भाेपाल मध्य प्रदेश में क्रिमिनल की पहचान करने के लिए NAFIS (नेशनल ऑटोमैटिक फिंगर आइडेंटिटी सिस्टम) की शुरूआत बतौर पायलट प्रोजेक्ट पिछले साल की गई थी. यह पहला बड़ा तरीक था, जिसे जनवरी 2022 से लागू किया गया है. इसके तहत घटना के बाद स्पॉट से मिले फिंगर प्रिंट अपलोड किए जाते हैं और जैसे ही, वह अपराधी देश में कहीं भी दूसरी वारदात करता है तो उसके फिंगर प्रिंट मैच करके मामला का खुलासा करने में मदद मिलती है.
इंदौर में सफलता के बाद बाकि जिलों में होगा लागू: बीते पहली तिमाही में इस सिस्टम की मदद से करीब 26 केस को सॉल्व करने में मदद मिली थी. दूसरा बड़ा काम किया गया कि थानों में आरोपियों के फिंगर प्रिंट लेकर उस डाटा को स्टोर किया गया. अब इसके बाद मप्र पुलिस इससे एक कदम जाकर चेकिंग पाइंट पर संदिग्धों के फिंगर प्रिंट लेने की तैयारी कर रही है. इसके लिए इंदौर पुलिस ने एक इंटरनल एप तैयार किया है. जिसके तहत इंदौर पुलिस को एक डिवाइस दिया जाएगा, जिसकी मदद से चेकिंग पाइंट पर संदिग्ध नजर आते ही उसके फिंगर प्रिंट स्कैन किए जाएंगे. यदि संदिग्ध के खिलाफ किसी भी तरह का मामला दर्ज है तो तत्काल उसे रोककर पूछताछ की जाएगी. यहां इस प्रोजेक्ट को सफलता मिलने के बाद प्रदेश के बाकी जिलों में लागू किया जाएगा.
क्या है नेफिस: यह नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो का प्रोजेक्ट है. 18 स्टेट की पुलिस एक-दूसरे के राज्यों में पकड़े गए अपराधियों का रिकार्ड नेफिस की मदद से शेयर करते हैं. यानी किस राज्य में कितने अपराधी पकड़े गए और अभी एक्टिव हैं या नहीं, इसके तहत फिंगर प्रिंट नेफिस पर अपलोड किए गए हैं. इसी की मदद से मध्य प्रदेश के सभी थानों में आरोपियों के फिंगर प्रिंट लिए गए और अपलोड किए गए.
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रेटिना, डीएनए का डेटा रखेगी पुलिस: मध्य प्रदेश क्राइम रिकार्ड ब्यूरो अब रेटिना से लेकर डीएनए तक का डेटा सुरक्षित रखने पर काम कर रही है. इसके लिए पिछले साल कानून में बदलाव किया है. केंद्र सरकार द्वारा इसकी स्वीकृति देते ही मप्र में रेटिना से लेकर डीएनए तक का डेटा संग्रहण करने पर काम शुरू हो गया. जबकि इसके पहले अपराधियों के केवल फिंगरप्रिंट, फुटप्रिंट और तस्वीरें ही रखने का प्रावधान था. मध्य प्रदेश डेटा बेस करने के मामले में बाकी राज्यों से आगे निकल गया है.