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भोपाल का टेकरी साहिब गुरुद्वाराः 500 साल पहले आएं थे गुरु नानक देव, आज भी मौजूद है चरण चिन्ह

सिख धर्म के लिए गुरु नानक जयंती एक बड़ा त्योहार होता है. इस साल 19 नवंबर को गुरु नानक जयंती (Guru Nanak Jayanti 2021) का पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा. भोपाल (Bhopal) के टेकरी साहिब गुरुद्वारा(Tekri Sahib Gurdwara) में आज भी गुरु नानक देव की चरण चिन्ह हैं. माना जाता है कि करीब 500 साल पहले वो यहां आए थे.

Tekri Sahib Gurdwara
भोपाल का टेकरी साहिब गुरुद्वारा
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Published : Nov 17, 2021, 10:56 PM IST

Updated : Nov 19, 2021, 8:59 PM IST

भोपाल। सिखों के पहले गुरु नानक देवजी की 19 नवंबर को जयंती (Guru Nanak Jayanti 2021) है. इसे प्रकाश पर्व (Prakash Parv) के तौर पर मनाया जाता है. बता दें कि नानक देवजी 500 साल पहले भोपाल (Bhopal) आए थे. वे यहां ईदगाह हिल्स स्थित एक जगह पर रुके थे. अब यहां टेकरी साहिब गुरुद्वारा (Tekri Sahib Gurdwara) मौजूद है. यहां से जुड़ीं कई कहानियां प्रचलित हैं. बुजुर्ग इनकी सत्यता पर मुहर लगाते हैं. इस गुरुद्वारे में नानक देवजी के पैरों के निशान (footprints) मौजूद हैं. इस गुरुद्वारे में देश-दुनिया से बड़ी संख्या में लोग आते हैं.

Tekri Sahib Gurdwara
भोपाल का टेकरी साहिब गुरुद्वारा

500 साल पहले आए थे गुरु नानक देव जी

500 साल पहले भोपाल के जिस गुरुद्वारे में गुरु नानक देव आए थे उस गुरुद्वारे में आज भी उनके चरण चिन्ह (footprints) मौजूद हैं. पत्थर की शिला पर आज भी लोग दर्शन कर अरदास करते हैं. साथ ही इस गुरुदारे में उन्होंने रोगियों के मर्ज के नाश के लिए जिस कुंडे से जल मंगाया था वह कुंड आज भी स्थापित है.

भोपाल का टेकरी साहिब गुरुद्वारा


गुरुद्वारे (Tekri Sahib Gurdwara) की क्या है कहानी
यहां के सेवादार बाबू सिंह ने बताया कि नानकजी 500 साल पहले जब देश भ्रमण पर निकले थे, तब वे भोपाल आए थे. वे ईदगाह हिल्स पर एक कुटिया में ठहरे थे, जहां अब यह गुरुद्वारा है. इस कुटिया में गणपतलाल नाम का शख्स रहता था. जो कुष्ठ रोग से पीड़ित था. एक बार वो पीर जलालउद्दीन के पास गया, पीर ने उसे नानक देवजी के पास जाने क सलाह दी. गणपतलाल अपनी बीमारी के इलाज की उम्मीद में नानकजी से मिला. नानक देवजी ने अपने साथियों से पानी लाने को कहा. काफी देर यहां-वहां खोजने के बाद एक पहाड़ी से फूटते प्राकृतिक झरने से वे पानी लेकर आए. नानक देवजी ने उस पानी को गणपतलाल पर छिड़का. बताते हैं कि इसके बाद वो बेहोश हो गया. जब उसे होश आया, तब नानक देवजी वहां से जा चुके थे. लेकिन उनके पांवों के निशान मौजूद थे और गणपतलाल का कुष्ठ रोग ठीक हो चुका था.

Tekri Sahib Gurdwara
भोपाल का टेकरी साहिब गुरुद्वारा

रानी कमलापति के किले की सूरत बदलने की आस, देखें फिलहाल किस हालत में है किला


जल कुंड से जुड़ी लोगों की आस्था
टेकरी साहिब गुरुद्वारे (Tekri Sahib Gurdwara) में लोगों की विशेष आस्था है. लोग आज भी यहां के जल कुंड को पवित्र मानते हैं. उनका मानना है कि इस कुंड के जल से उन्हें से लाभ हुआ है, और गुरुद्वारे में उनकी मन्नत पूरी हुई है.

gurudwara
गुरु नानक देव के चरण चिन्ह
नवाबों ने दी थी जमीनइस गुरुद्वारे के लिए यह जमीन भोपाल के नवाब ने दी थी. जिस जगह से यह पानी मिला था, उसे अब बाउली साहब कहते हैं. इसमें आज भी बराबर पानी रहता है. यहां के जल को लोग प्रसाद मानकर अपने साथ ले जाते हैं. इस जगह को संरक्षित किया गया है.

नानक देवजी से जुड़ीं बातें

  • नानक देवजी 7-8 साल की उम्र में ही काफी प्रसिद्ध हो गए थे.
  • गुरु नानक देवजी के पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी था. नानक देव जी की बहन का नाम नानकी था.
  • गुरु नानक देवजी का जन्म राय भोई की तलवंडी (राय भोई दी तलवंडी) नामक जगह पर हुआ था. यह स्थान अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत स्थित ननकाना साहिब में है.
  • गुरु नानक जीवन के अंतिम समय में करतारपुर (Kartarpur) में बस गए थे. उन्होंने 25 सितंबर, 1539 को अपना शरीर त्याग दिया. उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. यही बाद में गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए.

भोपाल। सिखों के पहले गुरु नानक देवजी की 19 नवंबर को जयंती (Guru Nanak Jayanti 2021) है. इसे प्रकाश पर्व (Prakash Parv) के तौर पर मनाया जाता है. बता दें कि नानक देवजी 500 साल पहले भोपाल (Bhopal) आए थे. वे यहां ईदगाह हिल्स स्थित एक जगह पर रुके थे. अब यहां टेकरी साहिब गुरुद्वारा (Tekri Sahib Gurdwara) मौजूद है. यहां से जुड़ीं कई कहानियां प्रचलित हैं. बुजुर्ग इनकी सत्यता पर मुहर लगाते हैं. इस गुरुद्वारे में नानक देवजी के पैरों के निशान (footprints) मौजूद हैं. इस गुरुद्वारे में देश-दुनिया से बड़ी संख्या में लोग आते हैं.

Tekri Sahib Gurdwara
भोपाल का टेकरी साहिब गुरुद्वारा

500 साल पहले आए थे गुरु नानक देव जी

500 साल पहले भोपाल के जिस गुरुद्वारे में गुरु नानक देव आए थे उस गुरुद्वारे में आज भी उनके चरण चिन्ह (footprints) मौजूद हैं. पत्थर की शिला पर आज भी लोग दर्शन कर अरदास करते हैं. साथ ही इस गुरुदारे में उन्होंने रोगियों के मर्ज के नाश के लिए जिस कुंडे से जल मंगाया था वह कुंड आज भी स्थापित है.

भोपाल का टेकरी साहिब गुरुद्वारा


गुरुद्वारे (Tekri Sahib Gurdwara) की क्या है कहानी
यहां के सेवादार बाबू सिंह ने बताया कि नानकजी 500 साल पहले जब देश भ्रमण पर निकले थे, तब वे भोपाल आए थे. वे ईदगाह हिल्स पर एक कुटिया में ठहरे थे, जहां अब यह गुरुद्वारा है. इस कुटिया में गणपतलाल नाम का शख्स रहता था. जो कुष्ठ रोग से पीड़ित था. एक बार वो पीर जलालउद्दीन के पास गया, पीर ने उसे नानक देवजी के पास जाने क सलाह दी. गणपतलाल अपनी बीमारी के इलाज की उम्मीद में नानकजी से मिला. नानक देवजी ने अपने साथियों से पानी लाने को कहा. काफी देर यहां-वहां खोजने के बाद एक पहाड़ी से फूटते प्राकृतिक झरने से वे पानी लेकर आए. नानक देवजी ने उस पानी को गणपतलाल पर छिड़का. बताते हैं कि इसके बाद वो बेहोश हो गया. जब उसे होश आया, तब नानक देवजी वहां से जा चुके थे. लेकिन उनके पांवों के निशान मौजूद थे और गणपतलाल का कुष्ठ रोग ठीक हो चुका था.

Tekri Sahib Gurdwara
भोपाल का टेकरी साहिब गुरुद्वारा

रानी कमलापति के किले की सूरत बदलने की आस, देखें फिलहाल किस हालत में है किला


जल कुंड से जुड़ी लोगों की आस्था
टेकरी साहिब गुरुद्वारे (Tekri Sahib Gurdwara) में लोगों की विशेष आस्था है. लोग आज भी यहां के जल कुंड को पवित्र मानते हैं. उनका मानना है कि इस कुंड के जल से उन्हें से लाभ हुआ है, और गुरुद्वारे में उनकी मन्नत पूरी हुई है.

gurudwara
गुरु नानक देव के चरण चिन्ह
नवाबों ने दी थी जमीनइस गुरुद्वारे के लिए यह जमीन भोपाल के नवाब ने दी थी. जिस जगह से यह पानी मिला था, उसे अब बाउली साहब कहते हैं. इसमें आज भी बराबर पानी रहता है. यहां के जल को लोग प्रसाद मानकर अपने साथ ले जाते हैं. इस जगह को संरक्षित किया गया है.

नानक देवजी से जुड़ीं बातें

  • नानक देवजी 7-8 साल की उम्र में ही काफी प्रसिद्ध हो गए थे.
  • गुरु नानक देवजी के पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी था. नानक देव जी की बहन का नाम नानकी था.
  • गुरु नानक देवजी का जन्म राय भोई की तलवंडी (राय भोई दी तलवंडी) नामक जगह पर हुआ था. यह स्थान अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत स्थित ननकाना साहिब में है.
  • गुरु नानक जीवन के अंतिम समय में करतारपुर (Kartarpur) में बस गए थे. उन्होंने 25 सितंबर, 1539 को अपना शरीर त्याग दिया. उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. यही बाद में गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए.
Last Updated : Nov 19, 2021, 8:59 PM IST
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