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आधी आबादी: जागरुकता के अभाव में दम तोड़ती योजनाएं, नहीं मिल रहा हितग्राहियों को 'लाभ'

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Published : Dec 24, 2020, 10:22 PM IST

वैसे तो राज्य सरकार आधी आबादी के लिए कई योजनाएं चलाकर उनके कल्याण की बात करती है. लेकिन जिन हितग्राहियों के लिए यह योजना चलाई जा रही है उन्हें उनकी जानकारी तक नहीं होती है. इसका मतबल यह है कि सरकार तो अपना फर्ज अदा कर रही है लेकिन धरातल पर योजनाएं दम तोड़ रही है. इस रिपोर्ट में हम आपको कुछ ऐसे ही तथ्य बता रहे हैं. सवाल है कि क्या वाकई योजना आधी आबादी को फायदा दे पा रही हैं...

labour woman
आधी आबादी

भोपाल। आधी आबादी यानि महिलाएं अब भी समाज में कई तरह की मूलभूत सुविधाओं से बेजार हैं. खास तौर पर निचले तबके की बच्चियों और महिलाओं को तो उनके हक के बारे में ज्यादा जानकारी ही नहीं होती. ऐसी ही महिलाओं और बच्चियों के अच्छे भविष्य और इन्हें सुविधाएं देने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से कई तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं. इन योजनाओं को बनाने के पीछे का मकसद है महिलाओं और बच्चियों का स्वास्थ्य, शिक्षा और मूलभूत सुविधाओं तक पहुंच आसान करना और लाभ देना.

प्रदेश में योजनाएं

वैसे तो केंद्रीय महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से कई योजनाएं चलाई जाती हैं, लेकिन साथ ही एमपी में महिला एवं बाल विकास की भी अपनी कई योजनाएं संचालित कर रहा है. प्रदेश में लगभग 7 योजनाएं खासतौर पर बच्चियों- किशोरियों के लिए चलाई जा रही हैं.

1. लाडली लक्ष्मी योजना

लोगों में लड़कियों के जन्म को लेकर सकारात्मक सोच, लिंगानुपात में सुधार, बच्चियों के शैक्षणिक स्तर और स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार लाने के लिए यह योजना एक जनवरी 2007 से प्रदेश में शुरू की गई है. इसके तहत साल 2006 के बाद जन्मी बच्ची को एक लाख 18 हज़ार रुपये देने का प्रावधान है, जो समय समय पर दिए जाते हैं. विभाग के आंकड़ों के मुताबिक अब तक करीब 31 लाख बच्चियों को इसका लाभ मिला है.

2. लाडो अभियान

मध्य प्रदेश में बाल विवाह को रोकने के लिए इस अभियान को साल 2013 में शुरू किया गया था. इसके तहत जागरूकता कार्यक्रम के जरिए लोगों को बाल विवाह के बारे में जागरूक किया जाता है. विभाग के आंकड़ों के मुताबिक साल 2018- 19 में 5252 कार्यशालाओं का आयोजन किया गया, जिसके जरिए 5.59 लाख लोगों को जोड़ा गया. 1882 बच्चों को इस अभियान का ब्रांड एंबेसडर बनाया गया और 196 बाल विवाह स्थल पर आयोजन रोके गए हैं.

3. शौर्या दल

महिलाओं के उत्पीड़न को रोकने, उनका हक दिलाने के लिए ग्राम स्तर पर शौर्या दल का गठन किया गया है. जिनका काम महिलाओं के हक के लिए समाज में जागरूकता लाना है. विभाग के मुताबिक ग्रामीण स्तर पर अब तक इस दल ने 369 बाल विवाह रोके हैं. इसके साथ ही छेड़खानी के मामले भी रोके गए हैं.

जागरुकता के अभाव में दम तोड़ती योजनाएं

4. बेटी बचाओ अभियान

इस अभियान की शुरुआत 6 अक्टूबर 2011 से की गई थी, इसका मुख्य उद्देश्य बच्चियों के जन्म को बढ़ावा देना, बालिका भ्रूण हत्या के मामलों को रोकना, बालिकाओं से जुड़े मुद्दों पर संवेदनशीलता के साथ उनको प्रगति के अवसर देना है.

5. स्वागतम लक्ष्मी योजना

इस योजना की शुरुआत 24 जनवरी 2014 से की गई थी. इसके जरिए नवजात बच्चियों को स्वागतम लक्ष्मी किट दी जाती है और आंगनबाड़ी में महीने के तीसरे मंगलवार को बालिका जन्म उत्सव मनाया जाता है. विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक साल 2018-19 में योजना के तहत 43626 नवजात बालिकाओं को किट दी गई है.

6. उदिता योजना

किशोरियों को माहवारी के बारे में जानकारी देने, इस दौरान स्वास्थ्य का ख्याल रखने और स्वच्छता संबंधी जागरूकता लाने के लिए इस योजना को शुरू किया गया. इसके तहत आंगनबाड़ी में जागरूकता कार्यक्रम किए जाते हैं, साथ ही सेनेटरी नेपकिन भी उपलब्ध कराई जाती है. विभाग के मुताबिक साल 2018-19 तक पूरे प्रदेश में 92123 उदिता कॉर्नर बनाए गए, जिसके जरिए करीब 35 लाख सेनेटरी नेपकिन उपलब्ध कराई गई.

7. लालिमा योजना

प्रदेश की बच्चियों, किशोरियों और महिलाओं को एनीमिया मुक्त करने के लिए इस योजना की शुरूआत की गई. इसके तहत आईएफए टेबलेट आंगनबाड़ी के जरिए उपलब्ध कराई जाती है.

योजनाओं की हकीकत

प्रदेश सरकार की ओर से बच्चियों के हित के चाहे लाख दावे किए जाते हो लेकिन यदि जमीनी स्तर पर देखें तो हकीकत कुछ और ही नजर आती है. विभाग की ओर से चाहे कितनी भी योजनाएं बनाए जाएं, लेकिन इनका लाभ उन हितग्राहियों तक पहुंच ही नहीं पाता है. जिनके लिए इसे बनाया गया है. महिलाओं और बच्चों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता नीलम तिवारी इन योजनाओं की जमीनी हकीकत के बारे में बताती हैं कि जिन लोगों के लिए सरकार ने योजनाएं बनाई हैं, उन्हे इसकी जानकारी ही नहीं है.

फॉर्म भरने में व्यस्थ रहती है आंगनबाड़ी महिलाएं

आंगनबाड़ी बनाने का मुख्य उद्देश महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण का ध्यान रखना था. लेकिन जब आंगनबाड़ी में जाकर देखेंगे तो यह बात दिखाई पड़ती है कि ज्यादातर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता आंकड़ों को भरने के काम में लगी रहती हैं. यहां तक कि उसके पड़ोस की लड़की तक को यह जानकारी नहीं होती है कि आंगनबाड़ी में आयरन की गोली मिलेगी.

नहीं मिला लाडली लक्ष्मी का लाभ

एक मामला ऐसा भी आया जिसमें एक महिला पहले बेटी का लाडली लक्ष्मी कार्ड बनवाने गई थी लेकिन आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने यह कहकर कार्ड नहीं बनाया कि क्या तुम दूसरा बच्चा पैदा नहीं करोगी. जबकि लाडली लक्ष्मी योजना का लाभ परिवार की दो बेटियों को दिए जाने का प्रावधान है. कार्ड न बन पाने के कारण बच्ची को योजना का लाभ नहीं मिल पाया. इसी तरह ना जाने कितनी बच्चियां और महिलाएं जानकारी के अभाव में योजना का लाभ नहीं ले पाती हैं.

आंगनबाड़ियों तक नहीं पहुंचता सामान

नाम न बताने की शर्त पर राजधानी भोपाल की बस्ती में बनी एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने बताया कि योजनाओं के तहत आने वाले आयरन की गोली, सेनेटरी नैपकिन और पोषण आहार के समान समय पर नहीं आते हैं. इस कारण हम महिला और बच्चों को लाभ नहीं दे पाते हैं. बड़ी आंगनबाड़ी में तो फिर भी हालत ठीक है पर छोटी आंगनबाड़ियों में स्थिति सही नहीं है. इसके अलावा कोरोना महामारी के दौर में कई महीनों तक आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने सर्वे का काम किया है, जिसके कारण भी हम अपने दूसरे अभियानों पर ध्यान नहीं दे पाए हैं.

जमीनी स्तर पर हैं कमियां

विभाग की ओर से योजनाएं बना देने के बाद भी जमीनी स्तर पर कई कमियां होने के कारण इनका क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो पा रहा. प्रदेश में महिलाओं और बच्चियों की स्थिति में अलग-अलग योजनाओं के शुरू होने के सालों बाद भी कोई खास सुधार देखने को नहीं मिल रहा है.

भोपाल। आधी आबादी यानि महिलाएं अब भी समाज में कई तरह की मूलभूत सुविधाओं से बेजार हैं. खास तौर पर निचले तबके की बच्चियों और महिलाओं को तो उनके हक के बारे में ज्यादा जानकारी ही नहीं होती. ऐसी ही महिलाओं और बच्चियों के अच्छे भविष्य और इन्हें सुविधाएं देने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से कई तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं. इन योजनाओं को बनाने के पीछे का मकसद है महिलाओं और बच्चियों का स्वास्थ्य, शिक्षा और मूलभूत सुविधाओं तक पहुंच आसान करना और लाभ देना.

प्रदेश में योजनाएं

वैसे तो केंद्रीय महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से कई योजनाएं चलाई जाती हैं, लेकिन साथ ही एमपी में महिला एवं बाल विकास की भी अपनी कई योजनाएं संचालित कर रहा है. प्रदेश में लगभग 7 योजनाएं खासतौर पर बच्चियों- किशोरियों के लिए चलाई जा रही हैं.

1. लाडली लक्ष्मी योजना

लोगों में लड़कियों के जन्म को लेकर सकारात्मक सोच, लिंगानुपात में सुधार, बच्चियों के शैक्षणिक स्तर और स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार लाने के लिए यह योजना एक जनवरी 2007 से प्रदेश में शुरू की गई है. इसके तहत साल 2006 के बाद जन्मी बच्ची को एक लाख 18 हज़ार रुपये देने का प्रावधान है, जो समय समय पर दिए जाते हैं. विभाग के आंकड़ों के मुताबिक अब तक करीब 31 लाख बच्चियों को इसका लाभ मिला है.

2. लाडो अभियान

मध्य प्रदेश में बाल विवाह को रोकने के लिए इस अभियान को साल 2013 में शुरू किया गया था. इसके तहत जागरूकता कार्यक्रम के जरिए लोगों को बाल विवाह के बारे में जागरूक किया जाता है. विभाग के आंकड़ों के मुताबिक साल 2018- 19 में 5252 कार्यशालाओं का आयोजन किया गया, जिसके जरिए 5.59 लाख लोगों को जोड़ा गया. 1882 बच्चों को इस अभियान का ब्रांड एंबेसडर बनाया गया और 196 बाल विवाह स्थल पर आयोजन रोके गए हैं.

3. शौर्या दल

महिलाओं के उत्पीड़न को रोकने, उनका हक दिलाने के लिए ग्राम स्तर पर शौर्या दल का गठन किया गया है. जिनका काम महिलाओं के हक के लिए समाज में जागरूकता लाना है. विभाग के मुताबिक ग्रामीण स्तर पर अब तक इस दल ने 369 बाल विवाह रोके हैं. इसके साथ ही छेड़खानी के मामले भी रोके गए हैं.

जागरुकता के अभाव में दम तोड़ती योजनाएं

4. बेटी बचाओ अभियान

इस अभियान की शुरुआत 6 अक्टूबर 2011 से की गई थी, इसका मुख्य उद्देश्य बच्चियों के जन्म को बढ़ावा देना, बालिका भ्रूण हत्या के मामलों को रोकना, बालिकाओं से जुड़े मुद्दों पर संवेदनशीलता के साथ उनको प्रगति के अवसर देना है.

5. स्वागतम लक्ष्मी योजना

इस योजना की शुरुआत 24 जनवरी 2014 से की गई थी. इसके जरिए नवजात बच्चियों को स्वागतम लक्ष्मी किट दी जाती है और आंगनबाड़ी में महीने के तीसरे मंगलवार को बालिका जन्म उत्सव मनाया जाता है. विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक साल 2018-19 में योजना के तहत 43626 नवजात बालिकाओं को किट दी गई है.

6. उदिता योजना

किशोरियों को माहवारी के बारे में जानकारी देने, इस दौरान स्वास्थ्य का ख्याल रखने और स्वच्छता संबंधी जागरूकता लाने के लिए इस योजना को शुरू किया गया. इसके तहत आंगनबाड़ी में जागरूकता कार्यक्रम किए जाते हैं, साथ ही सेनेटरी नेपकिन भी उपलब्ध कराई जाती है. विभाग के मुताबिक साल 2018-19 तक पूरे प्रदेश में 92123 उदिता कॉर्नर बनाए गए, जिसके जरिए करीब 35 लाख सेनेटरी नेपकिन उपलब्ध कराई गई.

7. लालिमा योजना

प्रदेश की बच्चियों, किशोरियों और महिलाओं को एनीमिया मुक्त करने के लिए इस योजना की शुरूआत की गई. इसके तहत आईएफए टेबलेट आंगनबाड़ी के जरिए उपलब्ध कराई जाती है.

योजनाओं की हकीकत

प्रदेश सरकार की ओर से बच्चियों के हित के चाहे लाख दावे किए जाते हो लेकिन यदि जमीनी स्तर पर देखें तो हकीकत कुछ और ही नजर आती है. विभाग की ओर से चाहे कितनी भी योजनाएं बनाए जाएं, लेकिन इनका लाभ उन हितग्राहियों तक पहुंच ही नहीं पाता है. जिनके लिए इसे बनाया गया है. महिलाओं और बच्चों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता नीलम तिवारी इन योजनाओं की जमीनी हकीकत के बारे में बताती हैं कि जिन लोगों के लिए सरकार ने योजनाएं बनाई हैं, उन्हे इसकी जानकारी ही नहीं है.

फॉर्म भरने में व्यस्थ रहती है आंगनबाड़ी महिलाएं

आंगनबाड़ी बनाने का मुख्य उद्देश महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण का ध्यान रखना था. लेकिन जब आंगनबाड़ी में जाकर देखेंगे तो यह बात दिखाई पड़ती है कि ज्यादातर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता आंकड़ों को भरने के काम में लगी रहती हैं. यहां तक कि उसके पड़ोस की लड़की तक को यह जानकारी नहीं होती है कि आंगनबाड़ी में आयरन की गोली मिलेगी.

नहीं मिला लाडली लक्ष्मी का लाभ

एक मामला ऐसा भी आया जिसमें एक महिला पहले बेटी का लाडली लक्ष्मी कार्ड बनवाने गई थी लेकिन आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने यह कहकर कार्ड नहीं बनाया कि क्या तुम दूसरा बच्चा पैदा नहीं करोगी. जबकि लाडली लक्ष्मी योजना का लाभ परिवार की दो बेटियों को दिए जाने का प्रावधान है. कार्ड न बन पाने के कारण बच्ची को योजना का लाभ नहीं मिल पाया. इसी तरह ना जाने कितनी बच्चियां और महिलाएं जानकारी के अभाव में योजना का लाभ नहीं ले पाती हैं.

आंगनबाड़ियों तक नहीं पहुंचता सामान

नाम न बताने की शर्त पर राजधानी भोपाल की बस्ती में बनी एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने बताया कि योजनाओं के तहत आने वाले आयरन की गोली, सेनेटरी नैपकिन और पोषण आहार के समान समय पर नहीं आते हैं. इस कारण हम महिला और बच्चों को लाभ नहीं दे पाते हैं. बड़ी आंगनबाड़ी में तो फिर भी हालत ठीक है पर छोटी आंगनबाड़ियों में स्थिति सही नहीं है. इसके अलावा कोरोना महामारी के दौर में कई महीनों तक आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने सर्वे का काम किया है, जिसके कारण भी हम अपने दूसरे अभियानों पर ध्यान नहीं दे पाए हैं.

जमीनी स्तर पर हैं कमियां

विभाग की ओर से योजनाएं बना देने के बाद भी जमीनी स्तर पर कई कमियां होने के कारण इनका क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो पा रहा. प्रदेश में महिलाओं और बच्चियों की स्थिति में अलग-अलग योजनाओं के शुरू होने के सालों बाद भी कोई खास सुधार देखने को नहीं मिल रहा है.

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