भोपाल। मध्यप्रदेश सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है, मध्यप्रदेश की 230 विधानसभा सीटों पर 5 करोड़ 60 लाख से ज्यादा मतदाता चुनाव मैदान में उतरने वाले उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे. चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियां पहले ही एक्शन मोड में आ चुकी है। बीजेपी और कांग्रेस सत्ता में वापसी के दावे कर रही है। मध्यप्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की 114 सीटें आई थी। बीजेपी को 109 सीटें मिली थी। कांग्रेस ने निर्दलीय और सपा, बसपा से गठजोड़ कर 15 साल बाद प्रदेश में सरकार बनाई थी.
चुनाव से जुड़ी जरूरी जानकारी:
चुनाव में कब क्या होगा | चुनाव के लिए जरूरी तारीख |
चुनाव अधिसूचना | 21 अक्टूबर को 230 सीटों पर |
उम्मीदवारों के नामांकन की आखिरी तारीख | 30 अक्टूबर |
उम्मीदवारों के नामों की जांच की तारीख | 31 अक्टूबर |
उम्मीदवारों के नामांकन वापसी की तारीख | 02 नवंबर |
एमपी में वोटिंग की तारीख | 17 नवंबर |
चुनाव का रिजल्ट | 03 दिसंबर |
चुनाव समाप्त प्रक्रिया | 05 दिसंबर |
2018 विधानसभा चुनाव में यह थी स्थिति: मध्यप्रदेश में कुल विधानसभा सीटों की संख्या 230 है, इन सीटों पर कुल मतदाताओं की संख्या 5 लाख 60 लाख 60 हजार 925 है. मध्यप्रदेश में मतदान केन्द्रों की संख्या 64 हजार 523 है.
- 2018 के विधानसभा चुनाव में 3948 उम्मीदवारों ने अपने नामांकन दाखिल किए थे, जिसमें से 480 उम्मीदवारों के नामांकन निरस्त कर दिए गए, जबकि 569 ने अपने नामांकन वापस ले लिए थे. इसके बाद चुनाव में 2 हजार 899 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था. इनमें 2644 उम्मीदवार पुरूष थे, जबकि 250 से ज्यादा महिला उम्मीदवार थीं.
- बीजेपी ने 230 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से 109 जीतकर आए थे, जबकि एक की जमानत जब्त हुई थी. 2018 के चुनाव में बीएसपी के 227 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, जिसमें से सिर्फ दो उम्मीदवार जीतकर आए थे. कांग्रेस ने 229 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से 114 सीटें कांग्रेस को मिली थी. समाजवादी पार्टी ने 52 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से 1 उम्मीदवार ही जीतकर आया था, इसमें से 45 की जमानत जब्त हो गई थी. 2018 के चुनाव में 1094 निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे थे, जिसमें से सिर्फ 4 ही जीतकर आए थे, इसमें से 1074 की जमानत जब्त हो गई थी.
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2020 में इस तरह गिरी थी कमलनाथ सरकार: 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस मैजिकल नंबर तक तो नहीं पहुंच पाई थी, लेकिन निर्दलीय विधायक, सपा-बसपा के गठबंधन कर प्रदेश में कमलनाथ की सरकार बनाई थी. लेकिन कमलनाथ की सरकार सिर्फ 15 माह ही चल सकी, कांग्रेस सरकार में ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट और कमलनाथ के बीच टकराव बढ़ता गया और 15 माह बाद में सिंधिया गुट के 22 विधायकों ने अपना इस्तीफा दे दिया, इनमें 6 मंत्री थे. इसके बाद कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई, मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. कोर्ट ने विधानसभा में सरकार को फ्लोर टेस्ट देने के आदेश दिए, लेकिन सरकार बचाने पर्याप्त विधायक न होने के चलते कमलनाथ ने पहले ही राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया. बाद में बागी विधायकों की मदद से प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की सरकार फिर प्रदेश में बन गई.