेपी के उन विधायकों में होती है जो संगठन के काबू से बाहर है. यानि जिनकी राजनीति और अंदाज पार्टी संगठन का मोहताज नहीं है. कटनी के विजयरागवगढ़ क्षेत्र से विधायक संजय पाठक किसे बताना चाह रहे हैं कि उनकी ताकत क्या है. राजनीति में जोखिम लिए जाने वाली दबगंई की जरुरत क्या है. संजय पाठक ने एक कार्यक्रम के दौरान ये दावा किया है कि वे अपनी विधानसभा सीट में एक जनमत सर्वे करवा रहे हैं. अगर उन्हें 50 फीसदी वोट स एक प्रतिशत कम वोट मिला तो वे चुनाव नहीं लड़ेंगे. चुनाव अगर लड़ेंगे तो इसी सूरत में कि उनके विधानसभा क्षे6 की जनता उन्हें पचास फीसदी से ज्यादा हां के जवाब में अपने जनमत दे. ये सर्वे संजय पाठक अगले महीने से शुरु करेंगे और इसी महीने के अंत तक सर्वे खत्म हो जाने के बाद चुनाव को लेकर निर्णय लेंगे. एमपी बीजेपी के इतिहास में इस तरह का दम पहली बार किसी विधायक ने दिखाया है, लेकिन सवाल ये है कि संजय पाठक के इस इवेंट में बीजेपी संगठन के लिए तो कोई जगह ही नहीं है.
क्या संगठन को अपनी ताकत दिखा रहे है पाठक: कांग्रेस की मीडिया विभाग की उपाध्यक्ष संगीता शर्मा कहती हैं कि "संजय पाठक ने बता दिया है कि पार्टी से बड़े है वो. उन्होंने पार्टी संगठन के लिए कोई मौका ही नहीं छोड़ा ये सीधे जनता और नेता के बीच की बात हो गई है. हांलाकि सर्वे करवाकर भी संजय पाठक अपने पैर ही कुल्हाड़ी मारेंगे, एमपी में किसी भी विधानसभा सीट पर इस तरह का जनमत करवा लिया जाए, जनता की एक राय मिलेगी बीजेपी विधायकों के लिए."
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अपनी स्थिति का आंकलन...इसमें गलत क्या है: बीजेपी नेता गोविंद मालू के मुताबिक "कांग्रेस का अपना सोचना हो सकता है, लेकिन अगर कोई विधायक अपनी स्थिति का आंकलन करता है तो इसमें क्या बुराई है. ये पारदर्शिता ही तो लोकतंत्र को मजबूत करती है, संजय पाठक ने जो प्रयास किया है उसे गैर राजनीतिक सोच के साथ देखिए तो जनप्रतिनिधि अपनी स्थिति जांचने के लिए अगर खुला सर्वे करते हैं, तो इसमें कोई बुराई नहीं है."
बीजेपी के अरबपति विधायक खुद तय करते हैं जीत का टारगेट: संजय पाठक की गिनती मध्यप्रदेश विधानसभा के सबसे धनी विधायकों में होती है, 2018 के विधानसभा चुनाव तक विधायक जी की संपत्ति 226 करोड़ तक पहुंच चुकी थी. पाठक की संपत्ति में उनका अपना हेलीकॉप्टर भी है, हालांकि राजनीतिक की शुरुआत उन्होंने कांग्रेस से की थी. छात्र के रुप में राजनीति में आए संजय पाठक ने कांग्रेस की लंबी पारी को विराम 2014 में दिया, जब वे बीजेपी में शामिल हुए. इसके बाद हुए उपचुनाव में भी जीते संजय पाठक, तोहफे के तौर पर शिवराज कैबिनेट में राज्य मंत्री भी रहे. 2018 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीते.