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कमलनाथ किस्मत के धनी, मध्य प्रदेश में पूर्ण बहुमत में आई कांग्रेस पार्टी

मध्य प्रदेश भाजपा के विधायक प्रहलाद लोधी की सदस्यता समाप्त होने के बाद मध्यप्रदेश की 230 की विधानसभा के अब 229 सदस्य रह गए हैं. कांग्रेस पार्टी 115 सदस्यों के आधार पर पूर्ण बहुमत में आ गई है.

पूर्ण बहुमत में आई कांग्रेस
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Published : Nov 3, 2019, 12:18 AM IST

Updated : Nov 4, 2019, 12:23 PM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश की राजनीति में पदार्पण करते ही मुख्यमंत्री कमलनाथ की किस्मत उनका जोरदार साथ दे रही है. कमलनाथ ने भले ही मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा से राजनीति की शुरुआत की थी, लेकिन हमेशा केंद्र की राजनीति में अग्रणी भूमिका निभाई. खासकर मध्यप्रदेश की राजनीति में उनका हस्तक्षेप तो रहा, लेकिन मुख्यमंत्री जैसे पद को लेकर उन्होंने कभी जिज्ञासा या कौतूहल नहीं जताया. लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर जब मध्यप्रदेश कांग्रेस हताशा और निराशा के दौर से गुजर रही थी. तब कमलनाथ कांग्रेस के खेवनहार बनकर आए और ना सिर्फ उन्होंने 15 साल पुरानी बीजेपी की सरकार को हटाया. बल्कि पूर्ण बहुमत से 2 सीटें कम रह जाने के बाद बीजेपी की रोजाना सरकार गिराने की धमकियों के बीच भी उन्होंने अपनी सरकार को मजबूती के साथ चलाया.

मध्य प्रदेश में पूर्ण बहुमत में आई कांग्रेस पार्टी

कमलनाथ की किस्मत ने भी उनका ऐसा साथ दिया कि विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस पूर्ण बहुमत के आंकड़े 116 सीट से महज 2 सीट पीछे रह गई थी. तो उन्हें चार निर्दलीय विधायकों और एक सपा और दो बसपा के विधायकों का समर्थन मिला. कांग्रेस की कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद बीजेपी रोजाना धमकियां तो देती रही, लेकिन कमलनाथ कुछ ऐसी किस्मत लेकर आए थे कि झाबुआ के बीजेपी विधायक ने लोकसभा चुनाव लड़ा और सांसद चुने जाने के बाद मध्यप्रदेश विधानसभा से इस्तीफा दे दिया और जब उप चुनाव हुए तो कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने भारी मतों से जीत हासिल कर कांग्रेस को बहुमत के आंकड़े पर ला दिया, लेकिन एक सीट अभी भी कम थी और शायद फिर कमलनाथ की किस्मत चमकी और बीजेपी के पवई के विधायक प्रहलाद लोधी के लिए 2 साल की सजा हो जाने के कारण उन्हें विधानसभा की सदस्यता से हाथ धोना पड़ा.

आज स्थिति यह है कि 230 विधानसभा वाली मध्यप्रदेश विधानसभा में अब सिर्फ 229 सदस्य रह गए हैं और मौजूदा स्थिति में कांग्रेस अपने बूते पर 115 सीट के साथ पूर्ण बहुमत में आ गई है.


मध्यप्रदेश में 2003 में जब दिग्विजय सिंह की 10 साल पुरानी सरकार गिरी, तो कांग्रेस का दोबारा सरकार में लौटना मुश्किल हो गया. 2008 और 2013 में कांग्रेस फिर से चुनाव हार गई. हालात ऐसे बने कि मध्यप्रदेश कांग्रेस के कार्यकर्ता और नेता हताशा और निराशा के दौर में पहुंच गए. 2018 में जब मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक आए, तो कांग्रेस को ना सत्ता में वापसी का भरोसा था और ना ही बीजेपी को अपनी हार का इल्म था. लेकिन कांग्रेस ने अबकी बार कमलनाथ को मध्यप्रदेश कांग्रेस की जिम्मेदारी सौंपी.

कमलनाथ के कद के चलते दिग्विजय सिंह और सुरेश पचौरी जैसे दिग्गज नेता उनके साथ कदम से कदम मिलाते नजर आए. ज्योतिरादित्य सिंधिया भले ही इस फैसले से नाखुश थे. लेकिन हाईकमान की मर्जी के चलते उन्हें भी कमलनाथ से कंधे से कंधा मिलाकर काम करना पड़ा. मैनेजमेंट में माहिर माने जाने वाले कमलनाथ ने सभी दिग्गजों को एकजुट रखने के साथ बेजान पड़ी कांग्रेस में जान फूंकने का काम किया. बल्कि पूरे देश में जब भाजपा की लहर चल रही थी. तब उन्होंने बेहतरीन प्रबंधन के साथ 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में लाकर खड़ा कर दिया,लेकिन हालात कुछ ऐसे बने कि मध्य प्रदेश में बहुमत के आंकड़े 116 सीट की जगह कांग्रेस को सिर्फ 114 सीट मिली.

हालांकि राहत की बात यह थी कि बीजेपी 104 सीटों पर सिमट गई और बीजेपी की विचारधारा से दूर रहने वाले दल सपा के एक और बसपा के दो विधायक चुनकर आए.इतना ही नहीं जो चार निर्दलीय विधायक चुने गए, वह सब कांग्रेस के नाराज लोग थे.जो टिकट न मिलने के कारण निर्दलीय चुनाव लड़े थे. ऐसी स्थिति में कमलनाथ को सपा, बसपा और निर्दलीय विधायकों को मिलाकर 7 विधायकों का समर्थन मिला और कांग्रेस ने 121 विधायकों के साथ सरकार बनाने में सफलता हासिल की,लेकिन मोदी और शाह के युग में जिस तरह से देश में राज्यों की सरकार गिराने का सिलसिला चल रहा था.उसकी आशंका हमेशा कमलनाथ सरकार के ऊपर मंडराती रही.

हालात यह बने कि भाजपा के नेता सुबह उठते ही सरकार गिराने का बयान देने लगे. स्थिति तो ऐसे बनी के विधानसभा के मानसून सत्र में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने सरकार गिराने की धमकी दी, तो कमलनाथ ने एक विधेयक पर मत विभाजन की स्थिति में बीजेपी के दो विधायक अपने पाले में खड़े कर दिए. कमलनाथ के इस मैनेजमेंट के बाद बीजेपी की धमकियां तो कम हुई. लेकिन सरकार अभी भी सेफ जोन में नहीं आई. झाबुआ से बीजेपी ने 2018 में विधायक चुने गए जी एस डामोर को लोकसभा चुनाव में टिकट दे दिया,लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हुआ. झाबुआ सीट पर बीजेपी चुनाव जीत गई और चुनाव जीतने के बाद बीजेपी ने अपने विधायक से मध्य प्रदेश विधानसभा से इस्तीफा दिलवा दिया.

झाबुआ में उपचुनाव की स्थिति बनी और कमलनाथ ने दिग्गज आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया को टिकट देकर और चुनाव के पहले अपने मैनेजमेंट के जरिए झाबुआ चुनाव में बड़ी जीत हासिल की. झाबुआ चुनाव के जीतते ही कांग्रेस की एक सीट बढ़ गई और कांग्रेस 115 के आंकड़े पर पहुंच गई। झाबुआ चुनाव परिणाम को आए महज 8 दिन ही बीते थे कि पन्ना जिले की पवई के बीजेपी के विधायक प्रहलाद लोधी के लिए स्पेशल कोर्ट ने 2 साल की सजा सुना दी.इस सजा के सुनाते ही सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के आधार पर मध्य प्रदेश विधानसभा ने प्रहलाद लोधी की सदस्यता समाप्त कर दी और मध्यप्रदेश विधानसभा में सिर्फ 229 सदस्य रह गए. मध्यप्रदेश विधानसभा में 229 सदस्यों की स्थिति में पूर्ण बहुमत के लिए सिर्फ 115 सीट की जरूरत है और ऐसी स्थिति में कांग्रेस अपने बूते पर पूर्ण बहुमत में पहुंच गई है.

फिलहाल बीजेपी इसे नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध बताते हुए सरकार के दबाव में लिया गया फैसला बता रही है और हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की बात कर रही है.लेकिन कांग्रेस का कहना है कि 10 जुलाई 2013 में सुप्रीम कोर्ट की युगल पीठ जस्टिस एके पटनायक एवं सुधांशु रंजन बंदोपाध्याय ने फैसला देते हुए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 की उप धारा 4 को तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया था. इस धारा के अंतर्गत प्रावधान था कि 2 साल या उससे ज्यादा सजा की स्थिति में जनप्रतिनिधि अपील कर सकता है,लेकिन इस प्रावधान के खत्म होते ही जनप्रतिनिधियों को अपील का अधिकार नहीं रह गया.कांग्रेस का दावा है कि इसी फैसले के चलते कई दिग्गज नेताओं की सदस्यता समाप्त हुई है. जिसमें लालू प्रसाद यादव और तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय जय ललिता जैसे नेताओं के नाम हैं. इस फैसले के कारण बीजेपी इसके विरुद्ध न्यायालय की शरण नहीं ले सकती है.

इस मामले में मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता अजय सिंह यादव का कहना है कि मध्य प्रदेश भाजपा के विधायक प्रहलाद लोधी की सदस्यता समाप्त होने के बाद मध्यप्रदेश की 230 की विधानसभा के अब 229 सदस्य रह गए हैं.कांग्रेस पार्टी 115 सदस्यों के आधार पर पूर्ण बहुमत में आ गई है.भाजपा को न्यायालय का सम्मान करना चाहिए ऐसे अपराधियों को पार्टी से टिकट देने से बचना चाहिए.ऐसे मामलों में लालू यादव और जयललिता जैसे बड़े नेताओं की सदस्यता गई है, इसलिए भाजपा को अब पवई की जनता सबक सिखाएगी.जिसने ऐसे अपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्ति को टिकट दिया.

भोपाल। मध्यप्रदेश की राजनीति में पदार्पण करते ही मुख्यमंत्री कमलनाथ की किस्मत उनका जोरदार साथ दे रही है. कमलनाथ ने भले ही मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा से राजनीति की शुरुआत की थी, लेकिन हमेशा केंद्र की राजनीति में अग्रणी भूमिका निभाई. खासकर मध्यप्रदेश की राजनीति में उनका हस्तक्षेप तो रहा, लेकिन मुख्यमंत्री जैसे पद को लेकर उन्होंने कभी जिज्ञासा या कौतूहल नहीं जताया. लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर जब मध्यप्रदेश कांग्रेस हताशा और निराशा के दौर से गुजर रही थी. तब कमलनाथ कांग्रेस के खेवनहार बनकर आए और ना सिर्फ उन्होंने 15 साल पुरानी बीजेपी की सरकार को हटाया. बल्कि पूर्ण बहुमत से 2 सीटें कम रह जाने के बाद बीजेपी की रोजाना सरकार गिराने की धमकियों के बीच भी उन्होंने अपनी सरकार को मजबूती के साथ चलाया.

मध्य प्रदेश में पूर्ण बहुमत में आई कांग्रेस पार्टी

कमलनाथ की किस्मत ने भी उनका ऐसा साथ दिया कि विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस पूर्ण बहुमत के आंकड़े 116 सीट से महज 2 सीट पीछे रह गई थी. तो उन्हें चार निर्दलीय विधायकों और एक सपा और दो बसपा के विधायकों का समर्थन मिला. कांग्रेस की कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद बीजेपी रोजाना धमकियां तो देती रही, लेकिन कमलनाथ कुछ ऐसी किस्मत लेकर आए थे कि झाबुआ के बीजेपी विधायक ने लोकसभा चुनाव लड़ा और सांसद चुने जाने के बाद मध्यप्रदेश विधानसभा से इस्तीफा दे दिया और जब उप चुनाव हुए तो कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने भारी मतों से जीत हासिल कर कांग्रेस को बहुमत के आंकड़े पर ला दिया, लेकिन एक सीट अभी भी कम थी और शायद फिर कमलनाथ की किस्मत चमकी और बीजेपी के पवई के विधायक प्रहलाद लोधी के लिए 2 साल की सजा हो जाने के कारण उन्हें विधानसभा की सदस्यता से हाथ धोना पड़ा.

आज स्थिति यह है कि 230 विधानसभा वाली मध्यप्रदेश विधानसभा में अब सिर्फ 229 सदस्य रह गए हैं और मौजूदा स्थिति में कांग्रेस अपने बूते पर 115 सीट के साथ पूर्ण बहुमत में आ गई है.


मध्यप्रदेश में 2003 में जब दिग्विजय सिंह की 10 साल पुरानी सरकार गिरी, तो कांग्रेस का दोबारा सरकार में लौटना मुश्किल हो गया. 2008 और 2013 में कांग्रेस फिर से चुनाव हार गई. हालात ऐसे बने कि मध्यप्रदेश कांग्रेस के कार्यकर्ता और नेता हताशा और निराशा के दौर में पहुंच गए. 2018 में जब मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक आए, तो कांग्रेस को ना सत्ता में वापसी का भरोसा था और ना ही बीजेपी को अपनी हार का इल्म था. लेकिन कांग्रेस ने अबकी बार कमलनाथ को मध्यप्रदेश कांग्रेस की जिम्मेदारी सौंपी.

कमलनाथ के कद के चलते दिग्विजय सिंह और सुरेश पचौरी जैसे दिग्गज नेता उनके साथ कदम से कदम मिलाते नजर आए. ज्योतिरादित्य सिंधिया भले ही इस फैसले से नाखुश थे. लेकिन हाईकमान की मर्जी के चलते उन्हें भी कमलनाथ से कंधे से कंधा मिलाकर काम करना पड़ा. मैनेजमेंट में माहिर माने जाने वाले कमलनाथ ने सभी दिग्गजों को एकजुट रखने के साथ बेजान पड़ी कांग्रेस में जान फूंकने का काम किया. बल्कि पूरे देश में जब भाजपा की लहर चल रही थी. तब उन्होंने बेहतरीन प्रबंधन के साथ 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में लाकर खड़ा कर दिया,लेकिन हालात कुछ ऐसे बने कि मध्य प्रदेश में बहुमत के आंकड़े 116 सीट की जगह कांग्रेस को सिर्फ 114 सीट मिली.

हालांकि राहत की बात यह थी कि बीजेपी 104 सीटों पर सिमट गई और बीजेपी की विचारधारा से दूर रहने वाले दल सपा के एक और बसपा के दो विधायक चुनकर आए.इतना ही नहीं जो चार निर्दलीय विधायक चुने गए, वह सब कांग्रेस के नाराज लोग थे.जो टिकट न मिलने के कारण निर्दलीय चुनाव लड़े थे. ऐसी स्थिति में कमलनाथ को सपा, बसपा और निर्दलीय विधायकों को मिलाकर 7 विधायकों का समर्थन मिला और कांग्रेस ने 121 विधायकों के साथ सरकार बनाने में सफलता हासिल की,लेकिन मोदी और शाह के युग में जिस तरह से देश में राज्यों की सरकार गिराने का सिलसिला चल रहा था.उसकी आशंका हमेशा कमलनाथ सरकार के ऊपर मंडराती रही.

हालात यह बने कि भाजपा के नेता सुबह उठते ही सरकार गिराने का बयान देने लगे. स्थिति तो ऐसे बनी के विधानसभा के मानसून सत्र में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने सरकार गिराने की धमकी दी, तो कमलनाथ ने एक विधेयक पर मत विभाजन की स्थिति में बीजेपी के दो विधायक अपने पाले में खड़े कर दिए. कमलनाथ के इस मैनेजमेंट के बाद बीजेपी की धमकियां तो कम हुई. लेकिन सरकार अभी भी सेफ जोन में नहीं आई. झाबुआ से बीजेपी ने 2018 में विधायक चुने गए जी एस डामोर को लोकसभा चुनाव में टिकट दे दिया,लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हुआ. झाबुआ सीट पर बीजेपी चुनाव जीत गई और चुनाव जीतने के बाद बीजेपी ने अपने विधायक से मध्य प्रदेश विधानसभा से इस्तीफा दिलवा दिया.

झाबुआ में उपचुनाव की स्थिति बनी और कमलनाथ ने दिग्गज आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया को टिकट देकर और चुनाव के पहले अपने मैनेजमेंट के जरिए झाबुआ चुनाव में बड़ी जीत हासिल की. झाबुआ चुनाव के जीतते ही कांग्रेस की एक सीट बढ़ गई और कांग्रेस 115 के आंकड़े पर पहुंच गई। झाबुआ चुनाव परिणाम को आए महज 8 दिन ही बीते थे कि पन्ना जिले की पवई के बीजेपी के विधायक प्रहलाद लोधी के लिए स्पेशल कोर्ट ने 2 साल की सजा सुना दी.इस सजा के सुनाते ही सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के आधार पर मध्य प्रदेश विधानसभा ने प्रहलाद लोधी की सदस्यता समाप्त कर दी और मध्यप्रदेश विधानसभा में सिर्फ 229 सदस्य रह गए. मध्यप्रदेश विधानसभा में 229 सदस्यों की स्थिति में पूर्ण बहुमत के लिए सिर्फ 115 सीट की जरूरत है और ऐसी स्थिति में कांग्रेस अपने बूते पर पूर्ण बहुमत में पहुंच गई है.

फिलहाल बीजेपी इसे नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध बताते हुए सरकार के दबाव में लिया गया फैसला बता रही है और हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की बात कर रही है.लेकिन कांग्रेस का कहना है कि 10 जुलाई 2013 में सुप्रीम कोर्ट की युगल पीठ जस्टिस एके पटनायक एवं सुधांशु रंजन बंदोपाध्याय ने फैसला देते हुए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 की उप धारा 4 को तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया था. इस धारा के अंतर्गत प्रावधान था कि 2 साल या उससे ज्यादा सजा की स्थिति में जनप्रतिनिधि अपील कर सकता है,लेकिन इस प्रावधान के खत्म होते ही जनप्रतिनिधियों को अपील का अधिकार नहीं रह गया.कांग्रेस का दावा है कि इसी फैसले के चलते कई दिग्गज नेताओं की सदस्यता समाप्त हुई है. जिसमें लालू प्रसाद यादव और तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय जय ललिता जैसे नेताओं के नाम हैं. इस फैसले के कारण बीजेपी इसके विरुद्ध न्यायालय की शरण नहीं ले सकती है.

इस मामले में मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता अजय सिंह यादव का कहना है कि मध्य प्रदेश भाजपा के विधायक प्रहलाद लोधी की सदस्यता समाप्त होने के बाद मध्यप्रदेश की 230 की विधानसभा के अब 229 सदस्य रह गए हैं.कांग्रेस पार्टी 115 सदस्यों के आधार पर पूर्ण बहुमत में आ गई है.भाजपा को न्यायालय का सम्मान करना चाहिए ऐसे अपराधियों को पार्टी से टिकट देने से बचना चाहिए.ऐसे मामलों में लालू यादव और जयललिता जैसे बड़े नेताओं की सदस्यता गई है, इसलिए भाजपा को अब पवई की जनता सबक सिखाएगी.जिसने ऐसे अपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्ति को टिकट दिया.

Intro:भोपाल।मध्यप्रदेश की राजनीति में पदार्पण करते ही मुख्यमंत्री कमलनाथ की किस्मत उनका जोरदार साथ दे रही है।कमलनाथ ने भले ही मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा से राजनीति की शुरुआत की थी। लेकिन हमेशा केंद्र की राजनीति में अग्रणी भूमिका निभाई। खासकर मध्यप्रदेश की राजनीति में उनका हस्तक्षेप तो रहा, लेकिन मुख्यमंत्री जैसे पद को लेकर उन्होंने कभी जिज्ञासा या कौतूहल नहीं जताया। लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर जब मध्यप्रदेश कांग्रेस हताशा और निराशा के दौर से गुजर रही थी।तब कमलनाथ कांग्रेस के खेवनहार बनकर आए और ना सिर्फ उन्होंने 15 साल पुरानी बीजेपी की सरकार को हटाया।बल्कि पूर्ण बहुमत से 2 सीटें कम रह जाने के बाद बीजेपी की रोजाना सरकार गिराने की धमकियों के बीच भी उन्होंने अपनी सरकार को मजबूती के साथ चलाया।कमलनाथ की किस्मत ने भी उनका ऐसा साथ दिया कि विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस पूर्ण बहुमत के आंकड़े 116 सीट से महज 2 सीट पीछे रह गई थी। तो उन्हें चार निर्दलीय विधायकों और एक सपा और दो बसपा के विधायकों का समर्थन मिला। कांग्रेस की कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद बीजेपी रोजाना धमकियां तो देती रही। लेकिन कमलनाथ कुछ ऐसी किस्मत लेकर आए थे कि झाबुआ के बीजेपी विधायक ने लोकसभा चुनाव लड़ा और सांसद चुने जाने के बाद मध्यप्रदेश विधानसभा से इस्तीफा दे दिया और जब उप चुनाव हुए तो कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने भारी मतों से जीत हासिल कर कांग्रेस को बहुमत के आंकड़े पर ला दिया। लेकिन एक सीट अभी भी कम थी और शायद फिर कमलनाथ की किस्मत चमकी और बीजेपी के पवई के विधायक प्रहलाद लोधी के लिए 2 साल की सजा हो जाने के कारण उन्हें विधानसभा की सदस्यता से हाथ धोना पड़ा। आज स्थिति यह है कि 230 विधानसभा वाली मध्यप्रदेश विधानसभा में अब सिर्फ 229 सदस्य रह गए हैं और मौजूदा स्थिति में कांग्रेस अपने बूते पर 115 सीट के साथ पूर्ण बहुमत में आ गई है ।Body:मध्यप्रदेश में 2003 में जब दिग्विजय सिंह की 10 साल पुरानी सरकार गिरी, तो कांग्रेस का दोबारा सरकार में लौटना मुश्किल हो गया। 2008 और 2013 में कांग्रेस फिर से चुनाव हार गई।हालात ऐसे बने कि मध्यप्रदेश कांग्रेस के कार्यकर्ता और नेता हताशा और निराशा के दौर में पहुंच गए ।2018 में जब मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक आए, तो कांग्रेस को ना सत्ता में वापसी का भरोसा था और ना ही बीजेपी को अपनी हार का इल्म था। लेकिन कांग्रेस ने अबकी बार कमलनाथ को मध्यप्रदेश कांग्रेस की जिम्मेदारी सौंपी। कमलनाथ के कद के चलते दिग्विजय सिंह और सुरेश पचौरी जैसे दिग्गज नेता उनके साथ कदम से कदम मिलाते नजर आए। ज्योतिरादित्य सिंधिया भले ही इस फैसले से नाखुश थे।लेकिन हाईकमान की मर्जी के चलते उन्हें भी कमलनाथ से कंधे से कंधा मिलाकर काम करना पड़ा।मैनेजमेंट में माहिर माने जाने वाले कमलनाथ ने सभी दिग्गजों को एकजुट रखने के साथ बेजान पड़ी कांग्रेस में जान फूंकने का काम किया। बल्कि पूरे देश में जब भाजपा की लहर चल रही थी। तब उन्हें उन्होंने बेहतरीन प्रबंधन के साथ 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में लाकर खड़ा कर दिया।लेकिन हालात कुछ ऐसे बने कि मध्य प्रदेश में बहुमत के आंकड़े 116 सीट की जगह कांग्रेस को सिर्फ 114 सीट मिली। हालांकि राहत की बात यह थी कि बीजेपी 104 सीटों पर सिमट गई और बीजेपी की विचारधारा से दूर रहने वाले दल सपा के एक और बसपा के दो विधायक चुनकर आए। इतना ही नहीं जो चार निर्दलीय विधायक चुने गए, वह सब कांग्रेस के नाराज लोग थे। जो टिकट न मिलने के कारण निर्दलीय चुनाव लड़े थे। ऐसी स्थिति में कमलनाथ को सपा, बसपा और निर्दलीय विधायकों को मिलाकर 7 विधायकों का समर्थन मिला और कांग्रेस ने 121 विधायकों के साथ सरकार बनाने में सफलता हासिल की। लेकिन मोदी और शाह के युग में जिस तरह से देश में राज्यों की सरकार गिराने का सिलसिला चल रहा था। उसकी आशंका हमेशा कमलनाथ सरकार के ऊपर मंडराती रही। हालात यह बने कि भाजपा के नेता सुबह उठते ही सरकार गिराने का बयान देने लगे। स्थिति तो ऐसे बनी के विधानसभा के मानसून सत्र में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने सरकार गिराने की धमकी दी। तो कमलनाथ ने एक विधेयक पर मत विभाजन की स्थिति में बीजेपी के दो विधायक अपने पाले में खड़े कर दिए। कमलनाथ के इस मैनेजमेंट के बाद बीजेपी की धमकियां तो कम हुई। लेकिन सरकार अभी भी सेफ जोन में नहीं आई। झाबुआ से बीजेपी ने 2018 में विधायक चुने गए जी एस डामोर को लोकसभा चुनाव में टिकट दे दिया।लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हुआ। झाबुआ सीट पर बीजेपी चुनाव जीत गई और चुनाव जीतने के बाद बीजेपी ने अपने विधायक से मध्य प्रदेश विधानसभा से इस्तीफा दिलवा दिया।झाबुआ में उपचुनाव की स्थिति बनी और कमलनाथ ने दिग्गज आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया को टिकट देकर और चुनाव के पहले अपने मैनेजमेंट के जरिए झाबुआ चुनाव में बड़ी जीत हासिल की। झाबुआ चुनाव के जीतते ही कांग्रेस की एक सीट बढ़ गई और कांग्रेस 115 के आंकड़े पर पहुंच गई। झाबुआ चुनाव परिणाम को आए महज 8 दिन ही बीते थे कि पन्ना जिले की पवई के बीजेपी के विधायक प्रहलाद लोधी के लिए स्पेशल कोर्ट ने 2 साल की सजा सुना दी।इस सजा के सुनाते ही सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के आधार पर मध्य प्रदेश विधानसभा ने प्रहलाद लोधी की सदस्यता समाप्त कर दी और मध्यप्रदेश विधानसभा में सिर्फ 229 सदस्य रह गए ।मध्यप्रदेश विधानसभा में 229 सदस्यों की स्थिति में पूर्ण बहुमत के लिए सिर्फ 115 सीट की जरूरत है और ऐसी स्थिति में कांग्रेस अपने बूते पर पूर्ण बहुमत में पहुंच गई है।Conclusion:फिलहाल बीजेपी इसे नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध बताते हुए सरकार के दबाव में लिया गया फैसला बता रही है और हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की बात कर रही है।लेकिन कांग्रेस का कहना है कि 10 जुलाई 2013 में सुप्रीम कोर्ट की युगल पीठ जस्टिस एके पटनायक एवं सुधांशु रंजन बंदोपाध्याय ने फैसला देते हुए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 की उप धारा 4 को तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया था। इस धारा के अंतर्गत प्रावधान था कि 2 साल या उससे ज्यादा सजा की स्थिति में जनप्रतिनिधि अपील कर सकता है।लेकिन इस प्रावधान के खत्म होते ही जनप्रतिनिधियों को अपील का अधिकार नहीं रह गया। कांग्रेस का दावा है कि इसी फैसले के चलते कई दिग्गज नेताओं की सदस्यता समाप्त हुई है। जिसमें लालू प्रसाद यादव और तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय जय ललिता जैसे नेताओं के नाम हैं।इस फैसले के कारण बीजेपी इसके विरुद्ध न्यायालय की शरण नहीं ले सकती है।

इस मामले में मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता अजय सिंह यादव का कहना है कि मध्य प्रदेश भाजपा के विधायक प्रहलाद लोधी की सदस्यता समाप्त होने के बाद मध्यप्रदेश की 230 की विधानसभा के अब 229 सदस्य रह गए हैं। कांग्रेस पार्टी 115 सदस्यों के आधार पर पूर्ण बहुमत में आ गई है ।भाजपा को न्यायालय का सम्मान करना चाहिए ऐसे अपराधियों को पार्टी से टिकट देने से बचना चाहिए।ऐसे मामलों में लालू यादव और जयललिता जैसे बड़े नेताओं की सदस्यता गई है ।इसलिए भाजपा को अब पवई की जनता सबक सिखाएगी।जिसने ऐसे अपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्ति को टिकट दिया।
Last Updated : Nov 4, 2019, 12:23 PM IST
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