भोपाल. मध्य प्रदेश में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने की प्रोसेस कांग्रेस सरकार में शुरू किए जाने को लेकर कमलनाथ कई बार दावा कर चुके हैं. वे बीजेपी सरकार पर कोर्ट में कमजोर पैरवी करने और मामले को लटकाने के आरोप भी लगा चुके हैं, लेकिन सच ये हैं कि ओबीसी रिजर्वेशन के नाम पर अपनी राजनीति चमकाती रही कांग्रेस के भीतर ही कई ओबीसी नेशा हाशिए पर हैं. उन्हें संगठन में कोई तबज्जो नहीं मिल रही है. ओबीसी नेता के तौर पर प्रदेश कांग्रेस के दो बड़े चेहरे जीतू पटवारी और अरुण यादव हैं जो अपनी उपेक्षा को लेकर कई बार सार्वजनिक रूप से नाराजगी भी जाहिर कर चुके हैं.
ओबीसी के मुद्दे पर पिछड़ रही है कांग्रेस
पीसीसी चीफ और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ भले ही पिछड़ा वर्ग के मुद्दे को उछाल कर राजनीतिक रोटियां सेकने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वे ओबीसी आरक्षण पर बढ़त लेने के मामले में पिछड़ते नजर आ रहे हैं. जानकार मानते हैं कि खुद कांग्रेस संगठन में ही पार्टी के ओबीसी नेताओं को तवज्जो नहीं मिल पा रही है. प्रदेश कांग्रेस संगठन में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के अलावा कार्यकारी अध्यक्ष जीतू पटवारी के रूप में दो बड़े युवा चेहरे हैं, लेकिन ये दोनों ही नेता फिलहाल हाशिए पर हैं. अरुण यादव तो कई बार अपनी उपेक्षा को लेकर सार्वजनिक रूप से नाराजगी भी जाहिर कर चुके हैं. खंडवा लोकसभा चुनाव में अपनी दावेदारी जताने के बावजूद टिकिट हासिल करने का कोई पार्टी की तरफ से कोई वादा नहीं मिला है. इनके अलावा कमलेश्वर पटेल, सुखदेव पांसे, सचिन यादव, महिला कांग्रेस की अध्यक्ष अर्चना जायसवाल भी पिछड़ा वर्ग से आती हैं लेकिन वह भी कांग्रेस में ओबीसी की मजबूत नेता के तौर पर नहीं मानी जाती हैं.
OBC पॉलिटिक्स में पीछे है कांग्रेस
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अजय बोकिल का कहना है कि कांग्रेस ने पहले भी कभी पिछड़ा वर्ग की राजनीति नहीं की है. पार्टी में केवल सुभाष यादव ही बड़े नेता माने जाते रहे हैं, लेकिन पार्टी ने उनको भी उपमुख्यमंत्री ही बनाया गया था, जबकि वह मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे. बोकिल बताते हैं कि राजमणि पटेल पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के अध्यक्ष हैं लेकिन उनका उतना वजूद नहीं है. ओबीसी नेता सुखदेव पांसे ,सचिन यादव जैसे पूर्व मंत्री भी हाशिए पर ही चल रहे हैं. जानकार कहते हैं कि कांग्रेस संगठन को ओबीसी लीडरशिप को आगे बढ़ाना होगा, तभी वह बीजेपी के मुकाबले में आ पाएगी.
OBC के जरिए बीजेपी की लोकसभा की तैयारी
राजनीतिक विश्लेषक अजय बोकिल के मुताबिक बीजेपी ओबीसी के जरिए 2024 के लोकसभा चुनाव तैयारी कर रही है. इसके लिए वो अभी से पिछड़े वर्ग की राजनीति को केंद्र में रख रही है. यही वजह है कि आरक्षण पर संविधान संशोधन से पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में ओबीसी नेताओं को ज्यादा जगह दी गई. मध्यप्रदेश में बीजेपी का चेहरा सीएम शिवराज सिंह चौहान हैं वे पिछड़े वर्ग से आते हैं. यही वजह है कि राज्य और केंद्र में भी पार्टी ओबीसी आरक्षण को लेकर गंभीर हैं.
खुल रही है कांग्रेस की नींद
बीजेपी की बढ़त को देखते हुए कांग्रेस की भीतर भी ओबीसी नेताओं को ज्यादा जिम्मेदारी दिए जाने की योजना बनाई जा रही है. कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता अजय यादव कहते हैं कि संगठन में ओबीसी को मिलेगी और जिम्मेदारी प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता अजय सिंह यादव कहते हैं कि कमलनाथ सरकार ने ही मध्य प्रदेश में ओबीसी के लिए 27% आरक्षण लागू किया था. आने वाले समय में कांग्रेस संगठन में भी ओबीसी के नेताओं को और अधिक जिम्मेदारी दी जाएगी. यादव कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी ने हमेशा से पिछड़ा वर्ग के हितों के लिए काम किया है. वे बताते हैं कि कांग्रेस सरकार में 8 मंत्री ओबीसी वर्ग से थे, पार्टी के बड़े ओबीसी नेताओं में सुभाष यादव उप मुख्यमंत्री और उनके पुत्र अरुण यादव पीसीसी चीफ रह चुके हैं. इसलिए यह कहना है कि कांग्रेस ने कभी पिछड़ा वर्ग की राजनीति नहीं की है.
MP में 50 फीसदी ओबीसी आबादी
मध्य प्रदेश की कुल आबादी में से 50 फीसदी से अधिक है.ओबीसी आरक्षण का मामला कोर्ट में है और दोनों ही पार्टियां इसका क्रेडिट लेने की कोशिश कर रही है. हालांकि बीजेपी इस मामले में कांग्रेस से आगे निकलती दिखाई दे रही है यही वजह है कि ओबीसी आरक्षण को लेकर कांग्रेस और बीजेपी दोनों दलों के बीच खींचतान की स्थिति बनी हुई है.ओबीसी के लिए आरक्षण की सीमा 14 से 27 फ़ीसदी करने का फैसला भले ही कांग्रेस सरकार में हुआ हो, लेकिन इससे पहले कि यह लागू हो पाता इसे हाई कोर्ट में चुनौती दे दी गई. अब इस मामले में जल्द ही फैसला आने की उम्मीद है.प्रदेश की बीजेपी सरकार भी इस मामले में कोर्ट में मजबूती से अपना पक्ष रखने की तैयारी कर चुकी है. ऐसे में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण का लाभ अगर बीजेपी की सरकार में मिलता है तो सरकार को भी प्रदेश में होने वाले उपचुनाव, 2023 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में भी इसका लाभ मिलने की पूरी उम्मीद है.