भिंड। अस्पताल वो जगह होती है जहां नया जीवन मिलता है, लेकिन कई बार आगजनी जैसी घटनाएं इन अस्पतालों में भी हो जाती हैं. सुरक्षा के लिहाज से अग्नि सुरक्षा मानकों का पालन और एनओसी जरूरी होती है. लेकिन अक्सर देखा गया है खासकर निजी अस्पताल इन जरूरी नियमों की अनदेखी करते हैं. भिंड शहर में भी करीब 10 से 12 निजी अस्पताल संचालित है. जहां अग्नि सुरक्षा मानकों के लिए खुलकर धज्जियां उड़ा रखी हैं. कार्रवाई के नाम पर जिम्मेदार एक दूसरे पर विभागीय प्रक्रिया का ठीकरा फोड़ देते हैं.
जिला अस्पताल को दो साल पहले ही मिली एनओसी
भिंड का जिला अस्पताल कहने को तीन बार प्रदेश का नंबर वन जिला अस्पताल रह चुका है, लेकिन इस अस्पताल को भी साल 2017 में जाकर फायर सेफ्टी की एनओसी मिली है. वर्तमान में जिला अस्पताल काफी अच्छी हालत में है. सुरक्षा मानक लिहाज से जिला अस्पताल में जगह-जगह फायर एक्सटिंग्विशर रखे गए हैं. साथ ही आगजनी जैसे हादसों के दौरान लोगों के बचाव के लिए और बाहर निकलने के लिए भी पूरा प्लान जिला अस्पताल की बिल्डिंग पर लगाया गया है.
इन अग्नि सुरक्षा मानकों का ध्यान रखना जरूरी-
किसी भी में अस्पताल सरकारी या निजी में मरीजों की सुरक्षा के लिहाज से अग्नि सुरक्षा मानकों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. जैसे-
- अस्पताल बिल्डिंग में ऑटोमेटिक फायर डिटेक्शन और अलार्म सिस्टम होना चाहिए.
- धुआं उठते ही फायर कंट्रोल रूम में अलार्म बजना चाहिए.
- ऑटोमेटिक स्प्रिंग कल सिस्टम भी होना चाहिए.
- फायर सेपरेशन सिस्टम में बिल्डिंग की दीवारें जुड़ी ना हो. आग बुझाने की जगह होनी चाहिए.
- फायर डोर फायर लिफ्ट और फायर एग्जिट होने के साथ ही इनके संकेत होना भी जरूरी है.
- अस्पताल में गलियारों की चौड़ाई कम से कम डेढ़ से 2 मीटर होना चाहिए और संवेदनशील क्षेत्र भी चिन्हित होना चाहिए.
- फायर पंप अलग 10th से जुड़ा हुआ होना चाहिए. साथ ही इमरजेंसी लाइट सिस्टम भी हो और क्षेत्रफल के आधार पर उपकरण लगे हो.
- 15 मीटर ऊंची बिल्डिंग में फायर कंट्रोल जरूरी है.
- अस्पताल का द्वार कम से कम डेढ़ मीटर चौड़ा होना चाहिए.
- जगह-जगह अग्निशमन यंत्र लगे होना भी अनिवार्य है.
- अग्निशमन विभाग की एनओसी अनिवार्य रूप से ली जानी चाहिए. साथ ही अग्निशमन विभाग पुलिस और आपातकालीन नंबरों का डिस्प्ले होना चाहिए.
गली-कूचों में खुले निजी अस्पताल
जिस तरह स्वास्थ्य विभाग ने भिंड जिला अस्पताल सभी सुरक्षा मानकों का ख्याल रखा है. लेकिन उतनी मुस्तैदी से निजी तौर पर संचालित हो रहे अस्पतालों की ओर ना तो स्वास्थ्य विभाग का ध्यान है और ना ही नगरपालिका का. शहर में संचालित ज्यादातर अस्पताल गली-कूचे में खुले हुए हैं. जिसकी वजह से यदि कोई हादसा होता है तो मौके पर फायर ब्रिगेड पहुंचने तक का रास्ता नहीं है. ज्यादातर अस्पताल घर नवाब बिल्डिंगों में ही बनाए गए हैं. यहां ना तो अग्नि सुरक्षा मानकों का ध्यान दिया जा रहा है और ना ही एनओसी का.
एनओसी देने के बाद जिम्मेदारी खत्म ?
जब निजी अस्पतालों द्वारा दी जा रही इस तरह की लापरवाही को लेकर नगर पालिका के स्वास्थ्य शाखा में पदस्थ अधिकारियों से बात की गई तो वह कैमरे पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हुए. हालांकि उन्होंने कहा कि अस्पताल के रजिस्ट्रेशन के समय उनके पास एनओसी के लिए आवेदन आते हैं. जिन पर निरीक्षण कर एनओसी प्रदान की जाती है. वहीं अधिकारियों से औचक निरीक्षण को लेकर सवाल पूछा गया तो इस पर नगर पालिका के स्वास्थ्य शाखा के अधिकारी ने कहा कि यह काम संबंधित विभाग का है. यदि संयुक्त रूप से जांच के लिए जब शासन से उनके पास कोई सूचना आती है तो वह तभी अस्पतालों का निरीक्षण करते हैं.
अग्नि सुरक्षा मानकों पर खरा जिला अस्पताल
शहर के नगर पालिका के जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा इस तरह के जवाब के बाद जब हमने जिले के सीएमएचओ डॉ अजीत मिश्रा से बात की तो उन्होंने बताया कि जिला अस्पताल में सभी सुरक्षा मानकों का पूरा ध्यान रखा जा रहा है. फिर चाहे वह स्वास्थ्य के लिहाज से हो या अग्नि सुरक्षा के समय-समय पर फायर एक्सटिंग्विशर की जांच की जाती है. एक्सपायरी होने पर उन्हें बदल दिया जाता है. साथ ही स्वास्थ्य कर्मचारियों को भी मॉक ड्रिल के जरिए इस तरह की स्थितियों से निपटने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. फायर एक्सटिंग्विशर का आपात स्थिति में किस तरह उपयोग किया जाना है इस बात के लिए भी ट्रेनिंग दी जाती है.
अधिकारियों को नहीं कार्रवाई में दिलचस्पी
जब निजी अस्पतालों की स्थिति के संबंध में डॉ अजीत मिश्रा से सवाल किया तो उन्होंने बताया कि फायर सेफ्टी डिपार्टमेंट के अधिकारियों द्वारा अस्पतालों का निरीक्षण कर एनओसी दिए जाने का प्रावधान है. स्वास्थ्य विभाग की ओर से अब तक किसी तरह की कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की गई है. ज्यादातर केस में निरीक्षण के दौरान यदि किसी अस्पताल में कोई अनियमितता पाई जाती है तो उन्हें चेतावनी दी जाती है. जिससे वे अपनी व्यवस्थाओं को दुरुस्त कर लें और इन अस्पतालों में जाने वाले मरीजों को भी कोई असुविधा ना हो.
निजी अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा नियमों की अनदेखी
भिंड जिला अस्पताल तो ठीक है लेकिन इस तरह की लापरवाही अन्य निजी अस्पतालों में देखने को जरूर मिल रही है. उस पर जिम्मेदार अधिकारियों की टालमटोली और अनदेखी कहीं ना गैरजिम्मेदाराना व्यवहार तो उजागर कर ही रही है बल्कि अस्पताल में मौजूद मरीजों की जान से खिलवाड़ करना भी है. अगर भविष्य में कोई हादसा होता है तो उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी यह भी एक बड़ा सवाल है.