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स्पेशल: कोरोना काल में स्वास्थ्य सुविधाओं में हुआ इजाफा, लेकिन लापरवाही ने खड़े किए कई सवाल

मध्यप्रदेश के जिला अस्पताल में कोविड-19 केयर और डेडिकेटेड सेंटर है. इसके साथ ही शासकीय और निजी लैब्स में कोविड 19 की जांच की जा रही है. प्रदेश की टेस्टिंग क्षमता करीब 50 हज़ार से 55 हज़ार प्रतिदिन करने की है जबकि फिलहाल केवल 33 से 35 हजार के बीच टेस्ट किए जा रहे हैं. व्यवस्थाओं को लेकर स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर प्रभुराम चौधरी भी कई बार इस बात को दोहरा चुके हैं. पढ़िए हमारी खास रिपोर्ट...

Health facilities increased
स्वास्थ्य सुविधाओं में हुआ इजाफा
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Published : Dec 27, 2020, 6:29 PM IST

भोपाल। जब पूरी दुनिया में कोरोना संक्रमण ने अपना प्रकोप दिखाना शुरू किया था तो किसी भी देश की सरकार और स्वास्थ्य व्यवस्थाएं इस वायरस से लड़ने के लिए तैयार नहीं थीं. धीरे-धीरे सभी देशों ने लड़ने, इस संक्रमण की पहचान करने और इसके इलाज के लिए स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने पर काम करना शुरु कर दिया. भारत में भी कमोबेश यहीं हालात थे. यहां तक की भारत में कोरोना वायरस से बचने के लिए मास्क, सेनेटाइजर और पीपीई किट तक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं थे. यदि बात मध्यप्रदेश की जाए तो प्रदेश में कोरोना वायरस की दस्तक के समय सत्ता पलट का खेल चल रहा था, जिसके कारण तत्कालीन कमलनाथ सरकार का ध्यान कोविड-19 को छोड़कर सत्ता बचाने में रहा.

सरकार बदलने के बाद की गई व्यवस्थाएं

मार्च के महीने में कोविड-19 का पहला मामला जबलपुर में सामने आया था. इसके बाद राजधानी भोपाल और फिर इंदौर में मामले आने लगे. शुरुआत में प्रदेश के केवल बड़े शासकीय अस्पतालों में ही टेस्टिंग की व्यवस्था थी. हर दिन केवल 1200 से 1400 सैंपलों की जांच की जा रही थी. इसके अलावा सामान्य बिस्तर, आईसीयू, वेंटीलेटर, कोविड-19 सेंटर्स, क्वारंटीन सेंटर्स की संख्या भी बस नाम मात्र की थी. मार्च से मई महीने तक लगभग व्यवस्थाओं के यही हाल रहे, लेकिन फिर जब प्रदेश के हर जिले से कोविड-19 के मामले आना शुरू हुए तब जाकर टेस्टिंग क्षमता, कोविड-19 सेंटर्स, क्वारेन्टीन सेंटर्स, दवाइयों की उपलब्धता, पैरामेडिकल स्टाफ की संख्या बढ़ाई गई.

आज प्रदेश के हरेक जिला अस्पताल में कोविड-19 केयर और डेडिकेटेड केयर सेंटर्स हैं. इसके साथ ही शासकीय और निजी लैबों में कोविड 19 की जांच की जा रही है. प्रदेश की टेस्टिंग क्षमता करीब 50 हज़ार से 55 हज़ार प्रतिदिन करने की है जबकि फिलहाल 33 से 35 हजार के बीच टेस्ट किए जा रहे हैं. व्यवस्थाओं को लेकर स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर प्रभुराम चौधरी भी कई बार इस बात को दोहरा चुके हैं कि हमने सत्ता में आते ही कोरोना वायरस से लड़ने के लिए व्यवस्थाओं को दुरुस्त किया है. जहां पहले हमारे पास केवल कुछ चुनिंदा लैब में टेस्टिंग की सुविधा थी, वहीं अब हर जिला अस्पताल और निजी लैब में भी टेस्टिंग की व्यवस्था है. न केवल बड़े शासकीय अस्पतालों बल्कि सर्दी-जुखाम, बुखार और कोविड-19 की जांच के लिए फीवर क्लीनिक्स खोली गईं. ऑक्सीजन सुविधा को सुनिश्चित किया गया साथ ही बिस्तरों की संख्या को भी बढ़ाया.

स्वास्थ्य सुविधाओं में इजाफा, लेकिन लापरवाही बढ़ी
राजधानी भोपाल के हाल

राजधानी भोपाल में भी व्यवस्थाएं शुरुआती दौर में नाकाफी थीं. पहले शहर के शासकीय अस्पतालों एम्स भोपाल, हमीदिया अस्पताल में कोविड सेंटर बनाया गया और चिरायु अस्पताल को कोविड-19 केयर सेंटर के लिए अनुबंधित किया गया. मामले बढ़ने के साथ-साथ जेपी अस्पताल , टीबी अस्पताल, बीएमएचआरसी के साथ ही निजी जेके अस्पताल को भी अनुबंधित किया गया.

बिस्तरों की व्यवस्था

चिरायु अस्पताल में इस समय एक हजार कोविड-19 बिस्तरों की व्यवस्था है. जिसमें ऑक्सीजन बेड भी शामिल है. हमीदिया अस्पताल में भी करीब साढ़े 400 बिस्तरों की व्यवस्था है. वहीं जेके अस्पताल में 200 बिस्तरों की व्यवस्था है. टीबी अस्पताल में भी 100 बिस्तरों की व्यवस्था है. इसके अलावा शहर के कई निजी अस्पतालों में भी कोविड-19 के मरीजों का इलाज किया जा रहा है. साथ ही मरीजों को होम आइसोलेशन में रखने की व्यवस्था की गई.

टेस्टिंग क्षमता

भोपाल में इस समय रोजाना कोरोना के 3 हजार टेस्ट किए जाने की क्षमता है. शहर के करीब 21 लैब्स में सैंपल टेस्टिंग की जा रही है, जिनमें निजी और सरकारी दोनों लैब्स शामिल हैं. इसके साथ ही सैंपल कलेक्शन के लिए बड़े अस्पतालों के अलावा 46 फीवर क्लीनिक्स भी संचालित की जा रही हैं, जो शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में बनाई गई हैं, ताकि लोगों को उनके घर के आसपास ही टेस्ट करवाने की सुविधा मिल सके.

मास्क और पीपीई किट की उपलब्धता

पहले की तुलना में अब शहर की हर छोटी-बड़ी दवा दुकान में मास्क, सेनेटाइजर, पीपीई किट उपलब्ध हैं. न केवल दवा दुकानों बल्कि जनरल स्टोर, बाजारों और सड़कों पर भी स्टॉल लगाकर मास्क, सैनिटाइजर बेचे जा रहे हैं. इसके साथ ही कोविड-19 के इलाज में मरीज को दी जाने वाली दवाइयां और इंजेक्शन भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं.

सुविधाओं के साथ लापरवाही भी बढ़ी

एक ओर स्वास्थ्य विभाग और राज्य सरकार कोरोना काल में व्यवस्थाओं को बढ़ाने के नाम पर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं, तो दूसरी ओर अस्पतालों से लापरवाही की खबरें सामने आती रहती हैं. आलम यह है कि कहीं बच्चों की मौत तो कहीं प्रसूता को एंबुलेंस तक नहीं मिल पा रहा.

शहडोल में बच्चों की मौत

इस महीने सबसे ज्यादा यदि किसी लापरवाही ने सुर्खियां बटोरी तो वो शहडोल जिला अस्पताल में 24 बच्चों की मौत है. पहले स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर प्रभुराम चौधरी ने यह सफाई दी थी कि इलाज में लापरवाही नहीं की गई फिर मामले को बढ़ता देख वह खुद अस्पताल का निरीक्षण करने पहुंचे और सिविल सर्जन, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को हटाने की कार्रवाई की गई.

हमीदिया अस्पताल में बिजली गुल होने का मामला

राजधानी भोपाल के सबसे बड़े शासकीय अस्पताल हमीदिया अस्पताल के कोविड ब्लॉक में करीब एक से डेढ़ घंटे बिजली गुल रही. इस दौरान वहां के जनरेटर ने भी काम नहीं किया. 3 कोविड मरीजों की मौत की बात सामने आई और बड़ी लापरवाही उजागर हुई. लेकिन जांच रिपोर्ट में अस्पताल प्रबंधन को क्लीन चिट दे दी गई और पीडब्ल्यूडी के सब इंजीनियर को बर्खास्त कर दिया गया. लेकिन आज भी जांच रिपोर्ट पर सवाल उठा रहे हैं. ये कोविड़ मरीजों को लेकर सबसे बड़ी लापरवाही थी जो सुर्खियों में रही. वेटीलेटर पर रखे गए मरीजों ने दम तोड़ा.

कोविड मरीजों के लिए नहीं है स्टाफ

हालांकि चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग के निरीक्षण के दौरान यह बात सामने आई थी कि जेपी जिला अस्पताल के कोविड-19 वार्ड में भर्ती मरीजों के लिए मेडिकल स्टाफ उपलब्ध नहीं रहता. मरीजों को खुद ही अपना का ख्याल रखना पड़ता है. इस बीच कई बार अस्पतालों में लापरवाही के मामले तेजी से सामने आए हैं. हालांकि कुछ मामलों में छोटी मोटी कार्रवाई की गई. लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद भी अस्पताल प्रंबधन ने कुछ नहीं सीखा. हमीदिया अस्पताल में तो आलम यह है कि परिजन खुद मरीजों का स्ट्रेचर पर लिटाकर ले जाते हैं. इस दौरान उनकी मदद के लिए सामने कोई नहीं आता.

फीवर और संजीवनी क्लीनिक के भी यहीं है हाल

राजधानी के ना केवल बड़े अस्पतालों बल्कि फीवर क्लीनिक और संजीवनी क्लीनिक में भी यही हाल हैं. कई बार ऑन ड्यूटी डॉक्टर ही नहीं रहते और मरीज आ कर चले जाते हैं. कोविड मरीजों के सैंपल लेने के बाद भी कई दिनों तक सैंपल टेस्ट के लिए लैब में नहीं भेजे जाते हैं. कुछ संजीवनी क्लीनिक तो ऐसे हैं, जहां पर बिजली का स्थायी कनेक्शन तक नहीं.

भोपाल समेत प्रदेश के छोटे-बड़े अस्पतालों में लापरवाही के मामले लगभग हर दिन बढ़ रहे हैं. इससे साफ संकेत है कि स्वास्थ्य विभाग का रवैया भी लापरवाह बना हुआ है. जब कोई बड़ा हादसा होता है तो स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा मंत्री जांच की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं. जबकि मामले में दोषियों पर कार्रवाई नहीं होती है. प्रदेश के सरकारी अस्पातलों में मरीज अपनी जान के लिए खुद ही संघर्ष करते हैं.

भोपाल। जब पूरी दुनिया में कोरोना संक्रमण ने अपना प्रकोप दिखाना शुरू किया था तो किसी भी देश की सरकार और स्वास्थ्य व्यवस्थाएं इस वायरस से लड़ने के लिए तैयार नहीं थीं. धीरे-धीरे सभी देशों ने लड़ने, इस संक्रमण की पहचान करने और इसके इलाज के लिए स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने पर काम करना शुरु कर दिया. भारत में भी कमोबेश यहीं हालात थे. यहां तक की भारत में कोरोना वायरस से बचने के लिए मास्क, सेनेटाइजर और पीपीई किट तक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं थे. यदि बात मध्यप्रदेश की जाए तो प्रदेश में कोरोना वायरस की दस्तक के समय सत्ता पलट का खेल चल रहा था, जिसके कारण तत्कालीन कमलनाथ सरकार का ध्यान कोविड-19 को छोड़कर सत्ता बचाने में रहा.

सरकार बदलने के बाद की गई व्यवस्थाएं

मार्च के महीने में कोविड-19 का पहला मामला जबलपुर में सामने आया था. इसके बाद राजधानी भोपाल और फिर इंदौर में मामले आने लगे. शुरुआत में प्रदेश के केवल बड़े शासकीय अस्पतालों में ही टेस्टिंग की व्यवस्था थी. हर दिन केवल 1200 से 1400 सैंपलों की जांच की जा रही थी. इसके अलावा सामान्य बिस्तर, आईसीयू, वेंटीलेटर, कोविड-19 सेंटर्स, क्वारंटीन सेंटर्स की संख्या भी बस नाम मात्र की थी. मार्च से मई महीने तक लगभग व्यवस्थाओं के यही हाल रहे, लेकिन फिर जब प्रदेश के हर जिले से कोविड-19 के मामले आना शुरू हुए तब जाकर टेस्टिंग क्षमता, कोविड-19 सेंटर्स, क्वारेन्टीन सेंटर्स, दवाइयों की उपलब्धता, पैरामेडिकल स्टाफ की संख्या बढ़ाई गई.

आज प्रदेश के हरेक जिला अस्पताल में कोविड-19 केयर और डेडिकेटेड केयर सेंटर्स हैं. इसके साथ ही शासकीय और निजी लैबों में कोविड 19 की जांच की जा रही है. प्रदेश की टेस्टिंग क्षमता करीब 50 हज़ार से 55 हज़ार प्रतिदिन करने की है जबकि फिलहाल 33 से 35 हजार के बीच टेस्ट किए जा रहे हैं. व्यवस्थाओं को लेकर स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर प्रभुराम चौधरी भी कई बार इस बात को दोहरा चुके हैं कि हमने सत्ता में आते ही कोरोना वायरस से लड़ने के लिए व्यवस्थाओं को दुरुस्त किया है. जहां पहले हमारे पास केवल कुछ चुनिंदा लैब में टेस्टिंग की सुविधा थी, वहीं अब हर जिला अस्पताल और निजी लैब में भी टेस्टिंग की व्यवस्था है. न केवल बड़े शासकीय अस्पतालों बल्कि सर्दी-जुखाम, बुखार और कोविड-19 की जांच के लिए फीवर क्लीनिक्स खोली गईं. ऑक्सीजन सुविधा को सुनिश्चित किया गया साथ ही बिस्तरों की संख्या को भी बढ़ाया.

स्वास्थ्य सुविधाओं में इजाफा, लेकिन लापरवाही बढ़ी
राजधानी भोपाल के हाल

राजधानी भोपाल में भी व्यवस्थाएं शुरुआती दौर में नाकाफी थीं. पहले शहर के शासकीय अस्पतालों एम्स भोपाल, हमीदिया अस्पताल में कोविड सेंटर बनाया गया और चिरायु अस्पताल को कोविड-19 केयर सेंटर के लिए अनुबंधित किया गया. मामले बढ़ने के साथ-साथ जेपी अस्पताल , टीबी अस्पताल, बीएमएचआरसी के साथ ही निजी जेके अस्पताल को भी अनुबंधित किया गया.

बिस्तरों की व्यवस्था

चिरायु अस्पताल में इस समय एक हजार कोविड-19 बिस्तरों की व्यवस्था है. जिसमें ऑक्सीजन बेड भी शामिल है. हमीदिया अस्पताल में भी करीब साढ़े 400 बिस्तरों की व्यवस्था है. वहीं जेके अस्पताल में 200 बिस्तरों की व्यवस्था है. टीबी अस्पताल में भी 100 बिस्तरों की व्यवस्था है. इसके अलावा शहर के कई निजी अस्पतालों में भी कोविड-19 के मरीजों का इलाज किया जा रहा है. साथ ही मरीजों को होम आइसोलेशन में रखने की व्यवस्था की गई.

टेस्टिंग क्षमता

भोपाल में इस समय रोजाना कोरोना के 3 हजार टेस्ट किए जाने की क्षमता है. शहर के करीब 21 लैब्स में सैंपल टेस्टिंग की जा रही है, जिनमें निजी और सरकारी दोनों लैब्स शामिल हैं. इसके साथ ही सैंपल कलेक्शन के लिए बड़े अस्पतालों के अलावा 46 फीवर क्लीनिक्स भी संचालित की जा रही हैं, जो शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में बनाई गई हैं, ताकि लोगों को उनके घर के आसपास ही टेस्ट करवाने की सुविधा मिल सके.

मास्क और पीपीई किट की उपलब्धता

पहले की तुलना में अब शहर की हर छोटी-बड़ी दवा दुकान में मास्क, सेनेटाइजर, पीपीई किट उपलब्ध हैं. न केवल दवा दुकानों बल्कि जनरल स्टोर, बाजारों और सड़कों पर भी स्टॉल लगाकर मास्क, सैनिटाइजर बेचे जा रहे हैं. इसके साथ ही कोविड-19 के इलाज में मरीज को दी जाने वाली दवाइयां और इंजेक्शन भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं.

सुविधाओं के साथ लापरवाही भी बढ़ी

एक ओर स्वास्थ्य विभाग और राज्य सरकार कोरोना काल में व्यवस्थाओं को बढ़ाने के नाम पर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं, तो दूसरी ओर अस्पतालों से लापरवाही की खबरें सामने आती रहती हैं. आलम यह है कि कहीं बच्चों की मौत तो कहीं प्रसूता को एंबुलेंस तक नहीं मिल पा रहा.

शहडोल में बच्चों की मौत

इस महीने सबसे ज्यादा यदि किसी लापरवाही ने सुर्खियां बटोरी तो वो शहडोल जिला अस्पताल में 24 बच्चों की मौत है. पहले स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर प्रभुराम चौधरी ने यह सफाई दी थी कि इलाज में लापरवाही नहीं की गई फिर मामले को बढ़ता देख वह खुद अस्पताल का निरीक्षण करने पहुंचे और सिविल सर्जन, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को हटाने की कार्रवाई की गई.

हमीदिया अस्पताल में बिजली गुल होने का मामला

राजधानी भोपाल के सबसे बड़े शासकीय अस्पताल हमीदिया अस्पताल के कोविड ब्लॉक में करीब एक से डेढ़ घंटे बिजली गुल रही. इस दौरान वहां के जनरेटर ने भी काम नहीं किया. 3 कोविड मरीजों की मौत की बात सामने आई और बड़ी लापरवाही उजागर हुई. लेकिन जांच रिपोर्ट में अस्पताल प्रबंधन को क्लीन चिट दे दी गई और पीडब्ल्यूडी के सब इंजीनियर को बर्खास्त कर दिया गया. लेकिन आज भी जांच रिपोर्ट पर सवाल उठा रहे हैं. ये कोविड़ मरीजों को लेकर सबसे बड़ी लापरवाही थी जो सुर्खियों में रही. वेटीलेटर पर रखे गए मरीजों ने दम तोड़ा.

कोविड मरीजों के लिए नहीं है स्टाफ

हालांकि चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग के निरीक्षण के दौरान यह बात सामने आई थी कि जेपी जिला अस्पताल के कोविड-19 वार्ड में भर्ती मरीजों के लिए मेडिकल स्टाफ उपलब्ध नहीं रहता. मरीजों को खुद ही अपना का ख्याल रखना पड़ता है. इस बीच कई बार अस्पतालों में लापरवाही के मामले तेजी से सामने आए हैं. हालांकि कुछ मामलों में छोटी मोटी कार्रवाई की गई. लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद भी अस्पताल प्रंबधन ने कुछ नहीं सीखा. हमीदिया अस्पताल में तो आलम यह है कि परिजन खुद मरीजों का स्ट्रेचर पर लिटाकर ले जाते हैं. इस दौरान उनकी मदद के लिए सामने कोई नहीं आता.

फीवर और संजीवनी क्लीनिक के भी यहीं है हाल

राजधानी के ना केवल बड़े अस्पतालों बल्कि फीवर क्लीनिक और संजीवनी क्लीनिक में भी यही हाल हैं. कई बार ऑन ड्यूटी डॉक्टर ही नहीं रहते और मरीज आ कर चले जाते हैं. कोविड मरीजों के सैंपल लेने के बाद भी कई दिनों तक सैंपल टेस्ट के लिए लैब में नहीं भेजे जाते हैं. कुछ संजीवनी क्लीनिक तो ऐसे हैं, जहां पर बिजली का स्थायी कनेक्शन तक नहीं.

भोपाल समेत प्रदेश के छोटे-बड़े अस्पतालों में लापरवाही के मामले लगभग हर दिन बढ़ रहे हैं. इससे साफ संकेत है कि स्वास्थ्य विभाग का रवैया भी लापरवाह बना हुआ है. जब कोई बड़ा हादसा होता है तो स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा मंत्री जांच की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं. जबकि मामले में दोषियों पर कार्रवाई नहीं होती है. प्रदेश के सरकारी अस्पातलों में मरीज अपनी जान के लिए खुद ही संघर्ष करते हैं.

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