भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय को दो अनुबंधक प्राध्यापकों (एडजंक्ट फैकल्टी) की कथित कार्यशैली ने विवादों का अखाड़ा बना दिया है. छात्रों का विरोध-प्रदर्शन जारी है. वहीं अनुशासनहीनता के आरोप में कई छात्रों पर कार्रवाई भी की गई है. एमसीयू प्रबंधन ने 23 छात्रों को निष्कासित कर दिया है और इन पर FIR भी दर्ज कराई गई है.
यूनिवर्सिटी पिछले कई सालों से रहा है सियासी अखाड़ा
पत्रकारिता विश्वविद्यालय बीते कुछ वर्षों से सियासी अखाड़ा रहा है. इस पर एक खास विचारधारा को पोषित करने के आरोप लगते रहे हैं. राज्य में सत्ता बदलने के बाद विश्वविद्यालय की तमाम व्यवस्थाओं में सुधार और बदलाव लाने की कोशिशें शुरू की गईं, मुख्यमंत्री कमलनाथ ने तमाम संस्थाओं में सुधार लाने का वादा और दावा करते हुए कहा कि हमने हर संस्थान और विभाग की जिम्मेदारी योग्य लोगों को सौंपी है. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति दीपक तिवारी को बनाया गया. सीएम ने कहा कि दीपक तिवारी को उनकी निष्पक्ष पत्रकारिता देखकर ही कुलपति बनाया गया है, उन्होंने कई बार मेरे खिलाफ भी लिखा है.
दो एडजंक्ट फैकल्टी बने विवाद की वजह
एक तरफ जहां संस्थानों में सुधार लाने की बात कही जा रही है, वहीं दूसरी ओर एमसीयू के दो अनुबंधक प्राध्यापक दिलीप मंडल और मुकेश कुमार विवाद का कारण बन रहे हैं. दिलीप मंडल पर आरोप है कि वे अपने ट्विटर हैंडल से जातिवाद को भड़काने की कोशिश करते हैं और जाति विशेष पर टिप्पणी करते हैं. वहीं मुकेश कुमार पर भी जातिवाद का सहारा लेने का आरोप है जिसके बाद इन दोनों प्राध्यापकों के खिलाफ छात्र आंदोलनरत हैं.
छात्र कर रहे उग्र आंदोलन
छात्रों ने विश्वविद्यालय के भीतर पिछले दिनों प्रदर्शन और हंगामा किया. छात्रों को खदेड़ने के लिए पुलिस बुलाई गई और इनके खिलाफ थाने में प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई है. छात्रों के समर्थन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और करणी सेना के कार्यकर्ता भी आए, वहीं विश्वविद्यालय प्रबंधन का कहना है कि पुरानी विचारधारा से जुड़े कुछ लोग बेवजह हंगामा और आंदोलन करा रहे हैं.
एबीवीपी के अभिषेक त्रिपाठी ने आरोप लगाया है कि विश्वविद्यालय परिसर में पुलिस बुलाकर छात्रों के साथ बर्बर व्यवहार किया गया, बल्कि जो फैकल्टी जातिवाद को बढ़ावा दे रही हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए.
प्रोफेसर दिलीप मंडल ने दी सफाई
वहीं दिलीप मंडल ने मंगलवार को ट्वीट करते हुए कहा कि ''मैं चाहता हूं कि मेरे लिखे हुए 20 लाख से ज्यादा शब्दों में एक बार भी किसी जाति के लिए कोई गाली हो तो उसे पेश किया जाए. डिजिटल में लिखी बात तो कहीं न कहीं रह ही जाती है खोजकर निकालें, उन्होंने कहा कि हां मुझे जाति वर्चस्व से शिकायत है, वही शिकायत जो फुले को थी, वही शिकायत जो बाबा साहेब को थी.''
विश्वविद्यालय की एक साल की गतिविधियों पर नजर दौड़ाई जाए, तो यहां गांधी के दर्शन को स्थापित करने की कोशिश हुई है. उच्च दर्जे के सेमीनार आयोजित किए गए और छात्रों को पत्रकारिता जगत में आ रहे बदलाव से रू-ब-रू कराने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए गए, लेकिन इसी दौरान दो अनुबंधक प्राध्यापकों पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगा और विवाद बढ़ गया.
विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलसचिव ने रखा पक्ष
विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलसचिव दीपेंद्र बघेल ने कहा है कि जिन छात्रों ने हंगामा किया है, उनके खिलाफ कार्रवाई की तैयारी है. वहीं दोनों प्रेाफेसरों के खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं हुए हैं और जांच जारी है. दोनों प्राध्यापकों के खिलाफ विभिन्न छात्र संगठनों और महाविद्यालयों के छात्रों ने सोमवार शाम को भी एक मार्च निकाला था.
वहीं इस मामले को लेकर पत्रकारिता से जुड़े लोगों का कहना है कि विश्वविद्यालय में अपनी गरिमा के अनुरूप कई वर्ष बाद पठन-पाठन का कार्य शुरू हो पाया है. छात्रों में पत्रकार और पत्रकारिता की समझ विकसित करने के लिए नवाचारों का सहारा लिया जा रहा है, उन्हें नई तकनीकों से अवगत कराया जा रहा है. इसी बीच दो प्रोफेसरों की कार्यशैली ने विश्वविद्यालय को राजनीति का अखाड़ा बना दिया है.