भोपाल। 1 नवंबर 2020 को मध्यप्रदेश का 65वां स्थापना दिवस है. देश के आजादी के बाद भोपाल रियासत के भारत में विलय और फिर मध्यप्रदेश के पुनर्गठन के गवाह शहर के कई स्थान रहे हैं. ये स्थान नवाबी हुकूमत और लोकतंत्र के इतिहास की कहानी बयां करते हैं. ये स्थान अब भी शहर की शान बने हुए हैं.
लाल परेड मैदान में साल दर साल मजबूत हुआ लोकतंत्र
26 जनवरी 1950 को देश में संविधान लागू होने के बाद साल 1951-52 में देश में आम चुनाव कराए गए. साल 1956 में राज्यों का पुनर्गठन और मध्यप्रदेश का निर्माण हुआ. मध्यप्रदेश का पुनर्गठन भाषायी आधार पर सीपी एंड बरार, मध्य भारत, विंध्य प्रदेश और भोपाल राज्य को मिलाकर किया गया. मध्यप्रदेश के गठन की घोषणा की अगली सुबह 1 नवंबर 1956 को लाल परेड ग्राउंड पर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के तौर पंडित रविशंकर शुक्ल का पहला उद्धवोधन हुआ. इसके बाद पहले राज्यपाल डॉ. पट्टाभि सीतारमैया ने परेड की सलामी ली. परेड में मंत्रिमंडल की सदस्य रानी पदमावती देवी, नरसिंह राव दीक्षित, शंकर दयाल शर्मा आदि शामिल हुए. लाल परेड मैदान का निर्माण 1844 को जहांगीर मोहम्मद खान ने कराया था.
नवाबी हुकूमत और लोकतंत्र का गवाह रहा मिंटो हॉल
शहर के बीचोंबीच स्थित मिंटो हॉल अंग्रेजी राज, नवाबी हुकूमत और लोकतंत्र की मजबूती का गवाह रहा है. राज्य के पुनर्गठन के बाद 1956 में एकीकृत विधानसभा भवन के लिए मिंटो हॉल का ही चयन किया गया. मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एम हिदायत उल्लाह ने 31 अक्टूबर 1956 की रात्रि में नए मध्यप्रदेश के पहले राज्यपाल डॉ. पट्टाभि सीतारमैया को मिंटो हॉल में शपथ दिखाई. 1 नवंबर 1956 को मिंटो हॉल में ही राज्यपाल डॉ. पट्टाभि सीतारमैया ने मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल को शपथ दिलाई. मिंटो हॉल के निर्माण का फैसला 12 नवंबर 1909 में किया गया था. तत्कालीन भोपाल नवाब सुल्तान जहां बेगम ने गवर्नर जनरल लॉर्ड मिंटों के स्वागत के लिए इसे बनाने का फैसला किया, लेकिन इसे बनने में ही करीब 24 साल का वक्त लग गया. 1 नवंबर 1956 से करीब 40 सालों तक इसमें संसदीय यात्रा चलती रही.
लाल कोठी हमेशा रही महत्वपूर्ण
राजधानी के केंद्र में स्थित राजभवन प्रदेश के गठन के पहले तक लाल कोठी के नाम से जाना जाता था. 1980 में नवाब शाहजहां बेगम ने इसका निर्माण अंग्रेजी अफसरों के लिए कराया था. लाल खप्पर की छत होने की वजह से इसे लाल कोठी कहा जाता था. 1949 में इसे चीफ कमिश्नर के निवास और मध्यप्रदेश के गठन के बाद राजभवन का रूप दे दिया गया.