भोपाल। मध्य प्रदेश में ओबीसी वर्ग को मिलने वाले आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% बढ़ाने के फैसले पर हाईकोर्ट की रोक के बाद सीएम शिवराज सिंह चौहान ने सासंदों और विधायकों के साथ बैठक की. बीजेपी कार्यालय में हुई बैठक में खास तौर पर OBC वर्ग से आने वाले सांसद और विधायकों को बुलाया गया था. इस बैठक में इस बात पर चर्चा की गई कि OBC आरक्षण को 13% कैसे बढ़ाया जा सकता है.
सरकारी परीक्षाओं पर अघोषित रोक लगी
इस मामले में मध्य प्रदेश सरकार विधि विशेषज्ञों के राय पहले ही ले चुकी है. सभी कानूनी पहलुओं पर चर्चा के बाद सरकार इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जाने का निर्णय ले सकती है. आरक्षण पर फैसला नहीं होने की वजह से सरकारी नौकरियों में खाली हुए पदों को नहीं भरा जा रहा है. आरक्षण पर स्थिति स्पष्ट नहीं होने से पीएससी की मुख्य परीक्षा के अलावा अन्य विभागों में भर्ती पर अघोषित रोक लगी है.
परीक्षाएं नहीं होने से फैल रही है बेरोजगारी
एक तरफ सरकारी भर्ती परीक्षाएं नहीं होने से युवाओं में बेरोजगारी फैल रही है, तो दूसरी तरफ सरकार को यह डर भी है कि मामले को हाईकोर्ट ले जाने पर प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे की तरह हश्र न हो जाए. साल 2016 में प्रमोशन में आरक्षण में हाईकोर्ट के फैसले के बाद सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई थी. इसका फल यह हुआ कि 5 सालों से सरकारी सेवा में प्रमोशन रुका हुआ है, इससे सरकारी कर्मचारी सरकार से नाराज चल रहे हैं.
OBC आरक्षण पर क्या है HC का फैसला ?
हाल ही में मध्य प्रदेश में हाईकोर्ट ने OBC आरक्षण को लेकर फैसला दिया है. हाईकोर्ट ने OBC आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% करने पर रोक लगा दी है. सरकारी भर्ती प्रक्रियाओं में आ रही रुकावटों पर फैसला देते हुए हाईकोर्ट ने साफ किया कि भर्ती प्रक्रिया OBC वर्ग को 14% आरक्षण देकर ही की जाएगी. यानी हाईकोर्ट ने 27% आरक्षण पर लगी रोक को बरकरार रखा है.
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10 अगस्त को हाइकोर्ट में फिर सुनवाई
OBC आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट में अगली सुनवाई की तारीख 10 अगस्त 2021 है. इस बीच शिवराज सरकार पूरी तैयारी में है कि इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट में एमपी सरकार का पक्ष रखा जाए. इसी के चलते सीएम शिवराज ने OBC वर्ग के सांसद-विधायकों से चर्चा की. इस मुद्दे के जल्दी निराकरण के लिए बीजेपी ने OBC वर्ग से आने वाले सभी पदाधिकारियों, सांसदों और विधायकों को आनन-फानन में प्रदेश कार्यालय बुलाया और बैठक की गई.
कोर्ट में सरकार दे चुकी है जातिगत आंकड़ें
इस मामले में सुनवाई के दौरान राज्य शासन की तरफ से हाईकोर्ट में जातिगत आंकड़ा पेश किया जा चुका है. राज्य सरकार के मुताबिक प्रदेश में OBC वर्ग की जनसंख्या 50. 09% है, जिन्हें 14% आरक्षण दिया जा रहा है. इसके अलावा अनुसूचित जाति की आबादी 15.6% है, जिन्हें 16% आरक्षण का लाभ मिल रहा है. इसके अलावा अनुसूचित जनजाति की आबादी 21.1% है, इस वर्ग को 20% आरक्षण दिया जा रहा है.
सरकार का तर्क है कि जनसंख्या के हिसाब से एससी और एसटी वर्ग को आरक्षण का लाभ मिल रहा है, जबकि OBC वर्ग को 50.09% आबादी होने के बाद भी पुराने प्रावधान के तहत 14% आरक्षण दिया जा रहा है. सरकार की तरफ से पेश किए गए यह आंकड़े साल 2011 की जनसंख्या के हिसाब से हैं.
OBC वर्ग को क्यों नहीं मिल पा रहा 27% आरक्षण
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक किसी भी सूरत में आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं दिया जा सकता है. एमपी में OBC वर्ग की आबादी करीब 51 फीसदी होने के चलते कमलनाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 14 से बढ़ाकर 27% करने का फैसला किया था. कमलनाथ सरकार के इस फैसले के चलते प्रदेश में कुल आरक्षण 63% हो गया था. मामला कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने सरकार के फैसले पर रोक लगाते हुए बढ़े हुए OBC आरक्षण पर रोक लगा दी थी.
कई राज्यों में सरकार कर चुकी है कोशिश
राजस्थान सरकार ने 50% आरक्षण की सीमा को पार किया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट में खारिज कर दिया था. वहीं मुंबई में हाईकोर्ट ने मराठों को नौकरी और शैक्षणिक संस्था में 16 फीसदी रिजर्वेशन देने पर सरकार के फैसले पर रोक लगा दी थी, महाराष्ट्र में आरक्षण का कुल कोटा 73 फीसदी हो गया था. तमिलनाडु, झारखंड और कर्नाटक ऐसे राज्य हैं, जहां पर आरक्षण 50% से ज्यादा बढ़ गया था, लेकिन इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले देने के बाद आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय कर दी गई थी.