भोपाल। राजधानी भोपाल की उत्तर विधानसभा सीट अपने चुनाव परिणामों के कारण चर्चा में बनी रहती है. कहने को तो भोपाल बीजेपी का गढ़ माना जाता है, लेकिन यहां का गणित देखें तो तमाम कोशिशों के बाद भी बीजेपी यहां के लोगों का मन नहीं जीत पाई. कह सकते हैं कि भोपाल की उत्तर सीट कांग्रेस का गढ़ बन चुकी है, पिछले 25 साल से कांग्रेस जीत रही है, तो बीजेपी जीत के लिए तड़प रही है. यहां पर मतदाताओं की संख्या 2 लाख 39,717 है, जिनमें 1 लाख 18,052 महिला मतदाता हैं, उसमें 1 लाख 20, 654 पुरुष हैं. वैसे तो इस सीट पर जनता ने बीजेपी और कांग्रेस को वोट दिया है, लेकिन बीते 25 सालों से यह सीट कांग्रेस के खाते में है और यहां से कांग्रेस के आरिफ अकील लगातार 25 सालों से विधायक बने हुए हैं.
1977 में पहली बार सीट पर चुनाव हुए, निर्दलीय जीतकर क्षेत्र में बनाई पकड़: उत्तर विधानसभा सीट में पहली बार 1977 में विधानसभा चुनाव हुए. यहां से मुस्लिम विधायक हामिद कुरेशी जनता पार्टी से विधायक चुने गए थे. इसके बादशाह 1980 में रसूल अहमद सिद्दीकी कांग्रेस से विधायक बने. 1990 में आरिफ अकील पहली बार उत्तर विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़कर विधायक बने थे. 1993 में बीजेपी के रमेश शर्मा उर्फ गुट्टू भैया ने आरिफ अकील को हरा दिया था, लेकिन उसके बाद से आरिफ अकील लगातार इस क्षेत्र में अपना दबदबा बनाए हुए हैं. हालांकि स्वास्थ्य खराब होने की वजह से उनके बेटे को उन्होंने उत्तराधिकारी घोषित किया, लेकिन इस बार बीजेपी सीट को किसी भी कीमत में जीतना चाहती है.
बीजेपी ने आलोक शर्मा को उतारा मैदान में: मध्य प्रदेश में बीजेपी के लिए भोपाल की उत्तर विधानसभा सीट बड़ी चुनौती है. इसी के चलते भाजपा ने चुनाव के 3 महीने पहले ही इस विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी की घोषणा कर दी है. पूर्व महापौर आलोक शर्मा को बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया है. आलोक शर्मा पहले भी कांग्रेस से वर्तमान विधायक आरिफ अकील को टक्कर दे चुके हैं, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. ऐसा पहली बार है, जब आचार संहिता लगने के पहले भाजपा ने प्रत्याशियों की घोषणा की है. पहली सूची में भाजपा ने भोपाल की दो विधानसभा सीटों पर नाम तय किए. भोपाल उत्तर से पूर्व महापौर आलोक शर्मा और भोपाल मध्य से पूर्व विधायक ध्रुव नारायण सिंह को उम्मीदवार बनाया गया है.
पूर्व मेयर आलोक शर्मा को BJP ने क्यों बनाया उम्मीदवार: आलोक शर्मा भोपाल के महापौर रह चुके हैं. वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी माने जाते हैं. उन्होंने 2008 के विधानसभा चुनाव में आरिफ अकील के खिलाफ इसी उत्तर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था और उन्हें 4026 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था. ये अंतर बेहद ही कम था. यही वजह है कि भाजपा ने दोबारा आलोक शर्मा को मौका दिया है, क्योंकि इसके पहले 2018 के विधानसभा चुनाव में आरिफ अकील ने भाजपा की फातिमा रसूल सिद्दीकी को 34,897 वोटो से हराया था, जो काफी बड़ा मार्जिन था. इसीलिए बीजेपी ने भोपाली आलोक शर्मा पर भरोसा जताते हुए उन्हें उत्तर विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया है.
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आरिफ अकील बोले-मुस्लिम-हिंदू की राजनीति नहीं की: राजनीति विश्लेषकों का कहना है कि "भोपाल की उत्तर विधानसभा में 49 प्रतिशत हिंदू और 51 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं. मुस्लिम मतदाताओं का ज्यादातर झुकाव कांग्रेस की तरफ ही रहता है, इसी वजह से भारतीय जनता पार्टी उत्तर विधानसभा कांग्रेस के इस गढ़ को भेद पाने में मुश्किलों का सामना कर रही है. अब मुकाबले में आलोक शर्मा को उतारा है, इनकी पैठ मुसलमानों में भी है. वहीं प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का कहना है कि "केंद्र नेतृत्व ने चुनाव के तीन महीने पहले टिकट देकर जीत का रास्ता तय कर लिया है." प्रत्याशी आलोक शर्मा का कहना है कि मैं इस सीट से पहले भी दावेदारी कर चुका हूं और लोगों का प्यार मुझे मिला है. इस बार सभी वोटर्स बीजेपी की जीत के लिए संकल्पित हैं." वहीं विधायक आरिफ अकील का कहना है कि "मैंने कभी भी हिंदू मुस्लिम वोटर्स की राजनीति नहीं की है. मुझे दोनों वोटर्स की मोहब्बत मिलती रही है.