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स्मार्टफोन से बढ़ रहे बच्चों में डिप्रेशन के मामले, पैरेंट्स को रहना होगा सावधान !

राजधानी में ऐसे कई मामले सामने आए हैं. जहां बच्चे मोबाइल की लत के चलते डिप्रेशन में चले गए, और ऐसे बच्चों की कॉउंसलिंग फैमिली कोर्ट और मनोचिकित्सकों के पास चल रही है. पढ़िए पूरी ख़बर..

Children are victims of depression by phone
फोन से बच्चे हो रहे डिप्रेशन का शिकार
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Published : Oct 6, 2020, 7:11 PM IST

भोपाल। कोरोना संक्रमण के चलते स्कूल बंद हैं और बच्चे मोबाइल फोन से ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं. जिसके चलते छोटे-छोटे बच्चे अपना आधे से ज्यादा समय मोबाइल फोन पर व्यतीत करने लगे हैं और यही वजह है कि अब यह मोबाइल फोन बच्चों की जान का खतरा बन गए हैं.

फोन से बच्चे हो रहे डिप्रेशन का शिकार

राजधानी की फैमिली कोर्ट में कक्षा 12वीं के बच्चे का एक ऐसा मामला सामने आया है. जहां मोबाइल की लत के चलते बच्चे ने 6 बार आत्महत्या का प्रयास किया, और अब स्थिति इतनी बिगड़ गई है, बच्चे की मानसिक हालात बेहद खराब हो चुकी है. वहीं डॉक्टर बच्चे का ट्रीटमेंट कर रहे हैं, और लगातार इन बच्चों की कॉउंसलिंग हो रही है.

फोन से बच्चों की जान का खतरा

कोरोना के चलते पेरेंट्स अपने बच्चों को घर से बाहर नहीं जाने दे रहे हैं, ऐसे में बच्चों के टाइम पास के लिए पेरेंट्स खुद बच्चों को मोबाइल फोन दे देते हैं, और पूरे दिन बच्चा मोबाइल में क्या देख रहा है. इस पर भी ध्यान नहीं दे पाते हैं. जब बच्चे के स्वभाव में परिवर्तन आता है, तब माता पिता बच्चे पर कंट्रोल करते है, और यही स्थिति बच्चों को डिप्रेशन की ओर ले जाती है.

मोबाइल बना रहा मानिसक बीमार

फैमिली कोर्ट की काउंसलर सरिता राजानि ने बताया यह मामला सबसे अलग है जहां एक 12वीं कक्षा का होनहार बच्चा मोबाइल की लत के चलते मानसिक रूप से बीमार हो चुका है, और बार बार आत्महत्या का प्रयास कर रहा है, जो बच्चों के भविष्य के लिए भयानक है. अभिभावकों को बच्चों की केयर करनी होगी. वरना इस तरह मासूम बच्चे अपनी जिंदगी खराब कर लेंगे.

पैरेंट्स को रहना होगा सावधान

मनोचिकित्सक रूमा भट्टाचार्य ने बताया कि इस तरह के मामलों में सबसे ज्यादा गलती माता पिता की ही होती है, क्योंकि बच्चों के पहले शिक्षक तो माता पिता ही होते हैं, उन इस बात पर ध्यान देना चाहिए, कि उनका बच्चा फोन पर क्या देख रहा है, और क्या नहीं. उन्होंने बताया उनके पास जुलाई माह से अब तक 250 हजार से ज्यादा ऐसे मामले सामने आ चुके हैं. ये मामले जुलाई माह के बाद तेज़ी से बढ़े हैं, और ये छोटे बच्चों के भविष्य के लिए बेहद खतरनाक हैं.

कक्षा 12वीं का छात्र डिप्रेशन का शिकार

फैमिली कोर्ट की काउंसलर सरिता रज़ानि ने बताया कि भोपाल के निजी स्कूल में पढ़ने वाला कक्षा 12वीं का छात्र लॉकडाउन में मोबाइल फोन के ज़रिए ऐसे वीडियो देख रहा था. जिसमे बिज़नेस के नए नए आइडियाज़ बताए जाते थे, बच्चा पढ़ने में बहुत तेज़ है, और यही वजह है कि वो और बच्चों की तरह फोन में गेम और कार्टून देखने की बजाए, फ्यूचर में बिज़नेस सेटल करने के लिए वीडियो देखा करता था, और जो आइडिया उसे वीडियो से मिलता था. वो अपने घर वालों से शेयर करता था, लेकिन घर वालों ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया, बच्चे ने जब घर से बिज़नेस के लिए पैसे मांगे, तो उसे घर से डाट पड़ गई. जिससे बच्चे को गुस्सा आया. बच्चे को लगने लगा कि उसके पेरेंट्स उसे सपोर्ट नहीं करना चाहते, उसके आइडियाज़ की कोई वैल्यू नहीं है, और यही चीज़ें उसे डिप्रेशन में धकेलती गई.

जब बच्चा मानसिक रूप से बीमार हुआ तो उसके पैरेंट्स ने कई सारे डॉक्टर्स से ट्रीटमेंट लिया, जिससे बच्चे की स्थिति और भी खराब हो गई.

आज स्थिति यह है कि बच्चा जीना ही नहीं चाहता है. इस छोटे से बच्चे ने 6 बार आत्महत्या का प्रयास किया. जिससे घर के बाकी सदस्य भी परेशान हैं. बच्चे को इस स्थिति में फैमिली कोर्ट की काउंसलर के पास लाया गया, जहां पहले से इस तरह के कई मामले पेंडिंग चल रहे हैं.

भोपाल। कोरोना संक्रमण के चलते स्कूल बंद हैं और बच्चे मोबाइल फोन से ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं. जिसके चलते छोटे-छोटे बच्चे अपना आधे से ज्यादा समय मोबाइल फोन पर व्यतीत करने लगे हैं और यही वजह है कि अब यह मोबाइल फोन बच्चों की जान का खतरा बन गए हैं.

फोन से बच्चे हो रहे डिप्रेशन का शिकार

राजधानी की फैमिली कोर्ट में कक्षा 12वीं के बच्चे का एक ऐसा मामला सामने आया है. जहां मोबाइल की लत के चलते बच्चे ने 6 बार आत्महत्या का प्रयास किया, और अब स्थिति इतनी बिगड़ गई है, बच्चे की मानसिक हालात बेहद खराब हो चुकी है. वहीं डॉक्टर बच्चे का ट्रीटमेंट कर रहे हैं, और लगातार इन बच्चों की कॉउंसलिंग हो रही है.

फोन से बच्चों की जान का खतरा

कोरोना के चलते पेरेंट्स अपने बच्चों को घर से बाहर नहीं जाने दे रहे हैं, ऐसे में बच्चों के टाइम पास के लिए पेरेंट्स खुद बच्चों को मोबाइल फोन दे देते हैं, और पूरे दिन बच्चा मोबाइल में क्या देख रहा है. इस पर भी ध्यान नहीं दे पाते हैं. जब बच्चे के स्वभाव में परिवर्तन आता है, तब माता पिता बच्चे पर कंट्रोल करते है, और यही स्थिति बच्चों को डिप्रेशन की ओर ले जाती है.

मोबाइल बना रहा मानिसक बीमार

फैमिली कोर्ट की काउंसलर सरिता राजानि ने बताया यह मामला सबसे अलग है जहां एक 12वीं कक्षा का होनहार बच्चा मोबाइल की लत के चलते मानसिक रूप से बीमार हो चुका है, और बार बार आत्महत्या का प्रयास कर रहा है, जो बच्चों के भविष्य के लिए भयानक है. अभिभावकों को बच्चों की केयर करनी होगी. वरना इस तरह मासूम बच्चे अपनी जिंदगी खराब कर लेंगे.

पैरेंट्स को रहना होगा सावधान

मनोचिकित्सक रूमा भट्टाचार्य ने बताया कि इस तरह के मामलों में सबसे ज्यादा गलती माता पिता की ही होती है, क्योंकि बच्चों के पहले शिक्षक तो माता पिता ही होते हैं, उन इस बात पर ध्यान देना चाहिए, कि उनका बच्चा फोन पर क्या देख रहा है, और क्या नहीं. उन्होंने बताया उनके पास जुलाई माह से अब तक 250 हजार से ज्यादा ऐसे मामले सामने आ चुके हैं. ये मामले जुलाई माह के बाद तेज़ी से बढ़े हैं, और ये छोटे बच्चों के भविष्य के लिए बेहद खतरनाक हैं.

कक्षा 12वीं का छात्र डिप्रेशन का शिकार

फैमिली कोर्ट की काउंसलर सरिता रज़ानि ने बताया कि भोपाल के निजी स्कूल में पढ़ने वाला कक्षा 12वीं का छात्र लॉकडाउन में मोबाइल फोन के ज़रिए ऐसे वीडियो देख रहा था. जिसमे बिज़नेस के नए नए आइडियाज़ बताए जाते थे, बच्चा पढ़ने में बहुत तेज़ है, और यही वजह है कि वो और बच्चों की तरह फोन में गेम और कार्टून देखने की बजाए, फ्यूचर में बिज़नेस सेटल करने के लिए वीडियो देखा करता था, और जो आइडिया उसे वीडियो से मिलता था. वो अपने घर वालों से शेयर करता था, लेकिन घर वालों ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया, बच्चे ने जब घर से बिज़नेस के लिए पैसे मांगे, तो उसे घर से डाट पड़ गई. जिससे बच्चे को गुस्सा आया. बच्चे को लगने लगा कि उसके पेरेंट्स उसे सपोर्ट नहीं करना चाहते, उसके आइडियाज़ की कोई वैल्यू नहीं है, और यही चीज़ें उसे डिप्रेशन में धकेलती गई.

जब बच्चा मानसिक रूप से बीमार हुआ तो उसके पैरेंट्स ने कई सारे डॉक्टर्स से ट्रीटमेंट लिया, जिससे बच्चे की स्थिति और भी खराब हो गई.

आज स्थिति यह है कि बच्चा जीना ही नहीं चाहता है. इस छोटे से बच्चे ने 6 बार आत्महत्या का प्रयास किया. जिससे घर के बाकी सदस्य भी परेशान हैं. बच्चे को इस स्थिति में फैमिली कोर्ट की काउंसलर के पास लाया गया, जहां पहले से इस तरह के कई मामले पेंडिंग चल रहे हैं.

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