भोपाल। कोविड-19 महामारी से पूरे विश्व में त्राहि-त्राहि मची हुई है. सभी लोग इस डर में जी रहे हैं कि न जाने कब कोरोना वायरस संक्रमण उन्हें अपना शिकार बना ले, वहीं दूसरी ओर जब पूरे देश में लॉकडाउन लगाया गया तो हजारों की संख्या में मजदूर भी पलायन करने लगे. अब जब लॉकडाउन धीरे-धीरे खुल रहा है तो कई गतिविधियां भी शुरू हो गई हैं. इसके लिए श्रमिकों की जरूरत पड़ने लगी है. ऐसे में जब शहरों में मजदूर नहीं हैं तो एक बात यह सामने आई है कि बड़े-बड़े शहरों में बाल मजदूरी बढ़ रही है.
बालश्रम एक बड़ी चुनौती
एक नजर मध्यप्रदेश में डाली जाए तो एमपी में बालश्रम एक बड़ी चुनौती है. मध्यप्रदेश देश के उन शीर्ष पांच राज्यों में से है जहां सबसे अधिक बाल मजदूर हैं. बाल संरक्षण के लिए काम करने वाले कई सामाजिक संस्थाओं ने यह अनुमान लगाया है कि इस कोविड-19 महामारी का असर बालश्रम पर भी पड़ेगा, और आने वाले दिनों में बाल मजदूरी बढ़ सकती है.
क्या कहता है 2011 का आंकड़ा
देश मे बच्चों के अधिकारों के संरक्षण के लिए काम करने वाली सामाजिक संस्था चाइल्ड राइट्स एंड यू क्राय की क्षेत्रीय निदेशक सोहा मोइत्रा का कहना है कि 2011 की जनगणना के मुताबिक मध्यप्रदेश उन शीर्ष पांच राज्यों में शामिल है जहां सबसे ज्यादा संख्या में बाल श्रमिक हैं. 2011 की जनगणना के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि मध्यप्रदेश उन शीर्ष तीन राज्यों में शामिल है जहां सबसे अधिक अंतर राज्य प्रवासी श्रमिक हैं.
क्या कोविड-19 से बढ़ी बाल मजदूरी
कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन ने पहले ही प्रवासी श्रमिकों के लिए स्थिति को बदतर बना दिया है, और बच्चों को बालश्रम के लिए अधिक संवेदनशील बना दिया है. गरीब और वंचित परिवारों के बीच वित्तीय सुरक्षा और काम के नुकसान के चलते प्रदेश में सस्ते श्रम की चाह रखने वालों के लिए बच्चे प्राथमिकता बन जाएंगे. इसके साथ ही यह अनुमान भी लगाया जा रहा है कि गरीब तबके के बच्चे स्कूल जाने के बजाय अपने परिवारों की आजीविका के लिए काम करना चुन सकते हैं. ऐसे में प्रदेश में बालश्रम बढ़ सकता है.
मजदूरों के पलायन से बढ़ी बाल मजदूरी
वहीं राजधानी भोपाल की सामाजिक संस्था सहारा साक्षरता, एजुकेशनल एंड सोशल वेलफेयर संस्था के संचालक शिवराज कुशवाह कहते हैं कि मजदूरों के पलायन के कारण शहरों से मजदूरों की संख्या कम हुई है. अब जब लॉकडाउन के बाद काम करने वालों की कमी चल रही है, और जो लोग अभी काम करने जा रहे हैं वह काम के बदले ज्यादा पैसे मांग रहे हैं. भोपाल में भी मजदूरों की संख्या कम हुई है. इसके कारण अब यहां पर बाल मजदूर बढ़ रहे हैं. यहां की छोटी बड़ी दुकानों में गाड़ी साफ करने या पेपर बेचने के लिए बच्चे काम कर रहे हैं, और इसके साथ ही बाल भिक्षावृति भी बढ़ गई है. क्योंकि बाल मजदूरी में मालिक को कम पैसा देना होता है. इसलिए भी लोग छोटे बच्चों को काम पर रख रहे हैं.
लिहाजा सामाजिक संस्थाओं के अनुमानों से साफ तौर पर दिखाई दे देता है कि आने वाले दिनों में बड़े शहरों में बाल मजदूरी एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आएगी, और दुकानों-बाजारों में छोटे-छोटे बच्चे काम करते हुए अब ज्यादा संख्या में नजर आ सकते हैं.