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कमलनाथ सरकार नहीं करेगी मीसाबंदियों का सम्मान, बीजेपी ने कमलनाथ को दी ये नसीहत

प्रदेश सरकार इस बार स्वतंत्रता दिवस समारोह में मीसाबंदियों का सम्मान नहीं करेगी. कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के इस फैसले के बाद जमकर सियासत हो रही है.

मीसाबंदी पर कांग्रेस-बीजेपी आमने सामने
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Published : Aug 15, 2019, 11:05 AM IST

भोपाल। 73वां स्वतंत्रता दिवस समारोह में इस बार मीसाबंदियों का सम्मान नहीं किया जाएगा. कमलनाथ सरकार के इस फैसले के बाद मामला तूल पकड़ता जा रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने मीसाबंदियों को लोकतंत्र सेनानी बताते हुए कहा कि उन्होंने आजादी की तीसरी लड़ाई लड़ी थी.

मीसाबंदी पर कांग्रेस-बीजेपी आमने-सामने

शिवराज ने कांग्रेस को नसीहत देते हुए कहा कि कमलनाथ को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर लोकतंत्र सेनानियों का सम्मान करना चाहिए. मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा ने पूर्व सीएम के उस बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि यह जरुरी नहीं है कि जो भ्रष्टाचार बीजेपी ने किया है वहीं फर्जीवाड़ा कांग्रेस सरकार करे.

नरेंद्र सलूजा ने कहा कि शिवराज सिंह चौहान तो ऐसा करके आजादी के लिए कुर्बानी देने वाले हजारों स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि मीसाबांदियों की तुलना देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वाले स्वतंत्रता सैनानियों के साथ करके उनका अपमान कर रहे हैं.

मीसाबंदियों पर भाजपा ने क्या बोला था
बीजेपी प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल ने कहा कि मीसाबंदी सम्मान निधि बंद हुई, तो कांग्रेस की ईंट से ईंट बजा देंगे. मीसाबंदी सम्मान निधि को तत्कालीन शिवराज सरकार ने विधेयक बना कर लागू किया था और अगर कमलनाथ सरकार को इसे बंद करना है, तो विधेयक को निरस्त करना होगा, जो कि विधानसभा में ही मुमकिन है. ऐसे में देखना ये है कि दूसरों से समर्थन लेकर बनाई गई सरकार इसमें सफल हो पाती है या नहीं.

भारतीय जनता पार्टी ने मीसाबंदियों को लोकतंत्र सेनानियों का दर्जा देने वाली बीजेपी ने कांग्रेस को खुलेआम चेतावनी दी है. मध्यप्रदेश में दो हजार से अधिक मीसाबंदी 25 हजार रुपये महीने की पेंशन ले रहे हैं.

कब लागू हुई मीसाबंदी पेंशन
2008 में शिवराज सिंह चौहान सरकार ने मीसाबंदियों को 3 हजार और 6 हजार पेंशन देने का प्रावधान किया था. बाद में ये पेंशन राशि बढ़ाकर 10 हजार रुपये कर दी गई.
कब-कब बढ़ी पेंशन

इसके बाद प्रदेश सरकार ने 2017 में मीसाबंदियों की पेंशन राशि बढ़ाकर 25 हजार रुपये कर दी गई. प्रदेश में 2 हजार से ज़्यादा मीसाबंदियों की पेंशन पर सालाना करीब 75 करोड़ रुपये खर्च होते हैं.

भोपाल। 73वां स्वतंत्रता दिवस समारोह में इस बार मीसाबंदियों का सम्मान नहीं किया जाएगा. कमलनाथ सरकार के इस फैसले के बाद मामला तूल पकड़ता जा रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने मीसाबंदियों को लोकतंत्र सेनानी बताते हुए कहा कि उन्होंने आजादी की तीसरी लड़ाई लड़ी थी.

मीसाबंदी पर कांग्रेस-बीजेपी आमने-सामने

शिवराज ने कांग्रेस को नसीहत देते हुए कहा कि कमलनाथ को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर लोकतंत्र सेनानियों का सम्मान करना चाहिए. मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा ने पूर्व सीएम के उस बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि यह जरुरी नहीं है कि जो भ्रष्टाचार बीजेपी ने किया है वहीं फर्जीवाड़ा कांग्रेस सरकार करे.

नरेंद्र सलूजा ने कहा कि शिवराज सिंह चौहान तो ऐसा करके आजादी के लिए कुर्बानी देने वाले हजारों स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि मीसाबांदियों की तुलना देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वाले स्वतंत्रता सैनानियों के साथ करके उनका अपमान कर रहे हैं.

मीसाबंदियों पर भाजपा ने क्या बोला था
बीजेपी प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल ने कहा कि मीसाबंदी सम्मान निधि बंद हुई, तो कांग्रेस की ईंट से ईंट बजा देंगे. मीसाबंदी सम्मान निधि को तत्कालीन शिवराज सरकार ने विधेयक बना कर लागू किया था और अगर कमलनाथ सरकार को इसे बंद करना है, तो विधेयक को निरस्त करना होगा, जो कि विधानसभा में ही मुमकिन है. ऐसे में देखना ये है कि दूसरों से समर्थन लेकर बनाई गई सरकार इसमें सफल हो पाती है या नहीं.

भारतीय जनता पार्टी ने मीसाबंदियों को लोकतंत्र सेनानियों का दर्जा देने वाली बीजेपी ने कांग्रेस को खुलेआम चेतावनी दी है. मध्यप्रदेश में दो हजार से अधिक मीसाबंदी 25 हजार रुपये महीने की पेंशन ले रहे हैं.

कब लागू हुई मीसाबंदी पेंशन
2008 में शिवराज सिंह चौहान सरकार ने मीसाबंदियों को 3 हजार और 6 हजार पेंशन देने का प्रावधान किया था. बाद में ये पेंशन राशि बढ़ाकर 10 हजार रुपये कर दी गई.
कब-कब बढ़ी पेंशन

इसके बाद प्रदेश सरकार ने 2017 में मीसाबंदियों की पेंशन राशि बढ़ाकर 25 हजार रुपये कर दी गई. प्रदेश में 2 हजार से ज़्यादा मीसाबंदियों की पेंशन पर सालाना करीब 75 करोड़ रुपये खर्च होते हैं.

Intro:भोपाल। इस बार स्वतंत्रता दिवस समारोह में मीसा बंदियों का सम्मान नहीं होगा। कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के इस फैसले के बाद जमकर सियासत हो रही है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने मीसा बंदियों को लोकतंत्र सेनानी बताते हुए कहा है कि उन्होंने आजादी की तीसरी लड़ाई लड़ी थी।मुख्यमंत्री कमलनाथ को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर लोकतंत्र सेनानियों का सम्मान करना चाहिए। उनके इस फैसले से इंदिरा गांधी कटघरे में खड़ी हो रही हैं और एक परिवार को नाराज नहीं करने के कारण मीसा बंदियों का सम्मान न करने का निर्णय सरकार ले रही है। शिवराज के बयान पर पलटवार करते हुए कांग्रेस ने कहा है कि मीसा बंदियों को लेकर शिवराज का ये कहना कि उन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी थी। यह आजादी की लड़ाई लड़ने वाले देशभक्तों का घोर अपमान है। उनकी मीसा बंदियों से तुलना नहीं की जा सकती है।


Body:मप्र कांग्रेस अध्यक्ष के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के मीसा बंदियों पर दिए बयान पर पलटवार करते हुए कहा है कि शिवराज सिंह मीसा बंदियों को लेकर कह रहे हैं कि उन्होंने आजादी की तीसरी लड़ाई लड़ी थी। उनका यह कथन और आपत्तिजनक और आजादी की लड़ाई लड़ने वालों का देशभक्तों का अपमान है। आजादी की लड़ाई लड़ने वाले देशभक्तों से मीसा बंदियों की तुलना करना भाजपा की सोच उजागर करता है।

नरेंद्र सलूजा ने बताया कि राष्ट्रीय पर्व पर आजादी की लड़ाई लड़ने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और देशभक्तों का सम्मान होना चाहिए। जिन्होंने देश की आजादी के संघर्ष में अपना त्याग बलिदान दिया। अब क्योंकि भाजपा और भाजपा से जुड़े किसी भी नेता ने आजादी के आंदोलन में भाग ही नहीं लिया।तो उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का महत्व कैसे पता चले। इसलिए उन महान देशभक्तों से मीसाबंदियों की तुलना कर रहे हैं।भाजपा यह भी देखें कि मीसाबंदियों की सूची में किस तरह फर्जीवाड़ा भाजपा सरकार के समय पर हुआ, कैसे-कैसे नामों की सूची में शामिल किया गया है। भाजपा के नेता और कार्यकर्ताओं को प्रेरित करने के लिए उनका नाम इस सूची में जोड़ा गया और जमकर फर्जीवाड़ा किया गया।


Conclusion:अब शिवराज सिंह कह रहे हैं कि इन लोगों का हम भाजपा के कार्यक्रमों में स्वागत करेंगे, तो निश्चित तौर पर जिस तरह से भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं को फर्जीवाड़ा कर सूची में शामिल किया गया है।तो उनका स्वागत सरकारी खर्च के बजाय भाजपा के भीतर ही होना चाहिए।
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