भोपाल। केरल सरकार द्वारा सब्जियों का न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू करने के फैसले के बाद मध्य प्रदेश सरकार ने भी सब्जियों का एमएसपी तय करने की बात कही है. हालांकि सरकार के इस फैसले को लेकर अभी कोई बड़ी तैयारी देखने को नहीं मिल रही है. लेकिन जानकारों की मानें,तो मध्यप्रदेश में होने वाले सब्जी उत्पादन और बिखरे हुए बाजार के कारण सब्जियों का एमएसपी तय करना सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा.जानकार मानते हैं कि केरल सरकार इसलिए यह फैसला कर पाई है, क्योंकि केरल में स्थानीय लोग मसाला और चाय की खेती पर फोकस करते हैं. इसलिए केरल में सब्जियों के एमएसपी तय किए भी जा सकते हैं.लेकिन मध्यप्रदेश में यह फैसला लागू करने के लिए एक बहुत बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होगी और हजारों करोड़ में पैसा खर्च होगा. उसके बाद भी तय नहीं किया जा सकेगा कि सब्जी उत्पादक किसानों को उनकी उपज का मूल्य एमएसपी के तहत मिल रहा है कि नहीं.
उठ रहे कई सवाल
केरल सरकार के सब्जी का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने के फैसले को देखते ही मध्य प्रदेश सरकार ने यह घोषणा तो कर दी. लेकिन इस फैसले को लागू करने की कोई भी तैयारी सरकार की नजर नहीं आ रही है. सरकारी स्तर पर अभी सर्वे कराए जाने की बात की जा रही है. लेकिन कैसे एमएसपी तय होगी ? कौन सी सब्जियां एमएसपी में शामिल की जाएंगी? एमएसपी तय करने का क्या फार्मूला होगा ? किस तरह से सब्जियों की खरीदी होगी ? सब्जियों की खरीदी सरकार करेगी या व्यापारी करेंगे ? सब्जी नहीं बिकने पर किसानों की सब्जी कौन खरीदेगा? इन सब पहलुओं पर सरकार ने अभी कोई विचार नहीं किया है.
केरल में सब्जी उत्पादन कम
विशेषज्ञों का कहना है कि केरल राज्य में फसलों की तरह सब्जी का एमएसपी लागू करना आसान है. क्योंकि केरल में सब्जी का उत्पादन ना के बराबर होता है. केरल का किसान मसाला और चाय उत्पादन पर ज्यादा ध्यान देता है. केरल में सब्जियां आसपास के पड़ोसी राज्यों से आती हैं. केरल में सब्जियों के स्टोरेज के लिए बहुत बढ़िया इंफ्रास्ट्रक्चर भी है.जबकि मध्यप्रदेश में सब्जियों का उत्पादन व्यापक पैमाने पर होता है. बिखरा हुआ बाजार,आम किसान से लेकर छोटे-मोटे सब्जी व्यापारी बड़े पैमाने पर सब्जी बिक्री का काम करते हैं. ऐसी स्थिति में मध्यप्रदेश में सब्जी का भंडारण और खरीदी-बिक्री शासन द्वारा कराए जाना टेढ़ी खीर साबित होगा.
इंफ्रास्ट्रक्चर और कोल्ड स्टोरेज की जरूरत
मध्यप्रदेश में जिस स्तर का सब्जी उत्पादन होता है,उस स्तर का भंडारण की व्यवस्था नहीं है. मध्यप्रदेश में उत्पादित होने वाले आलू, प्याज और लहसुन के लिए बड़े पैमाने पर कोल्ड स्टोरेज की जरूरत होती है. लेकिन मध्यप्रदेश में पूरे राज्य में कोल्ड स्टोरेज ना के बराबर हैं.सिर्फ मालवा इलाके में इंदौर और उज्जैन के अलावा राज्य के अन्य इलाकों में कोल्ड स्टोरेज की संख्या काफी कम है,क्योंकि यहां आलू का उत्पादन ज्यादा होता है. अगर एमएसपी व्यवस्था लागू करनी है, तो सब्जियों के स्टोरेज की भी व्यवस्था बनानी पड़ेगी. बड़े पैमाने पर कोल्ड स्टोरेज श्रृंखला तैयार करनी होगी.
भारी बजट की जरूरत
सब्जियों के एमएसपी तय करने के पहले सरकार को पूरी नीति बनानी पड़ेगी. इस नीति के बनाने के पहले सरकार को इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना होगा.हर मंडी में सब्जियों के स्टोरेज की व्यवस्था करनी होगी. समर्थन मूल्य पर खरीदी जाने वाली सब्जी कैसे खरीदी जाएगी और कौन खरीदेगा, यह सब तय करना होगा. सब्जी के बिखरे हुए बाजार को एक रूप देना होगा. इतने बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर को खड़े करने के लिए भारी बजट की जरूरत होगी.
'प्याज में पहले भी उठा चुके नुकसान'
मध्य प्रदेश सरकार के कृषि विभाग के लंबे समय तक डायरेक्टर रहे जीएस कौशल का कहना है कि इस व्यवस्था के लिए मल्टी चेंबर कोल्ड स्टोरेज चाहिए. अलग-अलग सब्जी के लिए अलग-अलग चेंबर में रखना होगा. अभी मध्यप्रदेश में कोल्ड स्टोरेज की कमी है. जो हैं वो इंदौर और उसके आसपास के इलाके में हैं. इसके बारे में गंभीरता से सोचना पड़ेगा आपने देखा होगा कि दो-तीन साल पहले प्रदेश की सरकार ने किसानों की प्याज ₹8 किलो की दर से खरीदी थी. सरकार को स्टोरेज के जानकारी नहीं थी तो वेयरहाउस में रख दिया. प्याज सड़ गया तो 2 रूपए प्रति किलो में बेचान पड़ा. करोड़ों रुपए का घाटा हुआ. जब हम प्याज की व्यवस्था नहीं कर पाए तो दूसरी फसलों की व्यवस्था क्या करेंगे.
'केरल से तुलना ना करे सरकार'
कृषि विभाग के पूर्व निदेशक जीएस कौशल कहते हैं कि केरल में सब्जियों का एमएसपी तय किया गया है. वहां की परिस्थितियां और यहां की परिस्थितियां अलग हैं. इस समय हमारे यहां हरी पत्ती वाली सब्जियां उगाई जा रहीं हैं. अगर आपने एमएसपी तय कर दिया, लेकिन व्यापारी ने खरीदने से मना कर दिया तो उन सब्जियों का क्या होगा. अगर उस सब्जी को सरकार खरीदेगी तो ठीक है, नहीं तो वह सब्जी सड़क पर फेंकी जाएगी. मेरा मानना है कि शासन को खरीद-फरोख्त का काम नहीं करना चाहिए. सरकार नियम तो बना सकती है लेकिन उसे लागू कराना मुश्किल होता है.
'मौजूदा एमएसपी व्यवस्था तो ठीक करे सरकार'
जीएस कौशल कहते हैं कि अनाज खासकर गेहूं, चना खरीद में लंबे समय से न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था है. लेकिन सरकार उसको भी नियम अनुसार लागू नहीं करवा पा रही है. सब्जी में तो छोटे-छोटे व्यापारी ज्यादा आते हैं.ठेले पर भी सब्जी बेची जाती है. थोक व्यापारी अलग है, इसके ऊपर बहुत गंभीरता से सोच विचार करना होगा. उसके बाद ही लागू किया जा सकता है. इसके लिए बहुत बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत है, हजार दो हजार करोड़ से कुछ नहीं होगा.
किसानों की राय
जैविक तरीके से सब्जी का उत्पादन करने वाले बैरसिया के किसान नरेश दांगी कहते हैं कि इस व्यवस्था से हमें नुकसान ही नजर आता है. सरकार अगर एमएसपी निर्धारित करेगी और इसको यदि दलाल नहीं खरीदेगा, तो किसान कहां जाएगा. यदि सरकार खरीदती है, तो हम किसानों को फायदा होगा और अगर सरकार नहीं खरीदती है और दलाल ने भी मना कर दिया और मंडी में भी नहीं खरीदी गई, तो बड़ी दिक्कत आएगी. उसको फेंकना ही पड़ेगा.आज मैं अपना उत्पादन कर सीधे उपभोक्ता को ही देता हूं. मुझे नहीं लगता है कि इससे किसानों को फायदा होगा.
क्या बोले कृषि मंत्री
कृषि मंत्री कमल पटेल कहते हैं कि सब्जियों पर समर्थन मूल्य हम जरूर देंगे. जल्द ही विचार कर फैसला करेंगे. मैंने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं, सभी जगह सर्वे कराएं.किसानों को सब्जी का एमएसपी इसलिए दे रहे हैं कि किसान की फसल आती है,तो उसकी लागत भी नहीं निकलती है. वो सब्जी उपभोक्ताओं को भी महंगी मिलती है. बिचौलिए लूटते हैं. किसानों के फायदे के लिए सरकार कदम उठा रही है.