भोपाल का अग्रवाल परिवार पिछले 60 साल से लोगों की निस्वार्थ मदद कर रहा है. अग्रवाल परिवार की पिछली तीन पीढ़ियां आग और तेजाब से जलने वालों को एक ऐसा मरहम दे रही हैं, जिसे लगाने से सभी जख्म ठीक हो जाते हैं. राजधानी के चौक बाजार में 1952 से अग्रवाल पुरी भंडार है और इस दुकान की दूसरी पहचान है आग में झुलसे लोगों की मदद करना. एक थाल में हर वक्त जलने वालों को दी जाने वाली दवा की कई पुड़ियां रखी होती हैं और जब भी यहां मरीज पहुंचता है तो उसे ये पुड़िया दी जाती है.
हर रोज 200 से ज्यादा पीड़ितों को आयुर्वेदिक दवा की पुड़िया उपलब्ध कराई जाती है, वो भी बगैर किसी रुपए के. इस निस्वार्थ मदद की शुरुआत भी बड़ी दिलचस्प है. 6 दशक पहले संजय अग्रवाल के पिता शिव नारायण अग्रवाल दुकान पर पुरी तल रहे थे, इसी दौरान खोलते हुए तेल में पत्थर गिर गया और तेल के छींटे पड़ने से शिव नारायण अग्रवाल का हाथ जल गया. नारायण अग्रवाल के मामा आयुर्वेद के जानकार थे, उन्होंने नारायण अग्रवाल को मरहम दिया. जिससे वो ठीक हो गए और मरहम भी बच गया. जिसे उन्होंने दूसरे जलने वालों को दे दिया. यहीं से मदद की शुरुआत हुई और धीरे-धीरे शहर का अग्रवाल परिवार देश ही नहीं दुनिया में फेमस हो गया.
दवा बनाने में 1 से 2 घंटे लगते हैं, क्योंकि इसे काफी घोटना भी पड़ता है. दिन में 5 से 8 बजे तक दवा दी जाती है. अगर कोई जलने वाला किसी भी वक्त आ जाता है तो उसे भी दवा दी जाती है. संजय अग्रवाल की मानें तो इस दवा का उनके पिता ने जो फार्मूला बनाया था, उसी के मुताबिक उनका परिवार आज भी ये दवा बनाता आ रहा है. अग्रवाल परिवार से कई ऐसे परिवार जुड़े हुए हैं, जो सालों से जलने पर दवा लेने आते हैं.
आग में झुलसे संतोष कुमार का कहना है कि उन्होंने अग्रवाल परिवार से मिली आयुर्वेदिक दवा का इस्तेमाल किया तो उनके जख्म तो ठीक हुए ही, साथ ही किसी तरह का दाग भी नहीं रहा. उन्हें डर था कि कहीं जलने के निशान उनके बदन पर ना रह जाएं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अग्रवाल परिवार उन लोगों के लिए मिसाल है जो सक्षम होने के बाद भी लोगों की मदद नहीं करते हैं.