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मनाई गई शायर मिर्जा गालिब की जयंती

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Published : Dec 27, 2020, 9:57 PM IST

उर्दू और फारसी के महान शायर मिर्जा गालिब की जयंती रविवार को भोपाल में भी मनाई गई. राजधानी भोपाल से भी गालिब का था खास नाता रहा है. यहां उनके 11 शागिर्द थे.

Mirza Ghalib
मिर्जा गालिब

भोपाल। 'है और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे,
कहते हैं कि गालिब का अंदाज ए बयां और!'

उर्दू और फारसी के महान शायर मिर्जा असादुल्लाह बैग यानि गालिब की जयंती 27 दिसंबर को मनाई जाती है. उत्तर प्रदेश के आगरा में जन्मे मिर्जा गालिब कभी भोपाल आए नहीं लेकिन भोपाल नवाब घराने से उनका गहरा ताल्लुक रहा है. रविवार के शहर में मजलिस ए इकबाल ने उन्हें याद किया और उन्हें खीराज ए अकीदत पेश की.

मिर्जा गालिब की जयंती

भोपाल में थे उनके 11 शागिर्द

गालिब साहब के कई शागिर्द भोपाल में रहते थे, जो अपनी शायरियां लिखकर मिर्जा गालिब को दिल्ली भेजते थे. मिर्जा गालिब उन्हें सुधार कर वापस भेजते थे. फिर उनके शागिर्द उन्हें नुमाया करते. नवाबी शासनकाल में गालिब को गुजर-बसर के लिए यहां से 500 रुपए मासिक वजीफा भी मिलता था. भोपाल में उनके 11 शागिर्द थे.

बताया जाता है कि सुल्तान जहां बेगम ने हमीदिया लाइब्रेरी की स्थापना की तो उन्हें दान में गालिब का उनके हाथों से लिखा गया दीवान मिला था. इस दीवान को नवाब ने भी उर्दू के कई विद्वानों से संपर्क कर प्रकाशित करवाने की कोशिश की. लेकिन वह तब नहीं छप सका था. बाद में सैफिया कॉलेज के उर्दू विभाग के प्रमुख अब्दुल कवी दसनवी ने किताब की शक्ल में उसे प्रकाशित किया. जिसे नुस्खा हमीदिया सानी के नाम से जाना जाता है.

पढ़ें- धर्म परिवर्तन के लिए 60 दिन पहले देना होगा आवेदन

मिर्जा गालिब की शायरी को संग्रहित करने वालों में से एक अब्दुर्रहमान बिजनौरी का आखिरी वक्त भी भोपाल में ही गुजरा था. उनकी कब्र अभी यहां लालघाटी स्थित कब्रिस्तान में मौजूद है.

भोपाल। 'है और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे,
कहते हैं कि गालिब का अंदाज ए बयां और!'

उर्दू और फारसी के महान शायर मिर्जा असादुल्लाह बैग यानि गालिब की जयंती 27 दिसंबर को मनाई जाती है. उत्तर प्रदेश के आगरा में जन्मे मिर्जा गालिब कभी भोपाल आए नहीं लेकिन भोपाल नवाब घराने से उनका गहरा ताल्लुक रहा है. रविवार के शहर में मजलिस ए इकबाल ने उन्हें याद किया और उन्हें खीराज ए अकीदत पेश की.

मिर्जा गालिब की जयंती

भोपाल में थे उनके 11 शागिर्द

गालिब साहब के कई शागिर्द भोपाल में रहते थे, जो अपनी शायरियां लिखकर मिर्जा गालिब को दिल्ली भेजते थे. मिर्जा गालिब उन्हें सुधार कर वापस भेजते थे. फिर उनके शागिर्द उन्हें नुमाया करते. नवाबी शासनकाल में गालिब को गुजर-बसर के लिए यहां से 500 रुपए मासिक वजीफा भी मिलता था. भोपाल में उनके 11 शागिर्द थे.

बताया जाता है कि सुल्तान जहां बेगम ने हमीदिया लाइब्रेरी की स्थापना की तो उन्हें दान में गालिब का उनके हाथों से लिखा गया दीवान मिला था. इस दीवान को नवाब ने भी उर्दू के कई विद्वानों से संपर्क कर प्रकाशित करवाने की कोशिश की. लेकिन वह तब नहीं छप सका था. बाद में सैफिया कॉलेज के उर्दू विभाग के प्रमुख अब्दुल कवी दसनवी ने किताब की शक्ल में उसे प्रकाशित किया. जिसे नुस्खा हमीदिया सानी के नाम से जाना जाता है.

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मिर्जा गालिब की शायरी को संग्रहित करने वालों में से एक अब्दुर्रहमान बिजनौरी का आखिरी वक्त भी भोपाल में ही गुजरा था. उनकी कब्र अभी यहां लालघाटी स्थित कब्रिस्तान में मौजूद है.

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