भोपाल। नई तकनीक ने न्याय की लड़ाई को धार दी है, पारदर्शिता दी है. महिलाओं से जुड़े अपराधों को रोकने में तकनीक का काफी लाभ हुआ है. डायल 100 में जो कॉल आते हैं, हम पाते हैं कि ये किसी विशेष क्षेत्र से होते हैं. हम इनकी मैपिंग कर ऐसे इलाकों को चिह्नित कर सकते हैं और इन पर निगरानी रख सकते हैं. पुलिस अपने संसाधनों और तकनीक का प्रयोग ऐसे स्थानों पर कर सकती है. इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं. यह बात कही भोपाल पुलिस आयुक्त हरिनारायणचारी मिश्र ने.
न्याय दिलाने में पुलिस की भूमिका अहम : भोपाल पुलिस कमिश्नर ने कहा कि पुलिस कई बार अपनी वैधानिक परिधि से बाहर आकर भी समाज में अपना योगदान देती है. महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को न्याय दिलाने में पुलिस अपनी इसी परिधि से बाहर आकर कार्य कर रही है. द प्रैकेडमिक एक्शन रिसर्च इनिशिएटिव फॉर मल्टीडिसिप्लिनरी एप्रोच लैब (परिमल) और जस्टिस इंक्लूशन एंड विक्टिम एक्सेस (जीवा) के संयुक्त तत्वावधान में शुरू हुई कांफ्रेंस का समापन 25 मार्च को होगा. पहले दिन एक्सेस टू जस्टिस, इंक्लूशन एंड एविडेंस बेस्ड प्रैक्टिस थीम के अंतर्गत “जेंडर, लॉ इंफोर्समेंट एंड एविडेंस बेस्ड प्रेक्टिस विषय पर बात हुई. इसमें सीबीआई और मध्यप्रदेश पुलिस के सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक ऋषि शुक्ला, मध्यप्रदेश पुलिस मुख्यालय में आईजी (एडमिनिस्ट्रेशन) दीपिका सूरी, आईपीएस सुषमा सिंह, राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी की प्रो.गीता ओबेराय, जे पल व यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जिनिया के प्रोफेसर संदीप सुखंतकर एवं प्रोफेसर गेब्रियला, जे पल व यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के प्रोफेसर अक्षय मंगला उपस्थित रहे.
अच्छी विवेचना से ही न्याय मिलना संभव : कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विधि एवं विधायी कार्य विभाग के प्रमुख सचिव बीके द्विवेदी ने कहा कि सही न्याय तभी मिल पाता है, जब विवेचना अच्छे ढंग से की गई हो. तकनीक के सहयोग से विवेचना की गुणवत्ता बढ़ी है. यही वजह है कि न्याय पालिकाओं के जो निर्णय आ रहे हैं, वो सही और अच्छे हैं. वहीं सीबीआई और मध्यप्रदेश पुलिस के सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक ऋषि शुक्ला ने कहा कि पुलिस की कार्रवाई अब तक अनुभवों के आधार पर करते आए हैं. इसमें सुधार भी हुआ है. क्रिमिनल इंवेस्टीगेशन मात्र 200 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ था. लेकिन अब साइंटिफिक इंवेस्टीगेशन शामिल हो रहा है.
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पुलिस अफसर सम्मानित : राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी की प्रो.गीता ओबेराय ने कहा कि यौन उत्पीड़न के शिकार कई बच्चे ऐसे हैं, जो न्याय पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उन्होंने उदाहरणों के माध्यम से बताया कि किस तरह किशोर न्याय अधिनियम बनाया गया. इसी तरह कार्य स्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न रोकने के लिए वर्ष 2013 में बनाए गए प्रिवेंशन ऑफ सेक्सुअल हैरेसमेंट यानी पोश एक्ट (POSH Act) के बारे में जानकारी दी. इस मौके पर उत्तरप्रदेश पुलिस में एडीजी डॉ. जीके गोस्वामी, मध्यप्रदेश पुलिस मुख्यालय में आईजी (एडमिनिस्ट्रेशन) दीपिका सूरी एवं एआईजी डॉ. वीरेंद्र मिश्रा के अलावा नई दिल्ली सीबीआई में पदस्थ एसपी प्रवीण मंडलोई को जीवा सम्मान से सम्मानित किया गया.