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MP Election 2023: कमीशन, श्राद्ध फिर बाप... 2023 के इलेक्शन में कितने की वर्ड का सिलेक्शन

मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को चुनाव हैं. चुनाव की तारीखों के ऐलान होने के बाद पार्टियों का एक दूसरे पर वार-पलटवार भी जारी है. नेताओं के बयानों में पहले जहां कमीशन था, अब वहीं श्राद्ध फिर बाप की भी एंट्री हो गई है. पढ़िए ईटीवी भारत की भोपाल से संवाददाता शेफाली पांडे की खास रिपोर्ट...

politicians used shraddha and father key word
2023 के इलेक्शन में की वर्ड का सिलेक्शन
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 14, 2023, 8:03 PM IST

भोपाल। कर्नाटक के चुनाव में एक 'की-वर्ड' ने पॉलीटिकल सीन बदल दिया था. 40 परसेंट कमीशन वाली सरकार का जो की वर्ड कांग्रेस ने दिया, तो उस जमीन पर कहानी ही बदल गई. अब एमपी में भी चुनाव जब धीरे-धीरे जोर पकड़ रहा है तो हर दिन बयानों की धार के साथ ऐसे 'की-वर्ड' की बहार आ रही है. करप्शन चुनाव के ऐलान के पहले ट्रेडिंग था. इसी पर पोस्टर वार भी शुरु हुआ लेकिन चुनाव की तारीखों के बाद तो ऐसे-ऐसे शब्द राजनीति का हिस्सा बन रहे हैं कि जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. अब बताइए चुनावी राजनीति में 'श्राद्ध' जैसे शब्द पहले कब इस्तेमाल हुए. बात आगे बढ़कर 'बाप' तक पहुंची है.

एमपी के चुनाव में शब्दों पर बवाल, कमीशन से श्राद्ध: मुद्दे सिरे से नदारद हों ऐसा नहीं है. लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव में शब्द पकड़कर ऐसे राजनीति हो रही है कि एक एक शब्द पर गुत्थमगुत्था हो रहे हैं नेता. चुनाव की तारीखों के साथ ये ट्रेंड और बढ़ा है. चुनाव जब दूर था तो कर्नाटक चुनाव की तर्ज पर एमपी में कांग्रेस ने कमीशन की एंट्री कराई, पोस्टर वार शुरु हुआ, सोशल मीडिया कैम्पेन शुरु हुआ. कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर 50 परसेंट कमीशन कैम्पेन शुरु किया. इसे नाम दिया गया शिवराज का मिशन 50 परसेंट कमीशन. हालांकि चुनाव की तारीखों के एलान के बाद सीन ऐसा बदला कि एमपी में सियासत श्राद्ध पर सवार हो गई. असल में बीजेपी की चौथी सूची जारी होने का जो समय है श्राद्ध पक्ष उसे लेकर मुद्दा बनाया गया और कहा कि शिवराज सिंह चौहान के नाम इस समय जानबूझकर जारी किया गया. हालांकि इस श्राद्ध पॉलीटिक्स से कांग्रेस ने पहले ही किनारा कर लिया और कहा कि जो भी कंटेंट है उसका कांग्रेस से कोई लेना देना नहीं. लेकिन इस मुद्दे पर शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय के अलावा केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी सीन में आए.

श्राद्ध के बाद फीनिक्स की भी एंट्री: श्राद्ध का जो मुद्दा बनाया गया. उस पर शिवराज सिंह चौहान ने जब पलटवार किया तो फीनिक्स पक्षी तक बात गई और उन्होंने कहा कि फीनिक्स की तरह वे अपनी राख से ऊग आएंगे. इसके पहले चुनाव लड़ूं या ना लड़ूं. राजनीति की राह रपटीली जैसे बयान देते रहे शिवराज ने बता दिया कि उन्हें इतनी आसानी से न लिया जाए. अब एमपी में बाप की एंट्री हो गई है. पहले शिवराज सिंह चौहान ने प्रियंका गांधी के बयान के मामले में कहा कि ''जो चाहा कह रही हैं कि अपने बाप का क्या जाता है.'' इसी बयान पर बवाल हुआ और कमलनात ने कहा कि ''शिवराज अपनी ही सरकार और पार्टी मे हाशिए पर डाल दिए जाने के बाद अंसतुलित भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि जिन प्रियंका गांधी के पिता के बारे में आपने ये कहा है वो भारत भूमि के लिए शहीद हुए थे. देश की एकता अखंडता के लिए उन्होंने अपना बलिदान दिया था.''

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क्या सियासी हवा बदल पाते हैं शब्द: वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश भटनागर कहते हैं ''देखिए इसमें दो राय नहीं कि शब्द असर करते हैं. एक समय में राजनेताओं के भाषण हवा बदल दिया करते थे. शब्दों का असर अभी भी है. लेकिन अब शब्द जुबान पर चढ़ाए जाते हैं. सोशल मीडिया के ट्रेंड के जरिए. हांलाकि मैं ये मानता हूं कि जिस तरह सोशल मीडिया में हवा बनती बिगड़ती है वैसा ही राजनीति में है जो मतदाता के मने में बैठ जाए उसके लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ती है. और एक स्याह पक्ष ये है इससे असल मुद्दे पीछे रह जाते हैं.''

भोपाल। कर्नाटक के चुनाव में एक 'की-वर्ड' ने पॉलीटिकल सीन बदल दिया था. 40 परसेंट कमीशन वाली सरकार का जो की वर्ड कांग्रेस ने दिया, तो उस जमीन पर कहानी ही बदल गई. अब एमपी में भी चुनाव जब धीरे-धीरे जोर पकड़ रहा है तो हर दिन बयानों की धार के साथ ऐसे 'की-वर्ड' की बहार आ रही है. करप्शन चुनाव के ऐलान के पहले ट्रेडिंग था. इसी पर पोस्टर वार भी शुरु हुआ लेकिन चुनाव की तारीखों के बाद तो ऐसे-ऐसे शब्द राजनीति का हिस्सा बन रहे हैं कि जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. अब बताइए चुनावी राजनीति में 'श्राद्ध' जैसे शब्द पहले कब इस्तेमाल हुए. बात आगे बढ़कर 'बाप' तक पहुंची है.

एमपी के चुनाव में शब्दों पर बवाल, कमीशन से श्राद्ध: मुद्दे सिरे से नदारद हों ऐसा नहीं है. लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव में शब्द पकड़कर ऐसे राजनीति हो रही है कि एक एक शब्द पर गुत्थमगुत्था हो रहे हैं नेता. चुनाव की तारीखों के साथ ये ट्रेंड और बढ़ा है. चुनाव जब दूर था तो कर्नाटक चुनाव की तर्ज पर एमपी में कांग्रेस ने कमीशन की एंट्री कराई, पोस्टर वार शुरु हुआ, सोशल मीडिया कैम्पेन शुरु हुआ. कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर 50 परसेंट कमीशन कैम्पेन शुरु किया. इसे नाम दिया गया शिवराज का मिशन 50 परसेंट कमीशन. हालांकि चुनाव की तारीखों के एलान के बाद सीन ऐसा बदला कि एमपी में सियासत श्राद्ध पर सवार हो गई. असल में बीजेपी की चौथी सूची जारी होने का जो समय है श्राद्ध पक्ष उसे लेकर मुद्दा बनाया गया और कहा कि शिवराज सिंह चौहान के नाम इस समय जानबूझकर जारी किया गया. हालांकि इस श्राद्ध पॉलीटिक्स से कांग्रेस ने पहले ही किनारा कर लिया और कहा कि जो भी कंटेंट है उसका कांग्रेस से कोई लेना देना नहीं. लेकिन इस मुद्दे पर शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय के अलावा केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी सीन में आए.

श्राद्ध के बाद फीनिक्स की भी एंट्री: श्राद्ध का जो मुद्दा बनाया गया. उस पर शिवराज सिंह चौहान ने जब पलटवार किया तो फीनिक्स पक्षी तक बात गई और उन्होंने कहा कि फीनिक्स की तरह वे अपनी राख से ऊग आएंगे. इसके पहले चुनाव लड़ूं या ना लड़ूं. राजनीति की राह रपटीली जैसे बयान देते रहे शिवराज ने बता दिया कि उन्हें इतनी आसानी से न लिया जाए. अब एमपी में बाप की एंट्री हो गई है. पहले शिवराज सिंह चौहान ने प्रियंका गांधी के बयान के मामले में कहा कि ''जो चाहा कह रही हैं कि अपने बाप का क्या जाता है.'' इसी बयान पर बवाल हुआ और कमलनात ने कहा कि ''शिवराज अपनी ही सरकार और पार्टी मे हाशिए पर डाल दिए जाने के बाद अंसतुलित भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि जिन प्रियंका गांधी के पिता के बारे में आपने ये कहा है वो भारत भूमि के लिए शहीद हुए थे. देश की एकता अखंडता के लिए उन्होंने अपना बलिदान दिया था.''

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