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पन्ना में सिलिकोसिस बीमारी से एक और मजदूर की मौत, जानिए अबतक कितने गंवा चुके हैं जान - laborer dies due to silicosis disease in Panna

पन्ना में शनिवार को इस सिलिकोसिस बीमारी से जूझ रहे एक और मजदूर की मौत हो गई. मजदूर हबीब खान 2010 से सिलिकोसिस बीमारी से पीड़ित थे, जिन्होंने जिला अस्पताल में अंतिम सांस ली.

laborer dies due to silicosis disease
सिलिकोसिस से मजदूर की मौत
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Published : Nov 21, 2020, 3:30 PM IST

Updated : Nov 21, 2020, 4:16 PM IST

पन्ना। लाइलाज सिलिकोसिस बीमारी से मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. शनिवार को इस बीमारी से जूझ रहे एक और मजदूर की मौत हो गई. मजदूर हबीब खान 2010 से सिलिकोसिस बीमारी पीड़ित थे, जिन्होंने जिला अस्पताल में अंतिम सांस ली. मजदूर की मौत से परिजन सदमे में हैं और सरकार व जिला प्रशासन से परिजनों ने सहायता राशि उपलब्ध कराने की मांग की है.

सिलिकोसिस बीमारी से एक और मजदूर की मौत

पन्ना के अधिकतर मजदूर पत्थर खदानों में काम कर अपना भरण-पोषण करते हैं. क्योंकि पन्ना इसके अलावा और कोई रोजगार के संसाधन मजदूरों के लिए उपलब्ध नहीं हैं. जहां काम करने से लगातार वे सिलिकोसिस से पीड़ित हो रहे हैं. लेकिन इन मजदूरों के स्वास्थ्य की चिंता ना तो जिला प्रशासन को है और ना ही जिले के जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों को.

ऐसे होता है सिलिकोसिस

सालों तक पत्थर खदानों में काम करने वाले मजदूरों के फेफड़ों में पत्थरों की धूल सांस के माध्यम से पहुंचकर जमने लगती है. धीरे-धीरे फेफड़े पत्थर जैसे कठोर हो जाते हैं. इस बीमारी का अभी तक कोई इलाज खोजा नहीं जा सका है. पत्थर खदानों में काम करने वाले मजदूर 35 से 40 साल में ही वृद्ध दिखने लगते हैं.

45 से 50 साल की आयु में अधिकांश की मौत हो जाती है. खदानों में काम करने वाले मजदूरों के सेहत की जांच नहीं कराई जाती है. एनजीओ के दबाव में बीते साल कुछ मजदूरों की सेहत की जांच की गई थी, जिसमें एक दर्जन से अधिक सिलिकोसिस की आशंका जताई गई थी.

अब तक 27 की मौत

अगर इस बीमारी की चपेट में आए मजदूरों के आंकड़ों की बात करें तो, साल 2010-11 में स्वास्थ परीक्षण के लिए कैंप लगाया गया था, जिसमें डॉक्टर बी. मुरली और डॉक्टर फ्रिंक (अमेरिका) ने 122 मजदूरों को चिन्हित किया था, जिसमें से अब तक 27 (मजदूर संघ के आंकड़ों के अनुसार) सिलिकोसिस पीड़ित मजदूरों की जान जा चुकी है. वही सरकारी आंकड़े में यह 14 वें मजदूर की मौत हुई है.

दोबारा नहीं लगा कैंप

गंभीर बात की है कि 2010-11 के कैंप के बाद आजतक पन्ना जिले में सिलिकोसिस पीड़ित मजदूरों के स्वास्थ्य परीक्षण के लिए कोई सर्वे या कैम्प नही लगाया गया है. जबकि जिले में अधिकतर मजदूर पत्थर खदानों में काम करते हैं. लेकिन फिर जिला प्रशासन व जिले के जनप्रतिनिधियों को राजस्व के अलावा मजदूरों की चिंता ही नहीं है.

नहीं मिल रहा राजनीतिक रसूख का फायदा

राजनैतिक दृष्टिकोण से मध्यप्रदेश में पन्ना जिला सबसे मजबूत है. क्योंकि खनिज व श्रम मंत्री ब्रजेन्द्र प्रताप सिंह का यह ग्रह जिला है और बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा का लोकसभा संसदीय क्षेत्र भी है. बावजूद मजदूरों के स्वास्थ्य के लिए कोई ठोस कदन नहीं उठाए जा रहे हैं. इतना ही नहीं सिलिकोसिस नामक लाइलाज बीमारी का कोई स्पेशलिस्ट या जानकार डॉक्टर तक पन्ना में नहीं है.

पन्ना। लाइलाज सिलिकोसिस बीमारी से मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. शनिवार को इस बीमारी से जूझ रहे एक और मजदूर की मौत हो गई. मजदूर हबीब खान 2010 से सिलिकोसिस बीमारी पीड़ित थे, जिन्होंने जिला अस्पताल में अंतिम सांस ली. मजदूर की मौत से परिजन सदमे में हैं और सरकार व जिला प्रशासन से परिजनों ने सहायता राशि उपलब्ध कराने की मांग की है.

सिलिकोसिस बीमारी से एक और मजदूर की मौत

पन्ना के अधिकतर मजदूर पत्थर खदानों में काम कर अपना भरण-पोषण करते हैं. क्योंकि पन्ना इसके अलावा और कोई रोजगार के संसाधन मजदूरों के लिए उपलब्ध नहीं हैं. जहां काम करने से लगातार वे सिलिकोसिस से पीड़ित हो रहे हैं. लेकिन इन मजदूरों के स्वास्थ्य की चिंता ना तो जिला प्रशासन को है और ना ही जिले के जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों को.

ऐसे होता है सिलिकोसिस

सालों तक पत्थर खदानों में काम करने वाले मजदूरों के फेफड़ों में पत्थरों की धूल सांस के माध्यम से पहुंचकर जमने लगती है. धीरे-धीरे फेफड़े पत्थर जैसे कठोर हो जाते हैं. इस बीमारी का अभी तक कोई इलाज खोजा नहीं जा सका है. पत्थर खदानों में काम करने वाले मजदूर 35 से 40 साल में ही वृद्ध दिखने लगते हैं.

45 से 50 साल की आयु में अधिकांश की मौत हो जाती है. खदानों में काम करने वाले मजदूरों के सेहत की जांच नहीं कराई जाती है. एनजीओ के दबाव में बीते साल कुछ मजदूरों की सेहत की जांच की गई थी, जिसमें एक दर्जन से अधिक सिलिकोसिस की आशंका जताई गई थी.

अब तक 27 की मौत

अगर इस बीमारी की चपेट में आए मजदूरों के आंकड़ों की बात करें तो, साल 2010-11 में स्वास्थ परीक्षण के लिए कैंप लगाया गया था, जिसमें डॉक्टर बी. मुरली और डॉक्टर फ्रिंक (अमेरिका) ने 122 मजदूरों को चिन्हित किया था, जिसमें से अब तक 27 (मजदूर संघ के आंकड़ों के अनुसार) सिलिकोसिस पीड़ित मजदूरों की जान जा चुकी है. वही सरकारी आंकड़े में यह 14 वें मजदूर की मौत हुई है.

दोबारा नहीं लगा कैंप

गंभीर बात की है कि 2010-11 के कैंप के बाद आजतक पन्ना जिले में सिलिकोसिस पीड़ित मजदूरों के स्वास्थ्य परीक्षण के लिए कोई सर्वे या कैम्प नही लगाया गया है. जबकि जिले में अधिकतर मजदूर पत्थर खदानों में काम करते हैं. लेकिन फिर जिला प्रशासन व जिले के जनप्रतिनिधियों को राजस्व के अलावा मजदूरों की चिंता ही नहीं है.

नहीं मिल रहा राजनीतिक रसूख का फायदा

राजनैतिक दृष्टिकोण से मध्यप्रदेश में पन्ना जिला सबसे मजबूत है. क्योंकि खनिज व श्रम मंत्री ब्रजेन्द्र प्रताप सिंह का यह ग्रह जिला है और बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा का लोकसभा संसदीय क्षेत्र भी है. बावजूद मजदूरों के स्वास्थ्य के लिए कोई ठोस कदन नहीं उठाए जा रहे हैं. इतना ही नहीं सिलिकोसिस नामक लाइलाज बीमारी का कोई स्पेशलिस्ट या जानकार डॉक्टर तक पन्ना में नहीं है.

Last Updated : Nov 21, 2020, 4:16 PM IST
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