भोपाल। ओबीसी आरक्षण (Obc-reservation) पर चल रही सियासी जंग थमी नहीं कि अब, पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग (Backward classes commission) बनाने को लेकर सियासी घमासान शुरू हो गया है. शिवराज सरकार (Shivraj Govt) ने आयोग का अध्यक्ष गौरीशंकर बिसेन (Gaurishankar Bisen) को नियुक्त किया है. ऐसे में अब कांग्रेस (Congress) ने शिवराज सरकार पर जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया है. कांग्रेस (Congress) का कहना है कि आयोग के अध्यक्ष तो जेपी धनोपिया (JP Dhanopia) है. ऐसे में एक आयोग में दो व्यक्ति कैसे नियुक्त किये जा सकते हैं. कांग्रेस ने बिसेन की नियुक्ति को दिखावा मात्र करार दिया है.
कांग्रेस का बीजेपी पर आरोप
दरअसल, पूर्व की कमलनाथ सरकार (Former kamal nath Govt) ने अपने समय में आयोग का अध्यक्ष जेपी धनोपिया (JP Dhanopia) को बना दिया था. वहीं सीएम शिवराज सिंह चौहान (Shivraj singh Chouhan) ने 15 अगस्त को ऐलान किया था की पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग (Backward classes commission) के अध्यक्ष गौरीशंकर बिसेन (Gaurishankar Bisen) होंगे. जिसे लेकर आदेश भी जारी कर दिया गया और गौरीशंकर बिसेन को पिछला वर्ग कल्याण आयोग का नया अध्यक्ष भी नियुक्त कर दिया गया. इस फैसले के बाद से कांग्रेस में उथल-पुथल मची हुई है. कांग्रेस ने शिवराज सरकार पर जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया है.
बीजेपी ने जनता को किया गुमराह
वहीं दूरी ओर खुद आयोग के अध्यक्ष जेपी धनोपिया (JP Dhanopia) ने बताया कि वही विधिवत अध्यक्ष हैं. जेपी ने कहा कि गौरीशंकर बिसेन (Gaurishankar Bisen) की नियुक्ति लोगों को गुमराह करने के लिए की गई है. यह विधिवत नहीं है. नियमानुसार नहीं है. यही एक संस्था है, संस्था का उद्देश्य बीजेपी की ओर से उनके नेताओं को उपकृत करने का है. उन्होंने कहा कि शिवराज सरकार ने जनता को गुमराह करने की कोशिश है. दरअसल, कमलनाथ सरकार की ओर से मार्च 2020 में पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था , बाद में बीजेपी सरकार ने से निरस्त कर दिया था, लेकिन हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, कोर्ट ने मामले में स्टे दे दिया.
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जेपी धनोपिया पहले से ही हैं अध्यक्ष
जेपी धनोपिया (JP Dhanopia) को 17 मार्च 2020 को पिछड़ा वर्ग आयोग (Backward classes commission) का अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन शिवराज सरकार (Shivraj Govt) ने शपथ लेने के दूसरे दिन कमलनाथ सरकार के दौरान की गई नियुक्तियों को निरस्त कर दिया. शिवराज सरकार के आदेश की संवैधानिकता को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, जिसमें कोर्ट ने निरस्तीकरण आदेश के प्रभाव पर रोक लगाते हुए यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए.