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जागरूकता की कमी के कारण महिलाएं-बच्चियां रह जाती हैं योजनाओं से वंचित

सरकार बच्चियों और महिलाओं के हित के लिए कई योजनाओं का सांचालन करने का दावा करती है, पर यदि जमीनी स्तर पर देखें तो हकीकत कुछ और ही नजर आती है. विभाग की ओर से चाहे कितनी भी योजनाएं बनाए जाएं पर इनका लाभ उन बच्चियों तक पहुंच ही नहीं पाता है. बहुत से लोग ऐसे भी जिन्हें सरकार की योजनाओं की पूरी जानकारी तक नहीं है.

Due to lack of awareness, there is no benefit
जागरूकता की कमी की वजह से नहीं मिलता लाभ
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Published : Dec 30, 2020, 9:32 AM IST

भोपाल। हमारे समाज की आधी आबादी अब भी कई तरह की मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रही है और खासतौर पर निचले तबके की बच्चियों और महिलाओं को तो उनके हक के बारे में भी ज्यादा जानकारी नहीं होती है. ऐसी ही महिलाओं और बच्चियों के अच्छे भविष्य और इन्हें सुविधाएं देने के लिए महिला एवं बाल विकास की ओर से कई तरह की योजनाएं चलाई जाती है. इन योजनाओं को बनाने के पीछे का मकसद यही रहा है कि महिलाओं और बच्चियों के स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य मूलभूत सुविधाओं का इंतजाम किया जा सके.

योजनाओं की पूरी जानकारी नहीं
प्रदेश में वैसे तो केंद्रीय महिला एवं बाल विकास की ओर से कई योजनाएं चलाई जाती हैं, पर इसके साथ ही मध्य प्रदेश महिला एवं बाल विकास की भी अपनी कई योजनाएं संचालित हो रही है. प्रदेश में लगभग 7 योजनाएं खासतौर पर बच्चियों-किशोरियों के लिए चलाई जा रही है.

1. लाड़ली लक्ष्मी योजना: लोगों में लड़कियों के जन्म को लेकर सकारात्मक सोच, लिंगानुपात में सुधार,बच्चियों के शैक्षणिक स्तर और स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार लाने के लिए यह योजना 1 जनवरी 2007 से प्रदेश में शुरू की गई. इसके तहत साल 2006 के बाद जन्मी बच्ची को 1 लाख 18 हजार रुपये देने का प्रावधान है. जो समय समय पर दिए जाते हैं. विभाग के आंकड़ों के मुताबिक अब तक करीब 31 लाख बच्चियों को इसका लाभ मिला है.

2. लाडो अभियान : प्रदेश में बाल विवाह को रोकने के लिए इस अभियान को साल 2013 में शुरू किया गया था. इसके तहत जागरूकता कार्यक्रम के जरिए लोगों को बाल विवाह के बारे में जागरूक किया जाता है. विभाग के आंकड़ों के मुताबिक साल 2018- 19 में 5,252 कार्यशालाओं का आयोजन किया गया. जिसके जरिए 5.59 लाख लोगों को जोड़ा गया. 1,882 बच्चों को इस अभियान का ब्रांड एंबेसडर बनाया गया है और 196 बाल विवाह स्थल पर आयोजन रोके गए हैं.

3. शौर्या दल: महिलाओं के उत्पीड़न को रोकने, उनका हक दिलाने के लिए ग्राम स्तर पर शौर्या दल का गठन किया गया है. जिनका काम महिलाओं के हक के लिए समाज में जागरूकता लाना है. विभाग के मुताबिक ग्रामीण स्तर पर अब तक इस दल ने 369 बाल विवाह रोके हैं. इसके साथ ही छेड़खानी के मामले भी रोके गए हैं.

4. बेटी बचाओ अभियान: इस अभियान की शुरुआत 6 अक्टूबर 2011 से की गई थी. इसका मुख्य उद्देश्य बच्चियों के जन्म को बढ़ावा देना, बालिका भ्रूण हत्या के मामलों को रोकना, बालिकाओं से जुड़े मुद्दों पर संवेदनशीलता के साथ उनकी प्रगति के अवसर देना है.

5. स्वागतम लक्ष्मी योजना: इस योजना की शुरुआत 24 जनवरी 2014 से की गई थी. इसके जरिए नवजात बच्चियों को स्वागतम लक्ष्मी किट दी जाती है और आंगनबाड़ी में महीने के तीसरे मंगलवार को बालिका जन्म उत्सव मनाया जाता है. विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक साल 2018-19 में योजना के तहत 4,3626 नवजात बालिकाओं को किट दी गई है.

6. उदिता योजना: किशोरियों को माहवारी के बारे में जानकारी देने, इस दौरान स्वास्थ्य का ख्याल रखने और स्वच्छता संबंधी जागरूकता लाने के लिए इस योजना को शुरू किया गया. इसके तहत आंगनवाड़ी में जागरूकता कार्यक्रम किए जाते हैं. साथ ही सेनेटरी नेपकिन भी उपलब्ध कराई जाती है. विभाग के मुताबिक साल 2018-19 तक पूरे प्रदेश में 92,123 उदिता कॉर्नर बनाए गए. जिसके जरिए करीब 35 लाख सेनेटरी नेपकिन उपलब्ध कराई गई.

7. लालिमा योजना: प्रदेश की बच्चियों, किशोरियों और महिलाओं को एनीमिया मुक्त करने के लिए इस योजना की शुरूआत की गई. इसके तहत आईएफए टेबलेट आंगनबाड़ी के जरिए उपलब्ध कराई जाती है.


योजनाओं की हकीकत

प्रदेश सरकार की ओर से बच्चियों के हित के चाहे लाख दावे किए जाते हो पर यदि जमीनी स्तर पर देखें तो हकीकत कुछ और ही नजर आती है. विभाग की ओर से चाहे कितनी भी योजनाएं बनाए जाएं पर इन इनका लाभ उन बच्चियों तक पहुंच ही नहीं पाता है. जिनके लिए इसे बनाया गया है. महिलाओं और बच्चों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता नीलम तिवारी इन योजनाओं की जमीनी हकीकत के बारे में बताती है. उनका कहना है कि जिन लोगों के लिए सरकार ने योजनाएं बनाई हैं. उन लोगों तक इसकी जानकारी ही नहीं है. आंगनबाड़ी बनाने का मुख्य उद्देश महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण का ध्यान रखना था. पर जब आंगनबाड़ी में जाकर देखो तो यह बात दिखाई पड़ती है कि ज्यादातर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता आंकड़ों को भरने के काम में लगी रहती है.

'आंगनबाड़ी कार्यकर्ता नहीं करतीं फील्ड विजिट'

यहां तक कि उसके पड़ोस की लड़की तक को यह जानकारी नहीं होती है कि आंगनबाड़ी में आयरन की गोली मिलेगी. हमारे पास एक मामला आया था जिसमें महिला ने पहले बेटी का लाडली लक्ष्मी कार्ड बनवाने गई थी पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने उसका यह कहकर कार्ड नहीं बनाया. कार्यकर्ता का कहना था कि महिला दूसरा बच्चा पैदा किया. जबकि लाडली लक्ष्मी योजना का लाभ परिवार की दो बेटियों को दिए जाने का प्रावधान है. तो कार्ड न बन पाने के कारण बच्ची को योजना का लाभ नहीं मिल पाया. इसी तरह ना जाने कितनी बच्चियां और महिलाएं जानकारी के अभाव में योजना का लाभ नहीं ले पाती है. हमने खुद भी आज तक किसी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को जागरूकता का काम करते फील्ड विजिट करते नहीं देखा है.

आंगनबाड़ियों तक नहीं पहुंचता सामान

राजधानी भोपाल की बस्ती में बनी एक आंगनबाड़ी की कार्यकर्ता ने यह जानकारी दी कि योजनाओं के तहत आने वाले आयरन की गोली,सेनेटरी नेपकिन और पोषण आहार के समान समय पर नहीं आते हैं. जिसके कारण हम महिला और बच्चियों को लाभ नहीं दे पाते. आंगनबाड़ियों में तो फिर भी हालत ठीक है पर छोटी आंगनबाड़ियों में हालात सही नहीं है. इसके अलावा कोरोना महामारी के दौर में कई महीनों तक आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने सर्वे का काम किया है. जिसके कारण भी हम अपने दूसरे अभियानों पर ध्यान नहीं दे पाए हैं.

जमीनी स्तर पर है कमियां

विभाग की ओर से योजनाएं बना देने के बाद भी जमीनी स्तर पर कई कमियां होने के कारण इनका क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो पा रहा है और प्रदेश में महिलाओं और बच्चियों की स्थिति में अलग-अलग योजनाओं के शुरू होने के सालों बाद भी कोई खास सुधार देखने को नहीं मिल रहा है.

भोपाल। हमारे समाज की आधी आबादी अब भी कई तरह की मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रही है और खासतौर पर निचले तबके की बच्चियों और महिलाओं को तो उनके हक के बारे में भी ज्यादा जानकारी नहीं होती है. ऐसी ही महिलाओं और बच्चियों के अच्छे भविष्य और इन्हें सुविधाएं देने के लिए महिला एवं बाल विकास की ओर से कई तरह की योजनाएं चलाई जाती है. इन योजनाओं को बनाने के पीछे का मकसद यही रहा है कि महिलाओं और बच्चियों के स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य मूलभूत सुविधाओं का इंतजाम किया जा सके.

योजनाओं की पूरी जानकारी नहीं
प्रदेश में वैसे तो केंद्रीय महिला एवं बाल विकास की ओर से कई योजनाएं चलाई जाती हैं, पर इसके साथ ही मध्य प्रदेश महिला एवं बाल विकास की भी अपनी कई योजनाएं संचालित हो रही है. प्रदेश में लगभग 7 योजनाएं खासतौर पर बच्चियों-किशोरियों के लिए चलाई जा रही है.

1. लाड़ली लक्ष्मी योजना: लोगों में लड़कियों के जन्म को लेकर सकारात्मक सोच, लिंगानुपात में सुधार,बच्चियों के शैक्षणिक स्तर और स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार लाने के लिए यह योजना 1 जनवरी 2007 से प्रदेश में शुरू की गई. इसके तहत साल 2006 के बाद जन्मी बच्ची को 1 लाख 18 हजार रुपये देने का प्रावधान है. जो समय समय पर दिए जाते हैं. विभाग के आंकड़ों के मुताबिक अब तक करीब 31 लाख बच्चियों को इसका लाभ मिला है.

2. लाडो अभियान : प्रदेश में बाल विवाह को रोकने के लिए इस अभियान को साल 2013 में शुरू किया गया था. इसके तहत जागरूकता कार्यक्रम के जरिए लोगों को बाल विवाह के बारे में जागरूक किया जाता है. विभाग के आंकड़ों के मुताबिक साल 2018- 19 में 5,252 कार्यशालाओं का आयोजन किया गया. जिसके जरिए 5.59 लाख लोगों को जोड़ा गया. 1,882 बच्चों को इस अभियान का ब्रांड एंबेसडर बनाया गया है और 196 बाल विवाह स्थल पर आयोजन रोके गए हैं.

3. शौर्या दल: महिलाओं के उत्पीड़न को रोकने, उनका हक दिलाने के लिए ग्राम स्तर पर शौर्या दल का गठन किया गया है. जिनका काम महिलाओं के हक के लिए समाज में जागरूकता लाना है. विभाग के मुताबिक ग्रामीण स्तर पर अब तक इस दल ने 369 बाल विवाह रोके हैं. इसके साथ ही छेड़खानी के मामले भी रोके गए हैं.

4. बेटी बचाओ अभियान: इस अभियान की शुरुआत 6 अक्टूबर 2011 से की गई थी. इसका मुख्य उद्देश्य बच्चियों के जन्म को बढ़ावा देना, बालिका भ्रूण हत्या के मामलों को रोकना, बालिकाओं से जुड़े मुद्दों पर संवेदनशीलता के साथ उनकी प्रगति के अवसर देना है.

5. स्वागतम लक्ष्मी योजना: इस योजना की शुरुआत 24 जनवरी 2014 से की गई थी. इसके जरिए नवजात बच्चियों को स्वागतम लक्ष्मी किट दी जाती है और आंगनबाड़ी में महीने के तीसरे मंगलवार को बालिका जन्म उत्सव मनाया जाता है. विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक साल 2018-19 में योजना के तहत 4,3626 नवजात बालिकाओं को किट दी गई है.

6. उदिता योजना: किशोरियों को माहवारी के बारे में जानकारी देने, इस दौरान स्वास्थ्य का ख्याल रखने और स्वच्छता संबंधी जागरूकता लाने के लिए इस योजना को शुरू किया गया. इसके तहत आंगनवाड़ी में जागरूकता कार्यक्रम किए जाते हैं. साथ ही सेनेटरी नेपकिन भी उपलब्ध कराई जाती है. विभाग के मुताबिक साल 2018-19 तक पूरे प्रदेश में 92,123 उदिता कॉर्नर बनाए गए. जिसके जरिए करीब 35 लाख सेनेटरी नेपकिन उपलब्ध कराई गई.

7. लालिमा योजना: प्रदेश की बच्चियों, किशोरियों और महिलाओं को एनीमिया मुक्त करने के लिए इस योजना की शुरूआत की गई. इसके तहत आईएफए टेबलेट आंगनबाड़ी के जरिए उपलब्ध कराई जाती है.


योजनाओं की हकीकत

प्रदेश सरकार की ओर से बच्चियों के हित के चाहे लाख दावे किए जाते हो पर यदि जमीनी स्तर पर देखें तो हकीकत कुछ और ही नजर आती है. विभाग की ओर से चाहे कितनी भी योजनाएं बनाए जाएं पर इन इनका लाभ उन बच्चियों तक पहुंच ही नहीं पाता है. जिनके लिए इसे बनाया गया है. महिलाओं और बच्चों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता नीलम तिवारी इन योजनाओं की जमीनी हकीकत के बारे में बताती है. उनका कहना है कि जिन लोगों के लिए सरकार ने योजनाएं बनाई हैं. उन लोगों तक इसकी जानकारी ही नहीं है. आंगनबाड़ी बनाने का मुख्य उद्देश महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण का ध्यान रखना था. पर जब आंगनबाड़ी में जाकर देखो तो यह बात दिखाई पड़ती है कि ज्यादातर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता आंकड़ों को भरने के काम में लगी रहती है.

'आंगनबाड़ी कार्यकर्ता नहीं करतीं फील्ड विजिट'

यहां तक कि उसके पड़ोस की लड़की तक को यह जानकारी नहीं होती है कि आंगनबाड़ी में आयरन की गोली मिलेगी. हमारे पास एक मामला आया था जिसमें महिला ने पहले बेटी का लाडली लक्ष्मी कार्ड बनवाने गई थी पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने उसका यह कहकर कार्ड नहीं बनाया. कार्यकर्ता का कहना था कि महिला दूसरा बच्चा पैदा किया. जबकि लाडली लक्ष्मी योजना का लाभ परिवार की दो बेटियों को दिए जाने का प्रावधान है. तो कार्ड न बन पाने के कारण बच्ची को योजना का लाभ नहीं मिल पाया. इसी तरह ना जाने कितनी बच्चियां और महिलाएं जानकारी के अभाव में योजना का लाभ नहीं ले पाती है. हमने खुद भी आज तक किसी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को जागरूकता का काम करते फील्ड विजिट करते नहीं देखा है.

आंगनबाड़ियों तक नहीं पहुंचता सामान

राजधानी भोपाल की बस्ती में बनी एक आंगनबाड़ी की कार्यकर्ता ने यह जानकारी दी कि योजनाओं के तहत आने वाले आयरन की गोली,सेनेटरी नेपकिन और पोषण आहार के समान समय पर नहीं आते हैं. जिसके कारण हम महिला और बच्चियों को लाभ नहीं दे पाते. आंगनबाड़ियों में तो फिर भी हालत ठीक है पर छोटी आंगनबाड़ियों में हालात सही नहीं है. इसके अलावा कोरोना महामारी के दौर में कई महीनों तक आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने सर्वे का काम किया है. जिसके कारण भी हम अपने दूसरे अभियानों पर ध्यान नहीं दे पाए हैं.

जमीनी स्तर पर है कमियां

विभाग की ओर से योजनाएं बना देने के बाद भी जमीनी स्तर पर कई कमियां होने के कारण इनका क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो पा रहा है और प्रदेश में महिलाओं और बच्चियों की स्थिति में अलग-अलग योजनाओं के शुरू होने के सालों बाद भी कोई खास सुधार देखने को नहीं मिल रहा है.

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