भोपाल। चातुर्मास यानी चार मास के लिए भगवान निद्रा मगन हो जाते हैं. नींद में किसी को जगाना वैसे भी अच्छी बात नहीं इसलिए हमारे श्री हरि को सोने का पूरा सुख दिया जाता है.मान्यता अनुसार शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं. फिर देवउठान एकादशी के साथ शादी विवाह जैसे शुभ संस्कार शुरू हो जाते हैं. देवशयनी एकादशी को हरिशयनी भी कहते हैं. देवशयनी एकादशी व्रत सबसे श्रेष्ठ एकादशी मानी जाती है. माना जाता है कि इस व्रत से व्यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है. वैसे, इस दौरान भोले बाबा जगत की जिम्मेदारी उठाते हैं
देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi 2021)
20 जुलाई को शाम 07:17 बजे तक रहेगी. उदया तिथि होने के कारण 20 जुलाई को व्रत रखा जाएगा.
20 जुलाई के शुभ मुहूर्त ये हैं-
ब्रह्म मुहूर्त- 04:14 एएम से 04:55 एएम
अभिजित मुहूर्त- 12:00 पीएम से 12:55 पीएम
विजय मुहूर्त- 02:45 पीएम से 03:39 पीएम
गोधूलि मुहूर्त- 07:05 पीएम से 07:29 पीएम
अमृत काल- 10:58 एएम से 12:27 पीएम
देवशयनी एकादशी व्रत विधि (Devshayani Ekadashi 2021 Vrat Vidhi)
प्रातः स्नान करें. भगवान विष्णु का स्मरण करें. व्रत का संकल्प लें. पीले रंग का आसन बिछाकर उस पर विष्णु जी की प्रतिमा स्थापित करें. भगवान विष्णु को धूप, दीप, पीले फूल अर्पित करें.
पूरे दिन व्रत रहें. भगवान विष्णु का ध्यान करें एवं मन में उनके मंत्रों का जप करें. शाम के समय भगवान विष्णु व मां लक्ष्मी का पूजन करें. प्रसाद चढ़ाएं. अगले दिन द्वादशी तिथि पर दान के बाद ही व्रत का पारण करें.
ऐसे सुलाएं भगवान जगन्नाथ को (Harishayani Mantra)
सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्।
विबुद्दे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।
अर्थात हे प्रभु आपके जगने से पूरी सृष्टि जग जाती है और आपके सोने से पूरी सृष्टि, चर और अचर सो जाते हैं. आपकी कृपा से ही यह सृष्टि सोती है और जागती है. आपकी करुणा से हमारे ऊपर कृपा बनाए रखें।
भगवान विष्णु के मंत्र (Bhagwan Vishnu Mantra)
ॐ विष्णवे नम:
ॐ अं वासुदेवाय नम:
ॐ आं संकर्षणाय नम:
ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:
ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:
ॐ नारायणाय नम:
देवशयनी एकादशी व्रत कथा (Devshayani Ekadashi 2021 Vrat Katha)
सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती राजा राज्य करते थे. मांधाता के राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी. एक बार उनके राज्य में तीन साल तक वर्षा नहीं होने की वजह से भयंकर अकाल पड़ा गया था. अकाल से चारों ओर त्रासदी का माहौल बन गया था. इस वजह से यज्ञ, हवन, पिंडदान, कथा-व्रत आदि कार्य में कम होने लगे थे. प्रजा ने अपने राजा के पास जाकर अपने दर्द के बारे में बताया.
राजा इस अकाल से चिंतित थे. उन्हें लगता था कि उनसे आखिर ऐसा कौन सा पाप हो गया, जिसकी सजा इतने कठोर रुप में मिल रहा था. इस संकट से मुक्ति पाने के उद्देश्य से राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए. जंगल में विचरण करते हुए एक दिन वे ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुंचे गए. ऋषिवर ने राजा का कुशलक्षेम और जंगल में आने कारण पूछा.
राजा ने हाथ जोड़कर कहा कि मैं पूरी निष्ठा से धर्म का पालन करता हूं, फिर भी में राज्य की ऐसी हालत क्यों है? कृपया इसका समाधान करें. राजा की बात सुनकर महर्षि अंगिरा ने कहा कि यह सतयुग है. इस युग में छोटे से पाप का भी बड़ा भयंकर दंड मिलता है. महर्षि अंगिरा ने राजा मांधाता को बताया कि आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करें. इस व्रत के फल स्वरूप अवश्य ही वर्षा होगी.
महर्षि अंगिरा के निर्देश के बाद राजा अपने राज्य की राजधानी लौट आए. उन्होंने चारों वर्णों सहित पद्मा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया, जिसके बाद राज्य में मूसलधार वर्षा हुई. ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष महत्व का वर्णन किया गया है. देवशयनी एकादशी के व्रत से व्यक्ति की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.